श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में हालात अब बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। कश्मीरी पंडित घाटी लौटने लगे हैं, जहां स्थानीय मुस्लिम लोग उनका स्वागत कर रहे हैं। यहां मंदिरों में पहले की तरह पूजा-अर्चना होने लगी है, जिसमें कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ स्थानीय मुसलमान भी भागीदारी कर रहे हैं। स्थानीय लोग मिठाइयां खिलाकर कश्मीरी पंडितों का मुंह मीठा करा रहे हैं और घाटी में उनका स्वागत कर रहे हैं।
नवरेह के मौके पर मंगलवार को बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अलगाववादियों के गढ़ माने जाने वाले क्राल खुर्द स्थित शीतलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस दौरान स्थानीय मुस्लिम समाज के लोग भी मौजूद रहे, जिन्होंने कश्मीरी पंडितों का स्वागत करते हुए कहा कि उनके बिना कश्मीर अधूरा है और वे उन्हें अपने दिलों में बसाना चाहते हैं। उन्होंने घाटी में आपसी सौहार्द व अमन-चैन की दुआ की।
उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में नवरात्रि का त्योहार ही 'नवरेह' है। कश्मीर में नवरात्रि के त्योहार को नवरेह के नाम से मनाया जाता है। इस तरह के आयोजनों में कश्मीरी पंडित ही नहीं, स्थानीय मुसलमान भी भागीदारी कर रहे हैं। एक स्थानीय नागरिक ने कहा, 'कश्मीरी पंडित और मुसलमान एक बार फिर से साथ आ रहे हैं। पंडित कश्मीरी समाज का अभिन्न हिस्सा हैं।' उन्होंने कश्मीरी पंडितों का मुंह भी मीठा कराया।
वहीं, बीजेपी महासचिव अशोक कौल ने कहा कि श्रीनगर के मंदिरों में लंबे समय बाद कश्मीरी पंडितों को पूजा-अर्चना करते देखा गया है। पंडितों की घाटी में वापसी भी शुरू हो गई है। यहां कई मंदिरों में कश्मीरी पंडितों ने हवन-पूजन किया। उन्होंने कहा कि घाटी में हालात अब अनुकूल हैं और सुरक्षा कोई मसला नहीं रहा है। इस दौरान उन्होंने यहां मंदिरों पर कब्जे का जिक्र भी किया और इसे हटाने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, 'घाटी में कई हिंदू मंदिरों के अतिक्रमण का मसला है। कुछ जगह पर जहां सरकार ने भूमि को कब्जे में लिया है, वहीं कुछ अन्य जगहों पर स्थानीय लोगों ने ऐसा किया है। मंदिरों से कब्जा हटाने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।'
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