बीवी को महज आमदनी का जरिया मानता था शख्स, 'कैश काऊ' का जिक्र कर बोला HC- यह तो क्रूरता है

देश
भाषा
Updated Jul 20, 2022 | 16:29 IST

महिला ने कहा कि उसने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में नौकरी की और परिवार का कर्ज चुकाया। उसने अपने पति के नाम पर कृषि भूमि भी खरीदी, पर व्यक्ति वित्तीय रूप से स्वावलंबी होने की बजाय पत्नी की आय पर भी निर्भर रहने लगा।

karnataka hc, bengaluru, state news
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • शख्स को कुछ साल में बीवी ने 60 लाख रुपए किए थे ट्रांसफर
  • कोर्ट ने कहा- याचिकाकर्ता को झेलनी पड़ी मानसिक परेशानी व भावनात्मक उत्पीड़न
  • बेंच ने फैसला सुनाते हुए दंपति को दे दी तलाक की अनुमति

पति का पत्नी को महज ‘आमदनी' का जरिया मानना क्रूरता है। यह टिप्पणी बुधवार (20 जुलाई, 2022) को कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से आई। दरअसल, अदालत इस दौरान तलाक की अर्जी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था। जजों को जब यह पता चला कि शख्स बीवी को केवल "आमदनी का एक जरिया" मानता था तो उन्होंने इस केस में दंपती को तलाक की मंजूरी दे दी। 

मामले में महिला ने अपने बैंक खातों के ब्यौरे और बाकी डॉक्यूमेंट्स सौंपे, जिसके अनुसार उसने अपने पति को पिछले कुछ सालों में 60 लाख रुपये ट्रांसफर किए थे। जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जे.एम.काजी की बेंच इस बाबत बोली, “यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी (पति) ने याचिकाकर्ता को मात्र आमदनी का एक साधन (कैश काऊ) माना और उसका उसके प्रति कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं था। प्रतिवादी का रवैया अपने आप में ऐसा था, जिससे याचिकाकर्ता को मानसिक परेशानी और भावनात्मक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इससे मानसिक क्रूरता का आधार बनता है।”

वैसे, महिला ने इससे पहले तलाक की अर्जी एक पारिवारिक अदालत में दी थी, पर साल 2020 में वह खारिज कर दी गई थी। बाद में उसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट के आदेश को यह कहकर खारिज कर दिया कि पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता (पत्नी) की दलील न सुनकर बड़ी गलती की।

दरअसल, दंपती ने 1999 में चिक्कमगलुरु में शादी की थी। साल 2001 में उनका एक बेटा हुआ और पत्नी ने 2017 में तलाक की अर्जी दी थी। महिला ने दलील दी कि उसके पति का परिवार वित्तीय संकट में था, जिससे परिवार में झगड़े होते थे। महिला ने कहा कि उसने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में नौकरी की और परिवार का कर्ज चुकाया। उसने अपने पति के नाम पर कृषि भूमि भी खरीदी, पर व्यक्ति वित्तीय रूप से स्वावलंबी होने की बजाय पत्नी की आय पर भी निर्भर रहने लगा।

महिला ने याचिका में कहा कि उसने अपने पति के लिए यूएई में 2012 में एक सैलून भी खुलवाया, लेकिन वह 2013 में भारत लौट आया। निचली अदालत में तलाक की याचिका में पति पेश नहीं हुआ और मामले पर एकपक्षीय फैसला सुनाया गया। निचली अदालत ने कहा था कि क्रूरता का आधार सिद्ध नहीं होता।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर