चीन की ही पुरानी रणनीति अपनाकर उसे हरा सकता है भारत? क्या हैं अमेरिकी विशेषज्ञ की इस सोच के मायने?

देश
प्रभाष रावत
Updated May 07, 2020 | 17:13 IST

अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि अगर कभी भारत- चीन के बीच में युद्ध हुआ तो कोरियाई युद्ध में जो रणनीति बीजिंग ने अपनाई थी उसी का इस्तेमाल भारत ड्रैगन को हरा सकता है।

Report Suggest India can defeat China in war
युद्ध में चीन को परास्त कर सकता है भारत (प्रतीकात्मक तस्वीर)  |  तस्वीर साभार: BCCL

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच सैन्य ताकत और रक्षा बजट में काफी फासला है, आधुनिकता और सेना की विशालता में भी पड़ोसी देश भारत से आगे दिखता है लेकिन कोरियाई युद्ध में जो रणनीति चीन ने अमेरिका के खिलाफ अपनाई थी अगर उसका इस्तेमाल भारत करे तो वह चीन को हरा सकता है।- यह विचार अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन से जुड़े रहे एक विशेषज्ञ के हैं, आइए समझते हैं कि आखिर इस बयान का मतलब क्या है और वास्तव में इसके क्या मायने हैं।

पेंटागन के पूर्व रणनीतिकार और सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के सदस्य क्रिस डगर्टी (Chris Dougherty) का कहना है, 'भारत और अमेरिका में रणनीतिकार और सैन्य बल, चीन की सैन्य आधुनिकीकरण और बढ़ती आक्रामक विदेश नीति से पैदा हुई चुनौतियों का एक समान रूप से जूझ रहे हैं।'

मौजूदा समय में कोरोना के कहर और चीन के इस पर रहस्यमय रुख को लेकर दुनिया वैसे ही तिलमिलाई हुई है और इस बीच चीन की सैन्य गतिविधियां और आक्रामक रणनीति पूरी दुनिया में बढ़ती ही चली जा रही है। चीन जिस रफ्तार से अपने सैन्य हथियारों के बेड़े का विस्तार कर रहा है वह न सिर्फ अमेरिकी या भारत बल्कि दुनिया के तमाम देशों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। इसी बीच अमेरिकी विशेषज्ञ ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से भविष्य की संभावित परिस्थितियों और एशियाई क्षेत्र में पैदा होने वाले संभावित तनाव पर विस्तृत राय रखी है। इसी दौरान उन्होंने भारत के लिए चीन को हराने में कारगर रणनीति पर भी बात की है।

भारत को अपनानी चाहिए चीन की ही रणनीति: चीन के पास बड़ी और तकनीकी रूप से अधिक उन्नत सैन्य शक्ति मौजूद है लेकिन इसके बावजूद भारत उसे कैसे हरा सकता है? इसके जवाब में क्रिस डगर्टी कहते हैं- अनिवार्य रूप से उसी रणनीति का उपयोग करके जो चीन ने 1950-53 में कोरियाई युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका से सफलतापूर्वक लड़ने के लिए इस्तेमाल की थी। हिट-एंड-रन रणनीति जिसमें भारतीय सेना हिमालय के पहाड़ों और नीचे घाटियों में चीनी सैनिकों को चकित करके हुए हमला कर सकती है।


(प्रतीकात्मक तस्वीर)

रक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि अमेरिका पश्चिमी प्रशांत की सुरक्षा के बारे में चिंतित है, जबकि भारत को चीन के साथ अपनी विवादित हिमालय सीमा के बारे में चिंता करनी चाहिए, जिस पर दोनों देशों ने 1962 में लड़ाई लड़ी थी। साथ ही हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति भी चिंता का सबब है।

अमेरिका के खिलाफ कैसे लड़ा था चीन: पेंटागन के पूर्व रणनीतिकार ने अपने विश्लेषण में कोरियाई युद्ध में चीन की रणनीति का जिक्र किया। जिसके अनुसार, 1950 में चीन को इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा, जब उसने संयुक्त राष्ट्र के खिलाफ 300,000 से अधिक बीमार-पीड़ित किसान सैनिकों को भेजा था। ज्यादातर अमेरिकी बल बेहतर रूप से गोला बारूद, रसद, वायु और नौसेना के वर्चस्व से लैस थे। फिर भी अचानक हमले और चकमा देने की रणनीति का उपयोग करके, उत्तरी कोरिया के पहाड़ों का इस्तेमाल करते हुए, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने 1950-51 की सर्दियों में अमेरिकी सेना को हराकर उसे लगभग बर्बाद दिया था, इसमें एक अमेरिकी इंफेंट्री डिविजन तो बुरी तरह तरस नहस हो गई थी।

हिमालय में रणनीति बदलने की जरूरत: ऱक्षा विशेषज्ञ लिखते हैं कि भारत हिमालय की लंबी पहाड़ी सीमा पर हल्की ताकत के साथ रक्षात्मक मुद्रा में रहता है जबकि इसकी बजाय कुछ अहम बिंदुओं पर बेहद आक्रामक रुख की रणनीति ज्यादा बेहतर हो सकती है।


(प्रतीकात्मक तस्वीर)

अमेरिकी विशेषज्ञ का कहना है कि भारत के पास आक्रामक साइबर वॉरफेयर, लंबी दूरी के सटीक हथियार, हाइपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल, समुद्री निगरानी और एंटी-सैटेलाइट तकनीक में अधिक निवेश सहित कई विकल्प शामिल हैं। उसे विमान वाहक पोत जैसे महंगे सतह के जहाजों के बजाय, पनडुब्बियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

हालांकि अमेरिकी विशेषज्ञ की ओर से जो सुझाव दिए गए हैं उनमें से कई पर तो भारत ने गंभीरता से काम करना भी शुरु कर दिया है। जैसे बीते दिन ही जब आईएएनएस विशाल नाम के तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर को भारतीय नौसेना के लिए बनाने की चर्चा जोरों पर थी तब सीडीएस बिपिन रावत ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि फिलहाल नौसेना का ध्यान पनडुब्बियों पर है और तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर पर विचार किया जाएगा क्योंकि इसमें लागत और रखरखाव ज्यादा होता है जबकि यह दुश्मन देश के लिए सबसे पहले निशाने पर होते हैं।

हालांकि हिमालय के इलाकों में बीते समय में भारत इस आधार पर अपनी मजबूती बढ़ाने को लेकर बचता आया है कि ऐसी गतिविधियां चीन को भड़काने का काम कर सकती हैं लेकिन फिर भी डोकलाम जैसी घटनाएं जहां विवादित हिस्से में चीन की सेनाएं निर्माणकार्य करती हों और हिंद महासागर में लगातार दखल से स्पष्ट होता है कि चीन तो अपनी आक्रामक नीति को हर हाल में जारी रखेगा ही चाहे भारत कोई भी रुख अपनाए। ऐसे में जिन क्षेत्रों में भारत को भौगोलिक लाभ मिला हुआ है और देश की सेनाएं ऊंचाई वाले हिस्से पर मौजूद है, वहां स्थिति को और सुदृढ़ करके डेटरेंस को बढ़ाया जा सकता है।

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