नई दिल्ली: ज्ञानव्यापी की तर्ज पर अब श्री कृष्ण जन्म भूमि के बगल में शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे के साथ ही उसको सुरक्षित रखने को लेकर माग उठने लगी है । इस मामले में वादी महेंद्र प्रताप ने सीनियर डिविजन कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर माग की है कि इस परिसर में सनातन संस्कृति से जुड़े साक्ष्यों से छेड़छाड़ की जा सकती है इसलिए उनकी सुरक्षा दी जाय । वहा सुन्नी वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़े लोगो को आने जाने पर प्रतिबंध लगाया जाय । वादी महेंद्र प्रताप ने कानूनी दस्तावेजों के हवाले से बताया कि ये जमीन अंग्रेजी सरकार से बनारस के राजा पटनीमल ने नीलामी में लिया था ।
बिड़ला की मदद से मंदिर का निर्माण हुआ
बाद में रेवेन्यू रिकॉर्ड में राजा पटनीमल के नाम दर्ज हुआ। बाद में उनके वारिसान राय कृष्ण आदि प्रॉपर्टी के मालिक हो गए । जिनसे 8 फरवरी 1944 मदन मोहन मालवीय, भीकनलाल और गोस्वामी गणेश ने 13400 रु में ले ली। उसके बाद बिड़ला की मदद से मंदिर का निर्माण हुआ बाद में 9 मार्च 1951 श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट के नाम 13.37 एकड़ जमीन आ गई जिसमे शाही ईदगाह की इमारत भी शामिल थी । तब से आज तक ट्रस्ट रेवेन्यू रिकॉर्ड में मालिक है और नगर पालिका में ये ही टैक्स जमा करते है । बाद में श्री कृष्ण जन्म भूमि सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद से 12.10.68 में समझोता कर जमीन शाही मस्जिद को दे दी।
हिंदू सनातन परंपराओं से जुड़े चिन्ह मौजूद होने का दावा
अब हिंदू पक्ष का दावा है कि इस शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ी इमारत में हिंदू सनातन परंपराओं से जुड़े चिन्ह मौजूद है । जैसे वाराणसी की ज्ञान व्यापी मस्जिद में हिंदू धर्म से जुड़े निशान और चिन्ह मिलने का दावा किया जा रहा है उसी तरह मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद में भी दीवारों, परिसर की प्लिंथ और दीवारों पर उकेरी गई स्वास्तिक कमल शेषनाग ओर ओम की आकृति इस बात को प्रमाणित करती है कि ये पूरा हिस्सा जन्म भूमि मंदिर परिसर से जुड़ा है । इसके अलावा कानूनी दस्तावेजों में जमीन से जुड़े मालिकाना हक भी इस तस्वीर को साफ कर देता है ।
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