कोलकाता। बंगाल की सियासत में हमेशा लड़ाई 148 की होती रही है। आप आश्चर्य में पड़ सकते हैं कि आखिर लड़ाई 118 की ही क्यों तो जनाब इस सवाल का जवाब साफ है। दरअसल पश्चिम बंगाल की विधानसभा में कुल 294 सदस्य चुने जाते हैं और सरकार बनाने के लिए जो मैजिक फिगर होता है वो 148 का होता है। लिहाजा पूरी लड़ाई 148 सीटों की है। अगर बात बंगाल की सियासत करें तो करीब एक दशक पहले जब ममता बनर्जी ने लेफ्ट का किला ढहा दिया तो वो घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। अब सवाल यह है कि क्या 2021 एक बार फिर इतिहास लिखने के लिए तैयार है, इसे देखना अहम होगा।
टीएमसी में मची है भगदड़
जिस तरह से पेड़ों से पत्ते झड़ते हैं ठीक उसी तरह से टीएमसी में भगदड़ मची है। एक एक कर कई दिग्गज पार्टी को छोड़ चुके हैं जिसमें दो नाम अहम हैं जो ममता कैबिनेट में मंत्री भी थे। नंदीग्राम में पार्टी के बड़े चेहरे रहे शुभेंदु अधिकारी अब बीजेपी में हैं, इसके साथ ही वन मंत्री रहे राजीन बनर्जी भी अब ममता का साथ छोड़ चुके हैं। इसके साथ ही हावड़ा से विधायक वैशाली डालमिया को टीएमसी बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। अब सवाल यह है कि चुनाव से ऐन पहले जिस तरह से टीएमसी वाली नाव पर सवारी करने से कतरा रहे हैं वैसे हालात में ममता बनर्जी नबन्ना पर अपना पताका फहरा पाएंगी।
118 सीटों की लड़ाई में कौन पड़ेगा भारी
अगर मौजूदा विधानसभा की बात करें तो टीएमसी के पास करीब 200 सीटें है तो क्या ममता 2016 के प्रदर्शन को दोहरा पाएंगी। या 2011 में जिस तरह से उन्होंने वाम दलों के किले को ढहा दिया था ठीक वैसे ही बीजेपी इतिहास लिखने की तैयारी में है। जिस तरह से टीएमसी के दिग्गजों ने पार्टी छोड़ी है क्या वो जमीनी स्तर पर अपने समर्थकों के मतों को बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर करवा सकेंगे। यह सब ऐसे सवाल है जिसका जवाब इसलिए अहम है क्योंकि 118 का आंकड़ा ही इस बात का फैसला करेगा कि 2021 में बंगाल की सत्ता पर काबिज होगा।
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