लीना मणिमेकलाई की डॉक्युमेंट्री के Poster पर माता काली (Maa Kaali) को जिस तरह से दिखाया गया है, उस पर इन दिनों काफी विवाद हो रहा है। ऐसे में मां काली की कहानी जानना जरूरी हो जाता है, मां काली को कितना जानते है आप? तो Times Now Navbharat पर पहली बार सुनिए मां काली की कहानी
आस्था बनाम अनास्था की लकीर लंबी होती जा रही है...टीवी पर हर दिन आप इसी से जुड़ी बहस देख और सुन रहे हैं लेकिन आज हम मां काली की पूरी आध्यात्मिक कहानी लेकर सामने आए हैं....कौन हैं देवी काली..उन्हें आदि से लेकर अंत तक में क्यों देखा जाता है, मां काली को पापनाशिनी क्यों कहा जाता है..और क्यों मां काली ने महादेव के सीने पर पैर रखा था आज ऐसे तमाम सवालों का जवाब आपको इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में मिलेगा
आदि मैं..अंत भी मैं..
सृजन मैं..नाश भी मैं..
मैं पापनाशिनी..मैं कालरात्रि..
शुंभ निशुंभ का अंत हूं मैं..
काली हूं..महाकाली मैं..
पूरी दुनिया में मां काली की चर्चा
मां काली को कितना जानते हैं आप ?
आज पूरी दुनिया में मां काली चर्चा में हैं वजह है ये पोस्टर जो कनाडा के टोरंटो शहर के आगा खां म्यूजियम में लगा था काली डॉक्युमेंट्री फिल्म के इस पोस्टर में मां काली को सिगरेट के साथ दिखाया गया है पोस्टर में जिस मां काली को प्रदर्शित किया गया है वो दुनिया भर के कालीभक्तों के भावनाओं को आहत करने के लिए काफी है...क्योंकि भक्तों की मां काली ऐसी दिखती हैं त्वचा काली...आभूषण के तौर पर नरमुंड का लंबा हार कई भुजाएं.. और जीभ बाहर की ओर....तो कहीं मां काली के चरणों में भगवान शंकर लेटे हुए दिखाई देते हैं....
जाहिर है इस पोस्टर ने पूरी दुनिया में हिंदु आस्था को आहत किया..जिस फिल्म का ये पोस्टर है उसकी डायरेक्टर लीना मणिमेकलाई के खिलाफ हिंदुस्तान के कई शहरों में एफआईआर दर्ज हो चुके हैं..लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई....कनाडा से मां काली पर जो संग्राम शुरू हुआ...वो कोलकाता पहुंच गया....वही कोलकाता जिसकी पहचान काली घाट और दक्षिणेश्वर काली मंदिर से है...बंगाल से लोकसभा में नुमाइंदगी करने वाली ममता बनर्जी की पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा ने मां काली पर जारी विवाद में आग में घी डालने का काम किया..महुआ मोइत्रा के मुताबिक वो देवी काली को एक मांस खाने वाली और शराब पीने वाली देवी के रूप में देखती हैं....लगे हाथ कांग्रेस सांसद शशि थरुर से लेकर स्वरा भास्कर ने महुआ मोइत्रा के स्टैंड को इंडसोर्स कर दिया...कोलकाता की सड़कों पर मां काली के भक्त अपने आराध्य देवी के अपमान के खिलाफ सड़कों पर उतर आए...
इस बीच मां काली के जिस फिल्म के पोस्टर पर सारा विवाद शुरू हुआ...उस फिल्म की डायरेक्टर लीना मणिमेकलई अब ये कह रही हैं कि हिंदुत्व कभी भारत नहीं बन सकता..जाहिर है मां काली को लेकर जारी विवाद अब हिंदुत्व की रक्षा का सवाल बन चुका है...लेकिन जिस मां काली को लेकर ये पूरा विवाद शुरू हुआ है...उस देवी काली के स्वरुप के बारे में हम और आप कितना जानते हैं....आज स्पेशल रिपोर्ट में बात इसी की होगी...
मां काली का असली स्वरुप क्या है ?
मां काली...काली क्यों हैं ?
मां काली...एग्रेसिव क्यों हैं ?
