Supreme court comment on talaq: पति और पत्नी सात फेरों से आजाद होकर एक दूसरे से अलग रहना चाहता हैं तो सबसे अधिक असर उनके बच्चों पर होता है। अक्सर देखा गया है कि पति और पत्नी कोई एक या दोनों बच्चों को बेसहारा छोड़ देते हैं। लेकिन इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने खास टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी शख्स अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है लेकिन वो अपने बच्चों को तलाक नहीं दे सकता है। बच्चे का खर्च तो उसे उठाना ही होगा। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने समझौते के तहत शख्स को चार करोड़ रुपए के भुगतान के आदेश दिये।
सुप्रीम कोर्ट की खास टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया और पति- पत्नी के आपसी तलाकनामे पर मुहर लगा दी। दोनों एक दूसरे से 2019 से अलग रह रहे थे। अदालत के सामने जब उस शख्स के वकील ने कहा कि महामारी की वजह से उसका मुवक्किल आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है तो जजों ने कहा कि जिस दिन आप के मुवक्किल ने तलाक पर समझौता किया उसी दिन भुगतान का जिक्र था लिहाजा अब आर्थिक तंगी का जिक्र सही नहीं है।
दलील नहीं आई काम
अदालत के सामने शख्स के वकील ने कई उदाहरणों के जरिए अपने मुवक्किल के पक्ष को रखने की कोशिश की। अदालत ने कहा दो लोग जब किसी भी पद्धति से वैवाहिक गठजोड़ का हिस्सा बनते हैं तो वे एक दूसरे की हिफाजत और मदद का वचन भी देते हैं। अगर ऐसे में दोनों के संबंधों में तनाव होने की वजह से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो इसका यह कत्तई अर्थ नहीं कि वो अपनी जिम्मेदारी से भाग जाएंगे। अगर दोनों की संतानें हैं तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी बनती है। कोई भी शख्स अपनी सुविधा के तहत फैसले नहीं कर सकता है।
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