Rana Ayyub : अपने विवादित बयानों के लिए अक्सर सुर्खियों में रहने वाली महिला पत्रकार राणा अय्यूब पत्रकार एक बार फिर सुर्खियों में हैं। दरअसल, इस बार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बैंक में जमा अय्यूब की 1.77 करोड़ रुपए की नकदी जब्त की है। अय्यूब पर आरोप है कि उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग की है और अनुदान में मिली राशि का इस्तेमाल निजी इस्तेमाल के लिए किया है। वह अब ईडी के रडार पर हैं। राणा माइक्रोब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर बेहद सक्रिय रहती हैं और राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय रखती आई हैं। हालांकि, उनके राय एवं विचारों से ज्यादातर लोग सहमत नहीं दिखते। विवादित बयानों के लिए वह लोगों के निशाने पर रहती आई हैं।
राणा तहलका पत्रिका के लिए काम कर चुकी हैं। इन्होंने साल 2002 के गुजरात दंगों पर 'गुजरात फाइल्स' के नाम से किताब भी लिखी है। उनकी यह किताब विवादों में रही है। गुजरात के कथित फर्जी मुठभेड़ों के बारे में भी इन्होंने कई स्टिंग ऑपरेशन किए। इस पर भी कई तरह के सवाल उठे। कुछ दिनों पहले यूएई की राजधानी अबू धाबी पर हुए ड्रोन हमले के बाद अय्यूब का ट्वीट भी विवादों में रहा। इस ट्वीट के लिए सऊदी अरब के लोगों ने उन्हें खूब ट्रोल किया।
राणा वाशिंगटन पोस्ट जैसे नामचीन अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थाओं के लिए लिखती रही हैं। सरकार की मुखर होकर आलोचना करने वाली अय्यूब के ट्विटर पर लाखों की संख्या में फॉलोअर्स हैं। इनके खिलाफ सितंबर 2021 में गाजियाबाद में मनीलांड्रिंग का केस दर्ज हुआ था। अय्यूब पर आरोप है कि इन्होंने कोविड, बाढ़ पीड़ितों एवं प्रवासियों की मदद के लिए तीन ऑन लाइन अभियान चलाए और क्राउड फंडिंग की। आरोप है कि कोविड पीड़ितों की मदद के लिए आम लोगों से जुटाए गए 69 करोड़ रुपए का इस्तेमाल इन्होंने अपने निजी खर्चे में किया।
रिपोर्टों के मुताबिक राणा ने राहत कार्यों में पैसा खर्च होने के सबूत देने के लिए फर्जी बिल बनवाए थे। निजी यात्रा के लिए किए गए खर्च को राहत कार्य के लिए बताया था। ईडी का कहना कि जांच में साफ होता है कि अयूब ने पूरी योजना एवं व्यवस्थित तरीके से चैरिटी के नाम पर फंड जुटाया था, लेकिन इस फंड का इस्तेमाल पूरी तरह मदद के लिए नहीं हुआ।
पूछताछ में राणा ने बताया कि 70 लाख रुपए इन्होंने पीएम केयर्स फंड में जमा किया लेकिन यह राशि उन्होंने तब जमा की जब इनके खिलाफ जांच शुरू हो गई थी। अय्यूब ने विदेशी अनुदान पाने के लिए एफसीआरए की इजाजत भी नहीं ली थी। विदेशी अनुदान पाने के लिए एफसीआरए के तहत अनुमति लेना जरूरी होता है।
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