कितना अहम है नेपाल के विदेश मंत्री ग्यावली का भारत दौरा, ओली ने सीमा विवाद को दी है हवा  

देश
आलोक राव
Updated Jan 13, 2021 | 08:35 IST

Nepal foreign minister India's visit : कोरोना टीके के लिए नेपाल ने भारत और चीन दोनों की तरफ हाथ बढ़ाया है लेकिन लोगों का कहना है कि टीके के लिए काठमांडू को भरोसा भारतीय टीके पर है।

How important is Nepal foreign minister Pradeep Gyawali India's visit
कितना अहम है नेपाल के विदेश मंत्री ग्यावली का भारत दौरा।  |  तस्वीर साभार: PTI

नई दिल्ली : नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली अपनी तीन दिनों की यात्रा पर गुरुवार को भारत पहुंच रहे हैं। ग्यावली का यह भारत दौरा ऐसे समय हो रहा है जब पड़ोसी देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कहने पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दी है। नेपाल की कम्यूनिस्ट पार्टी आंतरिक गुटबाजी और कलह का शिकार है। हिमालयी देश में अप्रैल-मई में चुनाव होंगे। कोरोना संकट और सीमा विवाद के बीच नेपाल के विदेश मंत्री का यह दौरा दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग को और मजबूत बना सकता है।    

कोरोना टीके एवं सीमा विवाद पर हो सकती है बातचीत
गत नवंबर में विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और सेना प्रमुख एमएम नरवने के दौरे के बाद दोनों देशों के संबंध पटरी पर आते दिखाई दिए लेकिन पीएम ओली ने कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को दोबारा वापस लेने की बात दोहराकर नक्शा विवाद को एक बार फिर हवा देने की कोशिश की है। जाहिर है कि ग्यावली की इस यात्रा के दौरान सीमा विवाद का मसला उठ सकता है। इसके अलावा कोरोना टीके की आपूर्ति पर भारत की तरफ से कोई भरोसा दिया जा सकता है। 

भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि 14 से 16 जनवरी के बीच ओली सरकार के वरिष्ठ मंत्री ग्यावली की होने वाली इस यात्रा के दौरान कोविड टीके की आपूर्ति और आपसी सहयोग से जुड़े मुद्दे पर चर्चा होगी। इसके अलावा सीमा विवाद पर दोनों देश चर्चा कर सकते हैं।  बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर के निमंत्रण पर ग्यावली भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक संयुक्त आयोग की बैठक के दौरान कोविड-19 संकट पर सहयोग, सीमा विवाद सहित दोनों देशों के आपसी सहयोग से जुड़े सभी आयामों पर चर्चा होगी। 

भारत से टीका खरीदना चाहता है नेपाल
कोरोना टीके के लिए नेपाल ने भारत और चीन दोनों की तरफ हाथ बढ़ाया है लेकिन लोगों का कहना है कि टीके के लिए काठमांडू को भरोसा भारतीय टीके पर है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि भारत और नेपाल के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में लंबे समय से सहयोग चल रहा है। इसके अलावा टीके की कीमत और काठमांडू तक डोज पहुंचाने जैसे कारक भी नेपाल के लिए भारतीय टीके पहली पसंद बनकर उभरे हैं। नेपाल भारत के सीरम इंस्टीट्यूट से टीके खरीदना चाहता है। 

पड़ोसी देशों को प्रमुखता देगा भारत
कोरोना टीके के निर्यात पर भारत सरकार का कहना है कि पहले वह अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करेगी। इसके बाद टीका निर्यात के बारे में वह फैसला करेगी। ऐसा करने में कुछ सप्ताह का वक्त लग सकता है। भारतीय औषधीय नियामक की तरफ से दो टीकों की मंजूरी मिल जाने के बाद करीब दर्जन भर देशों ने भारतीय टीकों की मांग की है। नई दिल्ली का कहना है कि वह टीकों के निर्यात में अपने पड़ोसी देशों को प्रमुखता देगी।  

नेपाल के नए नक्शे पर खड़ा हुआ विवाद
गत मई में भारत ने लिपुलेख तक जाने वाली सामरिक रूप से अहम एक मार्ग का उद्घाटन किया। इस मार्ग पर नेपाल ने आपत्ति जताते हुए अपना एक विवादास्पद नक्शा पारित किया। नेपाल ने अपने इस नक्शे में कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया। नेपाल के इस नए राजनीतिक नक्शे पर विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए काठमांडू के इस कदम को 'दावों का कृत्रिम विस्तार' बताकर खारिज कर दिया। भारत इन इलाकों को शुरू से अपना हिस्सा मानता आया है। ओली सरकार के इस नए नक्शे और बिहार-नेपाल सीमा पर गोलीबारी की घटनाओं के बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि संबंधों को सामान्य बनाने की जिम्मेदारी नेपाल पर है।  

फिर पटरी पर आए संबंध
हालांकि बाद में रॉ प्रमुख समंत गोयल, सेना प्रमुख एमएम नरवणे और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला के काठमांडू दौरे के बाद संबंध दोबारा पटरी पर आना शुरू हुए। दोनों देशों के सुधरते रिश्ते के बीच पीएम ओली ने बयान देकर सीमा विवाद हवा देने की कोशिश की है। संसद के ऊपरी सदन को संबोधित करते हुए ओली ने राजनयिक बातचीत के जरिए लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को दोबारा वापस लाने का वादा किया है। हालांकि, इस संबोधन के दौरान उन्होंने भारत के साथ नेपाल के मजबूत संबंधों का भी हवाला दिया। ओली के इस बयान के बाद भारत क्या रुख अपनाता है यह देखने वाली बात होगी। नई दिल्ली ने इन तीनों क्षेत्रों को लेकर अपना आधिकारिक रुख पहले ही स्पष्ट कर दिया है। भारत अपने रुख में किसी तरह का बदलाव करेगा, इस बात की संभावना बेहद कम है। 

 
 

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