Hindi Novel : जीवन एक महाख्यान है। जिंदगी की सभी अवस्थाओं, उसकी घटनाओं एवं भंगिमाओं को उसकी संपूर्णता के साथ उकेरनेे की शक्ति हिंदी गद्य के यदि किसी विधा में है तो वह उपन्यास है। इसीलिए हिंदी साहित्य के पुराधाओं ने उपन्यास को महाख्यान की संज्ञा दी है। भारत में हिंदी उपन्यास की एक लंबी एवं सशक्त परंपरा रही है। परीक्षा गुरु से लेकर अब तक एक से बढ़कर एक हिंदी उपन्यास सामने आए हैं। लंबे समय तक हिंदी में अय्यारी, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक उपन्यास लिखे जाते रहे। इन सभी उपन्यासों की अपनी महत्ता एवं प्रासंगिकता है। विचारों को उद्वेलित एवं संवेदनाओं को झकझोरने वाली रचनाएं आधुनिक भाववोधों के साथ रची गई हैं। हिंदी के ये उपन्यास हमारे जीवन को संवारते एवं उसे निखारते हैं। एक नई जीवनदृष्टि देते हैं। हिंदी दिवस के अवसर पर यहां हम उन कालजयी उपन्यासों के बारे में चर्चा करेंगे जिसे हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए।
बाण भट्ट की आत्मकथा, लेखक-हजारी प्रसाद द्विवेदी
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह ऐतिहासिक उपन्यास बेजोड़ है। इसमें इतिहास एवं कल्पना का अद्भुत सामंजस्य एवं समन्वय मिलता है। चूंकि उपन्यास की कहानी प्राचीन है तो भाषा भी उसके अनुरूप है। यह उपन्यास सातवीं शताब्दी हर्ष युग के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति को उसकी संपूर्णता के साथ पाठकों के समक्ष खड़ा कर देता है। इस उपन्यास के पात्र बाण भट्टा, भट्टिनी और निपुणिका समस्त मानवीय संवेदनाओं को अपने अंदर समेटे हुए हैं। इनके संवाद मानवीय मूल्यों के ज्वलंत दस्तावेज हैं। इस उपन्यास में द्विवेदी जी ने संस्कृति, इतिहास के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को बारीकी से उभारा है।
गोदान, लेखक-प्रेमचंद
गोदान हिंदी के उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की कालजयी रचना है। यह उनका अंतिम उपन्यास है। इस अंतिम उपन्यास में प्रेमचंद की पूरी साहित्यिक पूंजी एक जगह इकट्ठी हो गई है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने ग्रामीण एवं शहर की समस्या दोनों को उकेरा है। हालांकि, मूल रूप से इसे ग्रामीण उपन्यास माना जाता है। दरअसल, प्रेमचंद ने इसके जरिए ग्रामीण एवं शहर समाज का समग्र चित्र उकेरनेे की कोशिश की है। ग्रामीण जीवन के चित्रण में वह काफी हद तक सफल हुए हैं लेकिन शहरी जीवन में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। उपन्यास का नायक होरी भारतीय किसान का मूर्तिमान सजीव रूप है। वह किसानों की समस्याओं, दुखों, परेशानियों एवं विडंबनाओं का ज्वलंत प्रतीक है। ग्रामीण समाज में किसान किस तरह से सामाजिक ढांचे का शिकार होता है, इस उपन्यास में बखूबी से उकेरा गया है। होरी जीवन भर संघर्ष करता और संघर्ष करते-करते ही जीवन से विदा हो जाता है। गोदान करने की उसकी अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं हो पाती।
आधा गांव, लेखक-राही मासूम रजा
