नई दिल्ली। भारत को इंडिया के नाम से जाना जाता है।अंतरराष्ट्रीय फलक पर कानूनी रूप से इंडिया का मतलब भारत है। शायद किसी देश के नाम का अनुवाद इस तरह से नहीं होता है। क्या इंडिया नाम ही आगे भी रहेगा या हम अपने देश को भारत या हिंदुस्तान के तौर पर जानेंगे। इंडिया नाम को बदलने के लिए पहले भी आवाज उठती रही है। लेकिन कानूनी तौर पर पहली बार पहल की गई है। दिल्ली के रहने वाले याचिकाकर्ता ने इस संबंध में देश की सर्वोच्च अदालत में अपनी भावना को याचिका के जरिए उठाया है।
चीफ जस्टिस की पीठ करेगी सुनवाई
दो जून को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने दो जून को पेश किया जाएगा। याचिका में कहा गया है कि अदालत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन के लिए निर्देश जारी करे। यहां यह जानना जरूरी है कि अनुच्छेद 1 देश के नाम और भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा है। यह अनुच्छेद कहता है कि इंडिया दैट इज भारत। जब देश को आजादी मिली तो उस समय भी नाम को लेकर विरोध हुआ कि अंग्रेज तो इस देश से चले गए । लेकिन अंग्रेजियत की मानसिकता से छुटकारा नहीं मिला। देश के नाम परिवर्तन की कवायद उठती रही। लेकिन मामला कभी परवान नहीं चढ़ा।
1948 संविधान सभा की बैठक का हवाला
याचिकाकर्ता का कहना है इंडिया शब्द औपनिवेशिक शासन की याद दिलाता है, यह शब्द एक तरह से दास्ता का प्रतीक है और इसे हटाना चाहिए। इस विषय पर पिछले शुक्रवार को ही सुनवाई होनी थी। लेकिन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े के मौजूद न होने से 2 जून का दिन सुनवाई के लिए मुकर्रर किया गया। याचिका में कहा गया है कि 1948 में संविधान सभा की बैठक में भी इंडिया को भारत या हिंदुस्तान कहे जाने पर ज्यादा जोर था। याचिका में दावा किया गया है कि भारत या हिंदुस्तान राष्ट्रीयता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि हम अपनी पहचान को किसी दूसरे के नजरिए से कैसे देख सकते हैं। भारतभूमि, सनातवनी व्यवस्था का गवाह रही है। दुनिया के नक्शे पर राजनीतिक तौर पर देशों का उदय हुआ। लेकिन यह भूमि संस्कृति की वाहक बनी।
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