नई दिल्ली: 31 अक्टूबर की तारीख भारत के इतिहास में देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दिन के तौर पर दर्ज है। अपने फौलादी इरादों के लिए विख्यात और बड़े से बड़ा फैसला बेखौफ लेने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इस दिन की सुबह उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंचीं और 31 अक्टूबर 1984 को पद पर रहते हुए ही उनकी हत्या कर दी गई।
भारत की एक ऐसी प्रधानमंत्री, जिसने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में अपने नाम का डंका बजा दिया। दुश्मन देश भी भारत से खौफ खाने लगे थे। आखिर ऐसा क्या था कि अपनी मौत से एक दिन पहले ही देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना भाषण बदल दिया और जनता के सामने ऐसा कुछ कह दिया, जिसे सुनकर सभी अवाक रह गए। मौत से पहले की वो रात जब इंदिरा गांधी सो नहीं सकी थीं और बहू सोनिया के साथ थीं।
मौत से एक दिन पहले का वो भाषण
मौत से एक दिन पहले इंदिरा गांधी ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में दोपहर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रही थीं। हर बार की तरह इस बार भी उनके लिए एक अच्छा सा भाषण लिखकर तैयार किया गया था। इंदिरा हमेशा की तरह उसी भाषण को जनता के सामने पढ़तीं, लेकिन उस दिन ऐसा न हुआ। इंदिरा गांधी ने उस लिखे भाषण को खोला तक नहीं और जनता से यूं ही मुखातिब होने लगीं, भाषण देने लगी। इंदिरा गांधी ने अपने भाषण में अपनी मौत का जिक्र कर दिया, जो शायद उस वक्त हर किसी को हैरान कर गया। इंदिरा ने कहा कि मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं...जब मैं मरुंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा। इंदिरा द्वारा कही गई ये लाइन जैसे बिजली की तरह लगी। उनका भाषण में अपनी मौत का जिक्र करना मानो ऐसा लग रहा था कि जैसे वो खुद लोगों को बता रही हैं कि ये उनकी आखिरी मुलाकात है।
मौत से एक दिन पहले पूरी रात सो नहीं पायी थीं इंदिरा
31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्ड ने उन्हें गोली मार दी थी जिससे उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन मौत से एक दिन पहले इंदिरा बेचैन थी। एक रात पहले वो सो नहीं पायीं थीं। उस रात उनकी बहू सोनिया आधी रात के बाद अपनी दवा लेने जब उठीं तो उनकी सासू मां उनके साथ आयी। इंदिरा ने सोनिया से कहा कि परेशान मत होना मैं हूं साथ में। उस रात इंदिरा देर तक जागीं या यूं कहें वो सो नहीं पायीं।
सुबह की खिली धूप में समा गईं इंदिरा
पूरी रात सो नहीं पाने के बाद मौत की सुबह जब इंदिरा गांधी अपने आवास से नौ बजकर दस मिनट पर बाहर निकल रही थीं, तो मानों सुबह की खिली धूप उन्हें एक आखिरी बार देखने आयी हो। उस धूप से छांव देने के लिए सिपाही नारायण सिंह काला छाता लिए उनके बगल में चल रहे थे, उन्हें क्या पता था कि इंदिरा को धूप से नहीं बल्कि सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह की गोली से डर है। अचानक से गोलियों की आवाज से पूरा माहौल कांप उठा। अफरा-तफरी मच गई और देखते ही देखते इंदिरा को एक के बाद एक कई गोली लगी। कुछ देर के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
क्या इंदिरा गांधी को अपनी मौत का आभाष हो गया था
इंदिरा गांधी का एक दिन पहले का मरने का वो भाषण और फिर रातभर नींद न आना इशारा करते हैं कि कहीं इंदिरा को अपनी मौत का आभाष तो नहीं हो गया था। क्या इंदिरा गांधी को कहीं न कहीं ऐसा लगने लगा था कि कल के उगते सूरज के साथ ही उनकी जीवन का सूरज सदा के लिए अस्त हो जाएगा।
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपनी हत्या से एक दिन पहले अपने भाषण में अचानक से अपनी मौत का जिक्र करने लगी, जिसे सुनकर वहां खड़े सभी अवाक रह गए थे।
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