नई दिल्ली। धरती के स्वर्ग यानी जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटे हुए 6 महीने बीत चुके हैं। एक एक कर पाबंदियों को हटाया भी जा रहा है। सीमित प्रतिबंधों के साथ लोगों को नेट इस्तेमाल करने की इजाजत भी मिली है। लेकिन राजनीतिक तौर से घाटी में निर्वात है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है। दरअसल इस सवाल का जवाब यह है कि केंद्र शासित प्रदेश के दो मुख्य दलों के नेता अभी भी नजरबंद हैं। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, नेशनल कांफ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला सरकारी पाबंदियों के बीच नजरबंद हैं।
बाहरी नजरों से घाटी का हाल
सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर की जमीनी तस्वीर कैसी है। हाल ही में संजय सिंह नाम के एक शख्स ने दौरा किया और पाया कि घाटी में लोगों को पहले से बेहतर माहौल महसूस हो रहा है। लेकिन कहीं न कहीं लोगों को ये भी लगता है कि अगर बड़े दलों के नेता भी आजादी के साथ इधर उधर घूम सकते तो हालात कुछ और होते। ठंड के समय बाजार में आम तौर पर 50 फीसद की गिरावट होती थी। लेकिन इस दफा इसमें 80 फीसद की गिरावट हुई है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर चैंबर्स ऑफ कॉमर्स इंडस्ट्री का कहना है कि व्यापार से 18 हजार 700 करोड़ का नुकसान हुआ है।
स्थानीय लोगों की जुबानी घाटी की कहानी
अनंतनाग के रहने वाले तारिक लोन कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से पहले और बीते हुए 6 महीनों में लोगों के अंदर कई तरह की शंकाए थीं। घाटी के रहने वालों को लगता था कि एक तरह से लोकशाही खत्म हो जाएगी। आम लोग जिस तरह से अपनी बात अपने नुमाइंदों तक रखते थे उसमें कई तरह की मुश्किलें आएंगी। पांच अगस्त के बाद करीब तीन महीने तक आम लोगों में भ्रम बना रहा। लेकिन जिस तरह से क्रमबद्ध तरह से पाबंदियों में ठील दी गई और राजनेताओं को एक एक कर छोड़ा गया। उसके बाद लोगों में उम्मीद बंधी है कि बहुत जल्द ही वो अपने आपको बेहतर हालात में पाएंगे।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।