नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बीते साल अप्रैल के तीसरे सप्ताह से जारी तनाव के उस वक्त दूर होने की उम्मीद जगी, जब पिछले दिनों दोनों देशों के बीच पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों से सैनिकों को हटाने पर सहमति बनी। इसके बाद भारत और चीन की ओर से इन इलाकों से अपने बंकर, तंबू हटाने की जानकारी भी दी गई। बाद में भारत और चीन के बीच 10वें दौर की सैन्य बातचीत भी हुई, जिसमें अन्य क्षेत्रों से भी सेना की वापसी तय प्रक्रिया के तहत किए जाने को लेकर चर्चा हुई।
भारत और चीन के बीच करीब 9 महीने के सीमा विवाद के बाद यह कदम उठाया जा रहा है, जिसमें भारत ने गलवान हिंसा के दौरान अपने 20 जवानों को खोया तो चीन ने अभी हाल ही में बीते साल जून में हुई उस हिंसा में अपने चार सैनिकों के हताहत होने और एक के घायल होने की जानकारी औपचारिक तौर पर दी। हालांकि चीनी आंकड़ों पर कई कारणों से संदेह जताए जा रहे हैं और कई रिपोर्ट्स में चीनी हताहतों की की संख्या कहीं अधिक बताई जा रही है। इन सबके बीच डिसएंगेजमेंट और डि-एस्कलेशन शब्दों का खूब इस्तेमाल हो रहा है। आखिर क्या हैं इनके मायने?
डिसएंगेजमेंट एक लंबी प्रक्रिया होती है। इसके लिए स्थिति तब बनती है, जब सीमा क्षेत्रों में तनाव को लेकर आमने-सामने आ गए दो देशों के बीच इस सहमति बनती है कि बॉर्डर एरिया में किसी पोस्ट को खाली करना है। इसके लिए कई चरणों में कदम उठाए जाते हैं, जिसके बाद प्रक्रिया पूरी होती है। इस प्रक्रिया की शुरुआत में पहले एक देश अपना एक या अधिक बंकर या तंबू को हटाता है। इसके बाद दूसरा देश इसे सत्यापित करता है, जिसके लिए सैटेलाइट तस्वीरों, दूरबीनों के साथ-साथ ड्रोन से ली गई तस्वीरों का भी सहारा लिया जाता है।
कई बार दूसरे देश के सैनिक गश्त करते हुए भी वहां जाते हैं और देखते हैं कि प्रतिद्वंद्वी सैनिकों ने वहां से अपनी तैनाती हटाई है या नहीं। इसका सत्यापन हो जाने के बाद ही दूसरा पक्ष भी उसी तरह के कदम उठाता है। फिर इसकी तस्दीक प्रतिद्वंद्वी करता है और इस तरह वह विवादित क्षेत्र से चरणबद्ध तरीके से अपनी पूरी तैनाती हटा लेता है, जिसमें सैनिकों के साथ-साथ उनके बंकरों को ध्वस्त करना, तंबुओं को उखाड़ना और क्षेत्र में तैनात किए गए अत्याधुनिक हथियारों को हटाना भी शामिल होता है। कई बार इसमें विवाद भी होता है, जिसके कारण प्रक्रिया और लंबी हो जाती है।
डिसएंगेजमेंट के बाद की प्रक्रिया डि-एस्कलेशन कहलाती है। डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही डि-एस्कलेशन हो सकता है। डिसएंगेजमेंट का सीधा अर्थ है कि विवादित पक्ष की सेनाएं आमने-सामने न हों। जब ऐसा होगा, तभी सैन्य टकराव की स्थिति पैदा नहीं होगी और इसके बाद ही तनाव दूर करने और शांति की दिशा में कदम उठाने को लेकर कुछ भी सोचा जा सकता है। इसलिए डि-एस्कलेशन यानी तनाव दूर करने के लिए जरूरी है कि विवाद के सभी प्रमुख बिंदुओं से डिसएंगेजमेंट यानी सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया पूरी हो।
यही वजह है कि भारत लगातार पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवाद के सभी प्रमुख बिंदुओं से सैन्य वापसी को लेकर जोर डाल रहा है। भारत और चीन के बीच पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों से सैनिकों को हटाने पर सहमति नौवें दौर की सैन्य वार्ता के बाद बनी थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की 10वें दौर की वार्ता भी 20 फरवरी को हुई थी। भारत ने इस दौरान हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और देपसांग जैसे क्षेत्रों से भी सैन्य वापसी यानी डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर जोर दिया, ताकि डि-एस्कलेशन यानी तनाव दूर करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
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