नई दिल्ली। भारत चीन सीमा पर 45 साल बाद पहली बार 15 जून को भारतीय जवानों का खून बहा। यह तब हुआ जब गलवान घाटी के मुद्दे पर पिछले एक महीने से गतिरोध था और 6 जून को बातचीत के बाद तनाव को खत्म करने की पहल दोनों पक्षों से शुरू हुई। तय बातचीत के बाद चीनी सैनिक पीछे लौटना शुरू हुए। लेकिन चीन की तरफ से चालबाजी की गई जो सैनिक पीछे लौट रहे थे वो एकाएक कथित विवादित इलाके में वापस आए और उन्हें हटाने के लिए कमांडिंग ऑफिसर की अगुवाई में जब एक टुकड़ी गई तो चीनी सैनिकों मे डंडे में लिपटे तारों से हमला किया। इस हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए और चीन-भारत के बीच तनाव चरम पर है।
सीसीएस की हुई महत्वपूर्ण बैठक
सूत्रों के मुताबिक सोमवार रात यानि 15 जून को हुई झड़प में चार और सैनिक गंभीर रूप से घायल है। बताया जा रहा है कि सरकार ने सेना को गलवान घाटी में सेना जो भी उचित है उसके हिसाब से कार्रवाई करने की छूट दी है। लद्दाख में तनाव के बीच सीसीएस की बैठक हुई। रक्षामंत्री के साथ इस समय तीनों सेनाओं के प्रमुखों से बातचीत जारी है।
क्या सोच रहा है देश
गलवान में चीन की इस नापाक हरकर पर देश में गुस्सा है। देश के हर कोने से सिर्फ एक ही आवाज आ रही कि अब बहुत हो चुका। भारत सरकार को इस बारे में अब कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है। वाराणसी के रहने वाले संजय प्रसाद कहते हैं कि चीन की विस्तारवादी नीति का यह जीता जागता उदाहरण है। आप अगर 1962 की लड़ाई को देखें तो चीन ने क्या किया। पंचशील सिद्धांत को तार तार कर रख दिया। इसके साथ ही लखनऊ के रहने वाले पार्थसारथी कहते हैं कि यह बात सच है कि चीन को हम दरकिनार नहीं कर सकते है। लेकिन हमें यह देखना होगा कि चीन हमारे भूभाग पर कब्जा न कर सके।
मुंबई के रहने वाले विनय कहते हैं कि अगर आप चीन की नीति को देखें तो वो पहले दो कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे होते हैं और फिर कहते बैं कि जहां पर वो वर्तमान में मौजूद हैं वहां से बातचीत की जाए। गलवान में जो कुछ हुआ है उसे उसी नजरिए से देखने की जरूरत है। अगर चीन के इतिहास तो देखें तो वो सीमावर्ती इलाके में किस तरह सेंधमारी किया करते थे। जब वो सीमा अतिक्रमण करते थे तो बिस्किट का रैपर गिरा देते थे और कुछ समय के बाद क्लेम करते थे कि वो इलाका उनका है।
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