IAC Vikrant: समुंदर का सिंकदर कहा जा रहा हिंदुस्तान का स्वदेसी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत (IAC Vikrant) शुक्रवार (दो सितंबर, 2022) को भारतीय नौसेना का हिस्सा बन गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के कोच्चि में एक कार्यक्रम के दौरान इसे देश को समर्पित किया।
देश के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर को देश को समर्पित कर पीएम बोले- विक्रांत विशाल है, विराट है, विहंगम है। विक्रांत विशिष्ट है, विक्रांत विशेष भी है। विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है। ये 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जबकि विक्रांत की कमीशनिंग समारोह में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि 'अमृतकाल' के प्रारंभ में INS विक्रांत की कमीशनिंग अगले 25 वर्षों में राष्ट्र की सुरक्षा के हमारे मजबूत संकल्प को दर्शाती है। INS विक्रांत आकांक्षाओं और आत्मनिर्भर भारत का एक असाधारण प्रतीक है।
विक्रांत का अर्थ विजयी और वीर होता है। साल 1971 के युद्ध में अहम भूमिका निभा चुके देश के पहले विमानवाहक पोत के नाम पर इसका नाम रखा गया है। भारतीय नेवी के इतिहास में यह सबसे बड़ा वॉरशिप (जंगी जहाज) है। 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा आईएनएस विक्रांत 18 समुद्री मील से लेकर 7500 समुद्री मील की दूरी तय कर सकता है।
सबसे रोचक बातें हैं कि इसका फ्लाइंग डेक लगभग दो फुटबॉल ग्राउंड जितना बड़ा बड़ा है। अगर इसके डेक पर आप पैदल चलें तो आठ किमी के आसपास पैदल चलना पड़ जाएगा। पोत का वजन लगभग चार आइफिल टावर (पेरिस) जितना है।
आईएनएस विक्रांत अपने साथ 30 फाइटर प्लेन एक साथ ले जा सकेगा। हथियारों से लैस इस पोत की चौड़ाई 60 मीटर है, जिसमें 15 मंजिल हैं। 1400 से 1600 जवान इस पर रह सकते हैं। 2400 कंपार्टमेंट हैं। इसमें महिला अधिकारियों और नाविकों को समायोजित करने के लिए विशेष केबिन शामिल हैं।
जहाज में नवीनतम चिकित्सा उपकरण सुविधाओं के साथ एक पूर्ण अत्याधुनिक चिकित्सा परिसर है जिसमें प्रमुख मॉड्यूलर ओटी (ऑपरेशन थिएटर), आपातकालीन मॉड्यूलर ओटी, फिजियोथेरेपी क्लिनिक, आईसीयू, प्रयोगशालाएं, सीटी स्कैनर, एक्स-रे मशीन, दंत चिकित्सा परिसर, आइसोलेशन वार्ड और टेलीमेडिसिन सुविधाएं आदि हैं।
यह स्वदेश निर्मित उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) और हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) के अलावा मिग-29 के लड़ाकू जेट, कामोव-31 और एमएच-60 आर बहु-भूमिका वाले हेलीकॉप्टरों सहित 30 विमानों से युक्त एयर विंग को संचालित करने में सक्षम होगा।
इस पोत को बनाने में 13 साल लग गए, जबकि इसके आने के बाद भारत उन छह मुल्कों में शुमार हो गया, जिनके पास अपनी खुद की युद्धपोत बनाने की क्षमता है। हिंदुस्तान को यह पोत मिलने के बाद सैन्य और समुद्र में सुरक्षा के मोर्चे पर चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ सकती है।
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