Independence Day, Har Ghar Tiranga Abhiyan 2022: इस अभियान का उद्देश्य 13 से 15 अगस्त 2022 तक देश भर में झंडे फहराना है। इस अभियान के पीछे का विचार लोगों के मन में देशभक्ति की भावना जगाना और जनभागीदारी की भावना के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आवाम से राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को प्रोफ़ाइल पिक्चर के तौर पर लगाने का भी आहान किया है।
क्या आप जानते हैं हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमेशा से अपने इस रूप में नहीं था। समय दर समय इसमें कई बदलाब हुए हैं। हम सबके मन में तिरंगे के प्रति प्रेम और निष्ठा है लेकिन तिरंगे को फहराने के लिए जो नियम, रिवाज़ और औपचारिकताएं हैं उनकी जानकारी बहुत कम लोगों को ही होती है। आइए आगामी कुछ पैराग्राफ में आपको तिरंगे से जुडी सभी जरूरी बातों से अवगत कराते हैं, नीचे दी जा रही समस्त जानकारी भारतीय सरकार की वेबसाइट 'राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र' से ली गई है।
तिरंगे का इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में "तिरंगे" का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है।
तिरंगे की बनाबट कैसी होती है?
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे के रंगो का महत्त्व और चक्र
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
सफेद पट्टी पर मौजूद चक्र को धर्म चक्र या विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
ध्वज संहिता
2002 से पहले घरों, कार्यालयों पर ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी, 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिली। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
ध्वज को फहराते हुए किन बातों का ध्यान रखना होगा-
क्या करें:
राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है।
किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
क्या न करें:
इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
किसी अन्य ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है।
किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
फटा हुआ या गन्दा मैला ध्वज नहीं फहराना चाहिए
ध्वज को सजावट के तौर पर उपयोग नहीं किया जा सकता
जब कभी आप कागज़ का झंडे का इस्तेमाल करें तो समाहरोह के बाद उन ध्वजों का निपटारन उनकी मर्यादा के अनुरूप एकांत में किया जाना चाहिए
ध्वज को सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
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