नई दिल्ली : कांग्रेस के साथ 18 साल के अपने पुराने नाते को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने होली के दिन मंगलवार को खत्म कर दिया। मध्य प्रदेश की राजनीति सिंधिया राज घराने का दबदबा रहा है। सिंधिया की दादी से लेकर उनके पिता प्रदेश की राजनीति को दिशा देते रहे हैं। खुद ज्योतिरादित्य ने जब से कांग्रेस पार्टी का दामन थामा तबसे उन्होंने पार्टी को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए परिश्रम किया।
चुनाव नतीजे के बाद पार्टी से बढ़ी दूरी
दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और इसके बाद सिंधिया और कमलनाथ के बीच दूरी बढ़ती गई। मध्य प्रदेश में क्षेत्रीय छत्रपों के बीच सियासी शह-मात का खेल पुराना है। पार्टी के लिए काम करते हुए भी दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और सिंधिया एक-दूसरे को सियासी पटकनी देने में पीछे नहीं रहे हैं। जब भी किसी को मौका मिलता वह अपना हिसाब-किताब चुकाता रहा है लेकिन स्थितियां कभी पार्टी छोड़ने तक की स्थिति तक नहीं पहुंची थीं।
कांग्रेस के 17 साल तक सांसद रहे
विधानसभा चुनाव से पहले तक सिंधिया और कांग्रेस के बीच सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। अपने 18 साल के राजनीतिक करियर में सिंधिया 17 साल तक कांग्रेस के सांसद रहे। कांग्रेस ने उन्हें एक बार मंत्री भी बनाया। इसके अलावा वह पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इस दौरान सिंधिया कांग्रेस के चीफ ह्विप, राष्ट्रीय महासचिव, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य, चुनाव और अभियान समिति के प्रमुख पदों पर भी रहे।
प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बन पाए
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के लिए ज्योतिरादित्य ने जी-तोड़ मेहनत की। यहां तक कि उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ से अधिक जनसभाएं कीं। इसमें कोई शक नहीं है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत में सिंधिया की एक बड़ी भूमिका रही है लेकिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की पार्टी राजनीति में उनका दबदबा और रसूख कमजोर हुआ। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद सिंधिया चाहते थे कम से कम प्रदेश अध्यक्ष की कमान उन्हें सौंपी जाए लेकिन उन्हें यह पद भी नहीं मिला। विगत महीनों में ऐसे कई अवसर आए जब सिंधिया ने यह महसूस किया कि प्रदेश की राजनीति में उन्हें कमजोर किया जा रहा है और जब वह इस बारे में आला कमान से मिले तो उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया।
दिग्विजय सिंह से भी रहा टकराव
विधानसभा चुनावों के समय सिंधिया का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में था। सिंधिया भी चाहते थे कि कांग्रेस आलाकमान उन्हें सीएम बनाए लेकिन कमलनाथ बाजी मार ले गए। कहा जाता है कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने में दिग्विजय सिंह की भी अहम भूमिका रही। दिग्विजिय सिंह नहीं चाहते थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनें। सिंधिया और राघोगढ़ रियासत के बीच तनातनी का पुराना इतिहास रहा है। आजादी से पहले दोनों रियासतों के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।