नई दिल्ली : चीन लंबे समय से समुद्र के जरिए भारत को घेरने का प्रयास करता आया है। कभी श्रीलंका में बंदरगाह विकसित करने के नाम पर तो कभी मालदीव को कर्ज के जाल में उलझाकर वह अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने की कोशिश करता है। चीन की इस चाल को भारत अच्छी तरह समझता है। बीजिंग को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए भारत ने श्रीलंका की एक कंपनी के साथ करार किया है। भारत के अडानी समूह ने कोलंबो बंदरगाह के वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने एवं उसे चलाने के लिए श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण (एसएलपीए) के साथ एक समझौता किया है। एसएलपीए श्रीलंका सरकार की कंपनी है।
एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक अडानी ग्रुप इस कंटेनर टर्मिनल का निर्माण 700 मिलियन डॉलर में करेगा। इस टर्मिनल को रणनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि राजधानी कोलंबों में चीन की ओर से 500 मिलियन डॉलर की लागत से बनाए जा रहे समुद्र को तट से जोड़ने वाली जेटी के करीब है। एसएलपीए की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, 'यह करार 700 मिलियन डॉलर से अधिक का है। यह श्रीलंका के पोर्ट सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है।'
अडानी समूह ने कोलंबो बंदरगाह पर डब्ल्यूसीटी विकसित करने के लिए अपने स्थानीय साझेदार जॉन कील्स होल्डिंग्स और एसएलपीए के साथ एक निर्माण-परिचालन-अंतरण (बीओटी) समझौते पर हस्ताक्षर किए। दो स्थानीय संस्थाओं के पास वेस्ट कंटेनर इंटरनेशनल टर्मिनल नामक नई संयुक्त कंपनी की 34 और 15 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी। कोलंबो पोर्ट भारतीय कंटेनरों और मेनलाइन शिप ऑपरेटरों के ट्रांसशिपमेंट के लिए सबसे पसंदीदा क्षेत्रीय केंद्रों में से एक है।अडाणी पोर्ट्र्स एण्ड स्पेशियल इकोनोमिक जोन (एपीएसईजेड) भारत में सबसे बड़ा बंदरगाह विकासकर्ता और परिचालक है और यह देश की कुल बंदरगाह क्षमता के 24 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।
कोलंबो दो बड़े बंदरगाह केंद्रों दुबई और सिंगापुर के बीच हिंद महासागर में स्थित है। इस समुद्री मार्ग की अहमियत को देखते हुए कोलंबो बंदरगाह दुनिया के लिए काफी अहमियत रखता है। इसलिए सभी देश कोलंबो में अपने लिए बंदरगाह सुरक्षित करना चाहते हैं। चीन कोलंबो में बंदरगाह विकसित करने के नाम पर भारत को घेरने के लिए अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने की फिराक में रहता है। साल 2014 में यहां चीन की दो पनडुब्बियां देखी गईं जिसके बाद भारत के कान खड़े हो गए।
भारत सरकार की कूटनीतिक पहल पर बाद में श्रीलंका ने चीनी पनडुब्बियों को अपने बंदरगाह पर आने से मना कर दिया। दिसंबर 2017 में श्रीलंका एक बड़ा कर्ज चीन को चुका नहीं पाया। इसके बाद उसे अपना दक्षिणी हम्बनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण चीन को सौंपना पड़ा। समुद्री व्यापार मार्ग के लिहाज से हम्बनटोटा बंदरगाह काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण होने पर भारत और अमेरिका दोनों ने चिंता जाहिर की। दोनों देशों का मानना है कि इस बंदरगाह से इलाके में चीन को सैन्य बढ़त मिल सकती है। हंबनटोटा बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्तम पूर्वी-पश्चिमी समुद्री मार्ग के रास्ते में पड़ता है।
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