LAC (Ladakh): भारत और चीन के बीच जिस तरह से पिछले कुछ समय से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर जिस तरह से तनाव बढ़ा है उस पर ना सिर्फ इन दोनों देशों के आपसी संबंध खराब हुए हैं बल्कि कई अन्य पड़ोसी देशों के साथ दोनों देशों के संबंध भी प्रभावित हुए हैं। जानते हैं विस्तार से क्या है एलएसी कहां पर है यह स्थित और भारत और चीन के बीच क्या है तनाव का कारण।
एलएसी भारत और चीनी सीमा पर खींची गई वह लाइन है जो भारत और चीन को एक दूसरे से अलग करती है। भारत में एलएसी का 3,488 किमी लंबाई कवर होता है जबकि चीन में एलएसी की लंबाई 2,000 किमी तक कवर होती है। यह तीन सेक्टर में बांटा गया है, ईस्टर्न सेक्टर जिसमें अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम आते हैं। दूसरा मिडिल सेक्टर जिसमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आते हैं और तीसरा वेस्टर्न सेक्टर जिसमें लद्दाख आते हैं।
ईस्टर्न सेक्टर में एलएसी पर 1914 मैकमोहन लाइन है जिसकी स्थिति को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद है। यह भारत की इंटरनेशनल बाउंड्री को इंगित करता है लेकिन कुछ ही क्षेत्रों में जो है लोंगझू और असाफिला। मिडिल सेक्टर की लाइन थोड़ी सी कम विवादित है। सबसे बड़ा जो विवाद है वह है वेस्टर्न सेक्टर में जहां से एलएसी शुरू हुआ है।
1959 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु और तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने एक दूसरे को चिट्ठी लिखी थी। 1965 में सबसे पहली बार दोनों देशों के बीच इस लाइन का जिक्र किया गया था। शिवशंकर मेनन ने अपनी किताब Choices: Inside the Making of India’s Foreign Policy में लिखा है कि एलएसी को केवल मानचित्र पर अंकित सामान्य शर्तों पर वर्णित किया गया ना कि वास्तविक रुप में स्केल पर।
1962 के भारत चीन युद्ध के बाद चीन ने ये दावा किया था कि वे एलएसी के पीछे 20 किमी के दायरे को अपनी सीमा के अंदर तक विस्तार कर रहे हैं। झोऊ ने 1959 के बाद एक बार फिर से नेहरु को लिखी चिट्ठी में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) का जिक्र किया था। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 1959 और 1962 में दोनों बार चीन के एलएसी के दावे को खारिज कर दिया था। भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ये लाइन ऑफ कंट्रोल क्या है, किस आधार पर चीन ने इसका निर्धारण किया है। क्या आवेश में आकर चीन की तरफ से खींचे गए लाइन को एलएसी नाम दे दिया गया?
श्याम सरन की लिखी किताब How India Sees the World में इस बात का जिक्र किया गया है कि चाइनीज प्रीमियर ली पेंग्स के 1991 में भारत दौरे के बाद भारतीय पीएम पी वी नरसिम्हा राव और ली इस समझौते पर पहुंचे कि एलएसी पर शांति कायम होनी चाहिए। जब पीएम राव ने 1993 में चीन का दौरा किया उसके बाद फिर भारत ने औपचारिक तौर से एलएसी को मान्यता दे दी थी। तब से एलएसी का संदर्भ 1959 या फिर 1962 से नहीं जोड़ा जाता है बल्कि जब इन दोनों देशों के बीच समझौता हुआ तब से ही इसका संदर्भ लिया जाता है।
पिछले दिनों खबर आई थी कि चीन की सेना गलवान घाटी तक आ गई है। कहा जा रहा है कि लगभग 45 साल बाद ऐसे हालात पैदा हुए हैं कि यहां पर दोनों तरफ से तनाव पैदा हुए हैं और दोनों तरफ से कई सैनिक मारे गए हैं। गलवान घाटी वही जगह है जहां पर 20 अक्टूबर 1962 को भारत और चीन के बीच पहली बार जंग हुआ था। बता दें कि गलवान घाटी को चीन शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
गलवान घाटी (Galwan Ghati Tension) में भारत और चीन के बीच झड़प में एक अफसर और दो जवान शहीद हो गए हैं। बीती रात को भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच घाटी में झड़प की खबरें सामने आई थी जिसने अगले दिन जाकर बड़ा रुप ले लिया। बताया जा रहा है कि जिस समय भारतीय सेना चीनी सेना को वापस अपनी सीमा में खदेड़ रही थी उसी दौरान दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई थी जिसमें भारत और चीन दोनों तरफ सैनिक मारे गए।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।