मां काली...गुस्से में क्यों दिखती हैं ?
मां काली...हंसते हुए क्यों नहीं दिखती हैं ?
मां काली को कालिका या महाकाली कई नामों से बुलाया जाता है...देवी काली.. माता पार्वती का ही काला स्वरुप हैं...जिनकी उत्पत्ति असुरों, दुष्टों और दानवों के संहार के लिए हुई थी...काली जी को शाक्त परम्परा की दस महाविद्याओं में एक भी माना जाता है....मां काली की पूजा तमाम हिंदू करते हैं लेकिन बंगाल, ओडिशा और असम में मां काली को विशेष तौर पर पूजा जाता है
आदिशक्ति है वो महाकाली है काली का अर्थ होता है काल
समय तो समय के आधार पर वो प्रगट होकर, अपने स्वरुप
शक्ति के माध्यम से तीन गुण से परे मां भगवती ने ब्रह्मा,
विष्णु, महेश को प्रगट किया और उनके माध्यम से सृष्टि
के क्रम को आगे बढ़ाया गया..इसलिए इनका नाम है महाकाली
मां काली के नाम में ही उनके नाम का मतलब छिपा है.....
काली का मतलब है काल या समय से पैदा हुईं...
श्रीदुर्गा सप्तशती के मुताबिक काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अंबा के ललाट से हुई थी..
महाकाली जी का जो स्वरुप है वो भक्तों
के लिए कल्याणकारी है और दैत्यों के लिए
दुष्टों के लिए विनाशकारी है, देवासुर जब संग्राम
हुआ था उसमें दैत्यों का विनाश करने के लिए
मां दुर्गा ने अपने अनेक रूप धारण किए
और उन रूपों में जो है मां ने अनेक दैत्यों का विनाश
किया..उन दैत्यों में एक दैत्य था रक्तबीज
ज्यादातर तस्वीरों में मां काली के चरणों में देवों के देव महादेव लेटे हुए दिखाई देते हैं....देवी काली के चरण भोलेबाबा के सीने पर...और जीभ बाहर की ओर होती है....लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों भगवान शंकर मां काली के चरणों के नीचे आ गए...क्यों मां काली ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली...दरअसल मां काली की कई कथाओं में से एक है रक्तबीज नाम के एक दैत्य की कथा...
दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय में रक्तबीज वध का जिक्र है
दैत्य रक्तबीज को भगवान ब्रह्मा का वरदान था
युद्ध में अगर रक्तबीज के शरीर से एक भी खून की बूंद जमीन पर गिरेगी तो उससे नया रक्तबीज जन्म लेगा
रक्तबीज ने अपने इस वरदान का इस्तेमाल देवताओं में आतंक फैलाने के लिए करने लगा...आतंक इतना बढ़ गया कि दानवों और देवताओं में युद्ध हुआ.. लेकिन जैसे-जैसै रक्तबीज का खून जमीन पर गिरता गया एक-एक कर सैकड़ों दैत्य पैदा होते गए..इसलिए रक्तबीज को हराना नामुमकिन हो रहा था..
इसके बाद देवताओं ने मां काली की शरण ली..देवताओं की मदद के लिए मां काली ने विकराल रूप धारण किया.. मां काली के हाथों में अस्त्र-शस्त्र, एक हाथ में खप्पर और गले में खोपड़ियों की माला थी...मां काली ने अपनी जीभ को लंबा किया और रक्तबीज की एक भी खून की बूंद को धरती पर नहीं गिरने दिया..
काली माता ने दैत्य रक्तबीज का पूरा रक्त पी लिया लेकिन उनके अंदर इतना गुस्सा आ गया कि देवता...मां काली को शांत करने में असमर्थ रहे...तब देवताओं ने भोलेनाथ से विनती कि कि वो महाकाली को शांत कराएं...जब भगवान शिव ने कई बार कोशिश के बावजूद काली मां के को क्रोध को शांत करने में असफल रहे...तो फिर उन्होंने मां काली के चरणों के पास जाकर लेट गए...इसके बाद मां काली को एहसास हुआ कि वो उनका पैर देवाधिदेव के शरीर पर है...तब जाकर कालीजी का गुस्सा शांत हुआ...
