1932 में सामान्य किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह की 2021 तक के सफर को देखें तो उन्होंने लार्जर दैन लाइफ को जिया। 89 साल की उम्र में लखनऊ के एसपीजीआई में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने राजनीतिक तौर पर जिस चीज को हासिल करने की कोशिश की उसे पाया भी।लेकिन एक इच्छा अधूरी रह गई भव्य राम मंदिर देखने की। वो कहा करते थे कि प्रभु श्रीराम की कृपा से उन्हें बहुत कुछ हासिल हुआ। अब तो उम्र के इस पड़ाव में सिर्फ एक ही इच्छा है कि अयोध्या में भगवान राम के भव्य धाम को देखने का मौका मिल सके।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरी
कल्याण सिंह, बाबरी मस्जिद विध्वंस का चोली दामन का साथ है। 1989-90 के दौर में यूपी की सियासत अलग अंगड़ाई ले रही थी। यूं कहें कि हिंदी हार्टलैंड अलग तरह की कहानी लिखने के लिए तैयार था। या यूं कहें कि आने वाला समय एक अलग तरह की नजीर पेश करने वाले था। साल था 1991 और 92 का। 1991 में उन्हें यूपी की कमान मिली और बीजेपी के खास वर्ग को यह लगने लगा कि शासन व्यवस्था एक ऐसे शख्स के हाथ में है जो कुछ अयोध्या के राम मंदिर के संदर्भ में ऐतिहासिक फैसला लेगा।साल 1992 का आया अयोध्या के साथ साथ देश में अलग तरह का माहौल था। बाबरी मस्जिद की हिफाजत को लेकर तरह तरह की आशंकाएं थीं। उन आशंकाओं के निराकरण के लिए यूपी सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी पेश किया गया। लेकिन जनज्वार में वो तूफान चल पड़ा था जिसमें बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी।
कल्याण सिंह की सरकार हुई बर्खास्त
एक सीएम के तौर पर कल्याण सिंह अदालत के सामने किए वादे को निभाने में नाकाम रहे थे। लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए कहा कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसकी जिम्मेदारी लेते हैं। राजनीतिक तौर पर हलचल होनी थी और वो हुई भी। तत्कालीन नरसिंहाराव की सरकार ने कल्याण सिंह को दोषी माना और यूपी की सरकार को बर्खास्त कर दिया। केंद्र सरकार के फैसले की तीखी आलोचना हुई हालांकि कल्याण सिंह ने कहा कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसके लिए जो भी सजा दी गई है उसे वो तहे दिल से स्वीकार करते हैं।
राम मंदिर फैसले के बाद खास बयान
अयोध्या में विवादित ढांचे के गिराए जाने के बाद राजनीतिक तौर पर बहुत कुछ बदला। राजनीति का पहिया एक बार कल्याण सिंह के इशारों पर अपनी रफ्तार तय कर रहा था। साल 1997 का आया और वो एक बार फिर सीएम बने। ये बात अलग है कि यह पारी भी बहुत लंबी नहीं चली, बाद में पार्टी से मनमुटाव भी हुआ, अलग दल का गठन किया और अपने धुरविरोधी मुलायम सिंह यादव की सरकार का समर्थन दिया। लेकिन वैचारिक धरातल इतना उबड़ खाबड़ था कि उन्हें अपने पहले परिवार में लौटना पड़ा। लेकिन राम मंदिर के लिए संघर्ष का जज्बा हमेशा बरकरार रहा। राम मंदिर के प्रति उनके लगाव को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में देखा जा सकता है जब उन्होंने कहा कि जिंदगी का बड़ा मकसद पूरा हुआ अब तो सिर्फ भव्य राम मंदिर देखने की ख्वाहिश बच गई है।
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