नई दिल्ली: बात साल 1991 की है, जब भारतीय जनता पार्टी, राम लहर पर सवार होकर उत्तर प्रदेश में पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने जा रही थी। पार्टी को 425 सीटों में से 221 सीटें मिली थी। और उस समय दो नेताओं के बीच मुख्य मंत्री की कुर्सी फंसी हुई थी। भाजपा उस समय उच्च वर्ग की पार्टी मानी जाती थी और ऐसा लग रहा था कि प्रदेश के कद्दावर नेता कलराज मिश्र को मुख्य मंत्री की कुर्सी मिल जाएगी। लेकिन समीकरणों ने कल्याण सिंह का साथ दिया और भाजपा ने एक ओबीसी को मुख्य मंत्री बना दिया। प्रदेश की राजनीति और भाजपा की राजनीति में यह अहम मोड़ था। क्योंकि इसके पहले ओबीसी वर्ग से मुलायम सिंह ही प्रदेश के मुख्य मंत्री बन कर प्रमुख नेता बनकर खुद को स्थापित कर पाए थे। लेकिन भाजपा ने उसमें भी एक कदम आगे जाते हुए अति पिछड़े वर्ग के लोध नेता कल्याण सिंह को प्रदेश की कमान सौंप दी थी। और भाजपा ने उस समय जो नींव रखी थी, उसका फायदा वह 2014 के चुनावों से उठा रही है।
भाजपा के लिए बना आधार
भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री उमा भारती उस दौर को याद करते हुए टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहती हैं "कल्याण सिंह पिछड़े वर्ग से आते थे और यह वह समय था जब पिछड़े वर्ग के लोग भाजपा से परहेज करते थे। क्योंकि उस वक्त इस वर्ग को ऐसा लगता था कि भाजपा उनके बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचती है। जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो पिछड़े वर्गों को यह लगा कि भाजपा में भी हमारे लिए जगह हो सकती है। उन्होंने भाजपा के लिए आधार तैयार किया और उसी राजनीति को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी विस्तार दे रहे हैं।"
उमा भारती की बातों पर सहमति जताते हुए लखनऊ में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया "देखिए भाजपा ने ओबीसी वर्ग में बहुत अच्छी तरह से सेंध लगाई है। पार्टी ने ओबीसी जातियों की महत्वाकांक्षा और मजबूती को समझा, जिसका उन्हें 2014, 2017 और 2019 के चु्नावों में दिखा है। जहां तक कल्याण सिंह को मुख्य मंत्री बनाने के कदम की बात है तो यह कदम 1991 में एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक था। क्योंकि कल्याण सिंह को मुख्य मंत्री बनाने से पार्टी ने उस मिथक को तोड़ दिया, कि वह केवल उच्च वर्ग की पार्टी है। बाद में कल्याण सिंह ने भी अपने बेहतर छवि और कार्यशैली से उसे और मजबूत किया। हालांकि उन्होंने कभी भी मुलायम सिंह या मायावती की तरह उस वोट बैंक को अपनी व्यक्तिगत पार्टी के रुप में नहीं खड़ा किया। उन्होंने भाजपा को समावेशी बनाने में मदद की।"
भाजपा ने ऐसे बदला समीकरण
प्रदेश में ओबीसी वर्ग में गैर यादवों की आबादी 35 फीसदी है। जिसका भाजपा ने बेहद बखूबी से 2014 के लोक सभा चुनाव से उठाना शुरू किया। शशिकांत कहते हैं "उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। वहां पर 5000-7000 वोट भी विधान सभा चुनावों में मायने रखते हैं।" भाजपा ने कुर्मी पर प्रभाव रखने वाले अपना दल के साथ 2014 में गठबंधन किया और साल 2017 में ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और 2019 में निषाद पार्टी के साथ गठजोड़ करके अधिकांश पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पहुंच का विस्तार किया था। हालांकि ओपी राजभर ने 2019 में भाजपा से नाता तोड़ दिया और अब भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाकर उसी ताकत से किंग मेकर बनना चाहते हैं।
सपा-कांग्रेस ने भी बदली रणनीति
भाजापा की इस रणनीति को विपक्षी दल भी समझ चुके हैं। इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी ने 9 अगस्त से प्रदेश के कई इलाकों में ओबीसी सम्मेलन शुरू कर दिया है। इसी तरह कांग्रेस भी ऐसे ही कदम उठा रही है। कांग्रेस की रणनीति को प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के 21 जुलाई के ट्वीट से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने लिखा था "मौर्य/कुशवाहा/शाक्य/सैनी समाज को भाजपा सरकार ने क्या दिया? नौकरी में, संस्थानों में, शिक्षा में प्रतिनिधित्व शून्य है। संघर्ष और वोट के समय भाजपा को यह समाज याद आता है। भाजपा ने आपके समाज के प्रतिनिधित्व को कमजोर किया, विश्वासघात किया। भाजपा सत्ता की भूखी है,पिछड़ा विरोधी है।" साफ है कि 2022 के चुनावों को देखते हुए सभी दलों ने ओबीसी वर्ग की जातियों को लुभाने की कवायद शुरू कर दी है। शशिकांत कहते हैं कि अगर मुस्लिम मतदाताओं को मिला दिया जाय तो यह मजबूत समीकरण बनाता है। क्योंकि उसके बाद प्रदेश के 42 फीसदी मतदाता का समूह तैयार होता है। अगर विपक्षी दल इन मतदाताओं को लुभाने में कामयाब होते हैं तो भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।