रक्तबीज का वध करने के समय ही जो है उन्होंने जिव्हा के द्वारा उसके एक एक बूंद रक्त को पी गई थी, चाट लिया था, ताकि कोई रक्त न रह जाए..इसलिए मां की जिव्हा उसी समय लपलपाती हुई तलवार की भांति बिजली की भांति जैसे कड़कती है आकाश मंडल में उस प्रकार से वो अपने पूर्ण शक्ति के साथ दानवों के आसुरी शक्ति को पीती थीं, इसलिए मूर्ति में जीभ के उस स्वरुप को दर्शाया गया है
नवरात्र के सातवें दिन माता के कालरात्रि रुपरुप की पूजा होती है....यहां माता गले में विद्युत की माला धारण करती है...इनके बाल खुले हुए हैं..और गर्दभ की सवारी करती है...कलियुग में 3 देवी-देवताओं जाग्रत कहे गए हैं...बजरंगबली, कालिका और भैरव...माता कालिका की उपासना जीवन में सुख, शांति, शक्ति, विद्या देने वाली बताई गई है...माता काली के इसी कालिका स्वरुप की खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा होती है
माता सती के 52 शक्तिपीठों में ये कोलकाता है कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर...इस पूरे इलाके को कालीघाट कहते हैं...मान्यताओं के मुताबिक यहां सती के दाहिने पैर की चार अंगुलियां गिरी थीं...और यही मां काली के महान भक्त रहे रामकृष्ण परमहंस की आराध्य देवी मां कालिका का निवास भी हैं...
रामकृ्ष्ण परमहंस ने खुद को मां काली को समर्पित कर दिया था...उनकी दिलचस्पी सिर्फ कालीजी में थी। जब वह उनके भीतर प्रबल होतीं, तो वो आनंदविभोर हो जाते और नाचना-गाना शुरू कर देते। जब वो थोड़े मंद होते और काली से उनका संपर्क टूट जाता, तो वो किसी छोटे बच्चे की तरह रोना शुरू कर देते..परमहंसजी ने खुद कहा था कि मैं सिर्फ काली को चाहता हूं, बस..जैसे एक बच्चा अपनी मां को चाहता है
रामकृष्ण परमहंस ने पूरी जीवन मां काली के भक्त के तौर पर बिताया...उनके लिए देवी काली कोई देवी नहीं थीं.. वो एक जीवित हकीकत थीं...काली उनके सामने नाचती थीं, उनके हाथों से खाती थीं, उनके बुलाने पर आती थीं और उन्हें आनंदविभोर छोड़ जाती थीं..और यही हकीकत भी है...
रामकृष्ण परमहंस जब बीमार पड़े तो उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उन्हें सलाह दी...कहा कि काली मां से रोग मुक्ति के लिए आप कह दें....जानते हैं इस पर रामकृष्ण परमहंस का क्या जवाब था..उन्होंने कहा कि इस तन पर मां का अधिकार है...मैं क्या कहूं..जो वो करेगी मेरे लिए अच्छा ही करेगी...15 अगस्त 1886 में तीन बार मां काली का नाम उच्चारण कर रामकृष्ण परमहंस समाधि में लीन हो गए...दरअसल रामकृष्ण परमहंस समझते थे उन्होंने मां काली का हाथ नहीं पकड़ा हुआ है बल्कि मां काली ने उनका हाथ पकड़ा हुआ है
काली को तंत्र मंत्र की देवी भी कहा जाता है...तो उनमें शक्ति और बुराइयों से लड़ने वाली शक्ति भी है... उनके भगवान शिव के बाल स्वरुप के सामने उनके मातृरूप का भी बखान है...वो पार्वती का एक अंग हैं तो शिव और शक्ति के करीब भी हैं...वो त्रिशूल से लेकर हंसुली और खडग जैसे कई शस्त्रों का इस्तेमाल करती हैं...मां काली न सिर्फ भगवान शिव की शक्ति हैं,,,,वो स्वामी विवेकानंद की भक्ति में भी हैं
स्वामी विवेकानंद जिंदगी भर मां काली के परम उपासक रहे...मां काली से स्वामी विवेकानंद की इस आशक्ति के पीछे की कहानी शायद आप नहीं जानते होंगे..युवावस्था में भी स्वामी विवेकानंद के पिता का देहांत हो गया था..परिवार में आर्थिक तंगी आई गई...तब पढ़ाई कर रहे नरेंद्र पर नौकरी का दबाव बढ़ गया..परेशान युवा नरेंद्र अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचे...रामकृष्ण परहंस ने उन्होंने मां काली से आर्थिक तंगी दूर करने को लेकर उपासना करने को कहा...स्वामी विवेकानंद मां की मूर्ति के सामने पहुंचे...और प्रार्थना कर उनसे विवेक, वैराग्य और भक्ति की मांग की..जब मां की पूजा कर स्वामी विवेकानंद लौटे तो गुरु रामकृष्ण ने उनसे पूछा क्या मां से आर्थिक तंगी दूर करने की प्रार्थना की...तो उन्होंने जवाब दिया नहीं...गुरु ने उन्हें तीन बार भेजा और हर बार युवा नरेंद्र ने यही किया...इसके बाद गुरु रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कभी खाने और कपड़े की कमी न हो...और हुआ भी ऐसा ही...
नरेंद्र नाथ दत्त यानी स्वामी विवेकानंद ही क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मां काली के अनन्य भक्तों में से एक हैं....मां काली को लेकर इनकी भक्ति ही है जब वो पिछले साल मार्च में बांग्लादेश की अधिकारिक यात्रा पर गए थे तो यहां वो सबसे पहले जेशोरेश्वरी काली मंदिर पहुंचे...पूरे विधि विधान से माता की पूजा की..बतौर भक्त उन्होंने कोरोना महामारी से उबरने की प्रार्थना मां काली से की थी...अब ये मां काली का ही प्रताप कह सकते हैं कि आज हिंदुस्तान कोरोना के खिलाफ जारी जंग को जीतने के करीब है...
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
मां काली का वरदहस्त आज मानव जात
जिस कोरोना के कारण अनेक संकटों से
गुजर रही है मां से यही प्रार्थना है कि पूरी
मानव जात को इस कोरोना के संकट
से जल्द से जल्द मुक्ति दिलाएं
प्रधानमंत्री मोदी कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के दरबार में भी कई बार हाजिरी लगाकर माता का आशीर्वाद ले चुके हैं...ये है गुजरात की ऊंची पड़ाही पर बसा पावागढ़ मंदिर..यहां मौजूद काली मां को महाकाली कहा जाता है...कहते हैं यहां माता का जागृत दरबार सजता है...लेकिन यहां पिछले पांच सौ सालों से पताका नहीं फहराया रहा रहा था...
मंदिर के शिखर को लगभग 500 साल पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने तबाह कर दिया था मंदिर के शिखर पर पहले हजरत सदनशाह वाली पीर दरगाह खड़ी थी आम सहमति से मंदिर के ऊपर बनी दरगाह को वहां से हटाया था और 125 करोड़ रुपए की लागत से मां काली के इस मंदिर का पुनरुद्धार भी हुआ
पिछले महीने की 18 तारीख को इसका उद्घाटन खुद मां काली के भक्त पीएम मोदी ने किया था..
मां काली के चरणों में आकर क्या मांगू
मां काली का आशीर्वाद लेकर, इतिहास गवाह है
स्वामी विवेकानंद जी मां काली का आशीर्वाद लेकर के
जन सेवा से प्रभु सेवा में लीन हो गए थे...मां मुझे
भी आशीर्वाद दे कि मैं और अधिक ऊर्जा के साथ
और अधिक त्याग और समर्पण के साथ
देश के जन-जन का सेवक बनकर उनकी सेवा करता रहूं
हमने आपको मां काली के कई स्वरुपों से आपको वाकिफ कराया...लेकिन मां काली के जिस स्वरुप को इस फिल्म के पोस्टर के जरिए बताने की कोशिश की गई....जिसतरह मां काली को लेकर टीएमएसी सांसद महुआ मोइत्रा की कल्पना है...वो माता काली को लेकर दुनिया भर के सौ करोड़ से ज्यादा हिंदुओं की सनातनी सोच से कहीं मेल नहीं खाती है...और यही वजह है मां काली पर आज संग्राम छिड़ा हुआ है।
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