राही मासूम रजा का उपन्यास आधा गांव विभाजन की त्रासदी की पूरी कहानी कहता है। राही मासूम ने अपने उपन्यास की भूमिका में लिखा है- 'यह कहानी न कुछ लोगों की है, न कुछ परिवारों की। यह उस गांव की कहानी भी नहीं है जिसमें इस कहानी के बुरे-भले पात्र अपने-आपको पूर्ण बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। यह कहानी न धार्मिक है, न राजनीतिक क्योंकि समय न धार्मिक होता है, न राजनीतिक.. और यह कहानी समय ही है। यह गंगौली में गुजरने वाले समय की कहानी है।' साफ है कि रजा ने शुरू में ही अपने उपन्यास के कथ्य को स्पष्ट कर दिया है। रजा का यह उपन्यास भारतीय समाज की सबसे भयावह त्रासदी की तहों तक हमें ले जाता है। यह उपन्यास विभाजन की त्रासदी के अंकन के बजाय उस मानसिकता को दर्शाने की कोशिश करता है जो साम्प्रदायिकता के लिए उत्तरदायी थी। इस चित्रण में रजा काफी हद तक सफल हुए हैं। उपन्यास में मुख्य तौर पर सांप्रदायिकता का मुद्दा उठाया गया है। सांप्रदायिक घटनाओं की बजाय उन्होंने यह दर्शाया है कि सांप्रदायिकता आखिर किस प्रकार से फैलती है। किस तरह यह लोगों को प्रभावित करती है और किस तरह ऐसी परिस्थतियों में गांव के कुछ लोग एक दूसरे के साथ रहे तो किस तरह ऐसी घटनाओं के कारण गांव बंटने लगे।
शेखर एक जीवनी, लेखक-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
नए भावबोधों एवं मनोवृत्तियों की सूक्ष्म मीमांसा करने वाला अज्ञेय का यह उपन्यास हिंदी में अपना अलग स्थान रखता है। इस उपन्यास में शेखर को पात्र बनाकर उसके जीवन के इर्द-गिर्द मनोभावों को बुना गया है। खासतौर से शेखर के बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में उपजे मनोभावों को गंभीरता एवं बारीकी से उकेरा गया है। शेखर के मन में उठने सवाल केवल उसके नहीं बल्कि हर उस किशोरावस्था मन के हैं जो इस उम्र के बच्चों एवं युवकों को उद्वेलित करती रहती है। इस उपन्यास को अज्ञेय ने तब लिखा जब वह जेल में थे। कई लोगों का दावा है कि उपन्यास की कहानी का प्लॉट उन्होंने जेल में लिखा। शेखर के रूप में उपन्यास में वह खुद हैं, इसका भी दावा किया जाता है। यह उपन्यास एक व्यक्ति का होकर भी सभी का हो जाता है। उपन्यास में शेखर का विद्रोह अकारण नहीं है। इस विद्रोह की वजह की मनोवैज्ञानिक तहें हैं।
कितने पाकिस्तान, लेखक-कमलेश्वर
कमलेश्वर का यह उपन्यास देश के बंटवारे और हिंदू-मूस्लिम संबंधों पर आधारित है। तथ्यों और आलोचना से समृद्ध यह उपन्यास स्वयं में इतिहास का एक ज्वलंत उपन्यास है। मानव इतिहास के साथ इसमें राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता और पश्चिमवाद पर खुलकर टिप्पणी की गई है। उपन्यास में उदाहरण देकर कमलेश्वर ने यह बताने की कोशिश की है कि लोगों की भावनाओं के साथ खेलकर उन्हें ठगा जाता रहा है। इस उपन्यास में कमलेश्वर ने भारत के बाबरी मस्जिद विवाद के जड़ तक जाने की कोशिश की है। हिंदी के चर्चित कहानीकार एवं उपन्यासकार कमलेश्वर ने यह बताने की कोशिश की है कि धर्म का सहारा लेकर शासक कितनी आसानी से जनता को बांटकर अपना शासन बनाए रखता है। कमलेश्वर का उपन्यास उनकी गहरी खोज एवं विश्लेषण क्षमता से परिचय कराता है। इस उपन्यास को लिखने में उन्होंने अथक मेहनत की। कितने पाकिस्तान मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय के एक दस्तक के रूप में खड़ा होता है।
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इन उपन्यासों के अलावा हिंदी प्रेमियों को श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी, शिव प्रसाद सिंह का नीला चांद, फणीश्वर नाथ रेणु का मैला आंचल, भीष्म साहनी का तमस, धर्मवीर भारती का सूरज का सांतवां घोड़ा एवं काशी नाथ सिंह का काशी का अस्सी पढ़ना चाहिए।
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