जोधपुर: गत जनवरी में राजस्थान के कोटा में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई। बच्चों की मौतों ने सरकार एवं राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही की पोल खोल दी। साथ ही इस मामले में राज्य में डॉक्टरों की कमी को भी उजागर किया। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी और भी ज्यादा है। इसके बावजूद राजस्थान सरकार डॉक्टरों को परेशान करने में जुटी हुई है। एक ऐसा ही मामला जोधपुर से आया है जहां पाकिस्तान से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर आए एक हिंदू डॉक्टर को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है।
जोधपुर पुलिस ने रविवार को पाकिस्तान से आए हिंदू डॉक्टर नूरजी भील को गिरफ्तार किया है। साल 2002 में भारत आए नूरजी के पास एमबीबीएस की डिग्री है लेकिन जोधपुर पुलिस ने नूरजी को नीमहकीम बताया है। नूरजी ने पाकिस्तान के सिंध विश्वविद्यालय से साल 2000 में एमबीबीएस की डिग्री ली लेकिन धार्मिक रूप से प्रताड़ित होने के बाद वह अपने परिवार के साथ साल 2002 में जोधपुर चले आए।
नूरजी का परिवार जोधपुर के डाली बाई मंदिर इलाके में रहता है। अभी इस परिवार का भारतीय नागरिकता का आवेदन सरकार के पास लंबित है। गत रविवार को पुलिस ने नूरजी के मेडिकल की दुकान पर छापा मारा। छापे के वक्त नूरजी दुकान पर मौजूद थे और वे कथित रूप से मरीजों का इलाज कर रहे थे। सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस ने नूरजी को पीटा। इसके बाद उन्हें 420 के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। अपने परिवार में नूरजी ही एकमात्र आय का जरिया हैं।
पाक से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर आए हैं हिंदू
बता दें कि पश्चिमी राजस्थान के कई इलाकों में डॉक्टरों की कमी पाई गई है। गृह मंत्रालय ने अप्रैल 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखा था। मंत्रालय ने एमसीआई से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर भारत आए योग्य डॉक्टरों के बारे में जानकारी मांगी थी। मंत्रालय के इस पत्र पर एमसीआई ने दिसंबर 2018 में कहा कि ऐसे डॉक्टरों को एक स्क्रीनिंग टेस्ट से गुजरना होगा। साथ ही विशेष प्रावधानों के तहत पाकिस्तान से आए डॉक्टरों को इलाज की अनुमति देने की बात कही गई थी। सीएए लागू हो जाने के बाद जोधपुर में बसे हिंदू डॉक्टरों को उम्मीद है कि मोदी सरकार भारतीय मानकों के अनुरूप उनकी डिग्री को मान्यता देगी जैसा कि 1999 से पहले हुआ था।
जनवरी में कोटा में हुई 100 से ज्यादा बच्चों की मौत
गत जनवरी में कोटा के जेके लोन अस्पताल में एक महीने के दौरान करीब 105 बच्चों की मौत हो गई। जांच में अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी नजर आई। बच्चों की मौत पर गठित पैनल की रिपोर्ट में बताया गया कि अस्पताल में ज्यादातर मौतें हाइपोथरमिआ के कारण हुईं। इसमें शरीर का तापमान 95 एफ से नीचे चला जाता है जबकि शरीर का सामान्य तापमान 98.6 एफ होता है। अस्पताल में 28 नेबुलाइजर्स में से 22 खराब पाए गए जबकि 111 इन्फ्यूजन पंप में से 81 काम नहीं कर रहे थे। यही नहीं पैरा मॉनीटर्स एवं पल्स ऑक्सीमीटर्स भी खराब अवस्था में थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आईसीयू इस हालत में नहीं था कि यहां बच्चों का उपचार किया जा सके। बच्चों की मौत के लिए गहलोत सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया।
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