IAC Vikrant Countdown: देश के पहले स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट कैरियर का काउंटडाउन शुरू हो गया है। और कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी IAC Vikrant को नौसेना को सौपेंगे। इसके साथ ही भारत दुनिया के उन 6 देशों के एलीट ग्रुप में शामिल हो जाएगा, जो कि 40 हजार टन का एयरक्रॉफ्ट करियर बनाने में सक्षम हैं। इसके अलावा आईएसी विक्रांत की खासियत यह है कि इसमें 76 फीसदी कल-पुर्जे स्वदेशी है। यानी भारत ने यह दिखा दिया है कि वह एयरक्रॉफ्ट कैरियर जैसे युद्धपोत बनाने में पूरी तरफ से सक्षम है। आईएसी विक्रांत एक चलता-फिरता शहर हैं। जिसमें कई ऐसी खूबियां यहां जो इसे दूसरे युद्धपोत से अलग बनाती हैं।
20 हजार करोड़ की लागत से बना IAC विक्रांत
रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, IAC विक्रांत की लंबाई 262 मीटर है। और उसका वजन करीब 45,000 टन है। इस युद्धपोत में 88 मेगावाट बिजली की चार गैस टर्बाइनें लगी हैं ।और इसकी अधिकतम गति 28 (नॉट) समुद्री मील है। और इसे बनाने में करीब 20,000 करोड़ की लागत आई है। जिसका निर्माण पब्लिक सेक्टर कंपनी कोचीन शिपयॉर्ड ने किया है। इसके निर्माण के तीन चरण है। जो मई 2007, दिसंबर 2014 और अक्टूबर 2019 में में पूरे हुए हैं।
यह युद्धपोत, स्वदेश निर्मित उन्नत किस्म के हल्के हेलीकाप्टर (एएलएच) और हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) के अलावा MIG-29 लड़ाकू जेट, कामोव-31, एमएच-60आर और मल्टी रोल हेलीकाप्टरों के साथ 30 विमानों से युक्त एयर विंग के संचालन में सक्षम है।
इसके अलावा IAC विक्रांत को कम एरिया में एयरक्रॉफ्ट के टेक ऑफ और लैंडिंग के लिए खास तौर से डिजाइन किया गया है। इसके लिए STOBAT (शॉर्ट टेक-ऑफ बट, आरेस्टेड लैंडिंग) के रूप में डिजाइन किया गया है। जिसमें आगे का हिस्सा ज्यादा उठा हुआ है। इस डिजाइन से एयरक्रॉफ्ट कम जगह में आसानी से टेक ऑफ और लैंड कर सकता है।
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2 फुटबॉल के मैदान के बराबर है IAC विक्रांत
IAC विक्रांत अपने साइज और सुविधाओं के लिए भी अहम स्थान रखता है। इसका किचन, हैंगर, अस्पताल और दूसरी सुविधाएं भी इसे खास बनाती है। भारतीय नौसेना द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इसकी कुछ निम्नलिखित खासियत हैं..
स्ट्रिंग ऑफ पर्ल का IAC विक्रांत बनेगा जवाब
IAC विक्रांत भारत की सुरक्षा के नजरिए से बेहद अहम है। इसके जरिए हिंद महासागर में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल रणनीति पर नकेल कसा जा सकेगा। स्ट्रिंग ऑफ पर्ल रणनीति के तहत चीन भारत के चारों ओर अपने नौसैनिक अड्डों का ऐसा बेस बना रहा है। साथ ही इसके जरिए वह एशिया प्रशांत क्षेत्र से होने वाले व्यापार पर भी,नियंत्रण रखना चाहता है। इसके लिए वह दक्षिण एशिया के छोटे-छोटे देशों में सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डों का निर्माण कर रहा है। इसमें वह बांग्लादेश, म्यामांर में नौसैनिक बेस की स्थापना में मदद कर रहा है। इसके अलावा चीन मालदीव में भारत से बेहद करीब एक कृत्रिम द्वीप भी बना रहा है। इसी तरह उसने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए लीज पर ले लिया है। वहीं वह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को नेवल बेस के रूप में विकसित कर रहा है। जाहिर है चीन की इस रणनीति से निपटने में भारत का IAC विक्रांत बेहद कारगर हो सकता है।
ग्लोबल फॉयर पॉवर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत इस समय सैन्य क्षमता के मामले में दुनिया का चौथा सबसे शक्तिशाली देश है। जबकि चीन तीसरा सबसे शक्तिशाली देश है। वहीं अगर नौसेना की बात की जाय तो भारत के पास चीन की तरह ही अब 2 एयरक्रॉफ्ट कैरियर होंगे।
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