नई दिल्ली : भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्सेज (SFF) से चीन यूं ही खौफ नहीं खाता है। दरअसल, चीन के खिलाफ असफल क्रांति के बाद 1966 में भारत में शरण लेने वाले तिब्बती युवा एसएफएफ में भर्ती हुए। इस स्पेशल फोर्स में शामिल तिब्बती युवा 1971 और 1999 का कारगिल युद्ध बहादुरी के साथ लड़ चुके हैं लेकिन इनकी असली कसक चीन को लेकर है। चीन के खिलाफ इनकी टीस और 'बदला लेने' की भावना को देखते हुए भारत सरकार अब तक इन्हें चीन सीमा पर तैनात करने से बचती रही है लेकिन इस बार इन्हें अग्रिम मोर्चों पर तैनात कर दिया गया है।
एसएफएफ की तैनाती से चीन बौखलाया
भारत सरकार के इस कदम से चीन बौखला गया है क्योंकि अपनी तैनाती के बाद से एसएफएफ चीनी सैनिकों पर भारी पड़ने लगा है। चीन को 'सबक' सिखाने की चाहत रखने वाले एसएफएफ में शामिल तेनजिम न्यिमा ऐसे ही बहादुर सैनिक थे जो गत 30 अगस्त को लैंड माइन की चपेट में आने से शहीद हो गए। शहीद होने से पहले तेनजिम की फोन पर अपने भाई तेनजिन न्यावो से बातचीत हुई थी।
तेनजिम ने अपने भाई से की थी अंतिम बात
न्यावो का कहना है कि बातचीत में तेनजिम 'तनाव' में थे। न्योवा के मुताबिक तेनजिम ने उन्हें बताया कि 'एलएसी पर स्थिति तनावपूर्ण है और कुछ भी हो सकता है।' न्यावो ने अपने शहीद भाई की बातों को याद करते हुए कहा, 'चीन के खिलाफ एसएफएफ की कभी तैनाती नहीं हुई, हमारा असली दुश्मन। सरकार ने भारत-चीन बॉर्डर हमारी तैनाती नहीं की।' न्यावो ने बताया कि तेनजिन गत जुलाई में घर आए थे। उनकी इस यात्रा का जिक्र करते हुए न्यावो ने कहा, 'उसने मुझे कहा कि यह कारिगल अथवा बांग्लादेश नहीं है। आखिरकार इस बार हम अपने दुश्मन से लड़ रहे हैं।'
'चीन से लड़ने के लिए हर तिब्बती बेताब है'
न्यायो का कहना है कि चीन से लड़ने के लिए हर तिब्बती बेताब है। यह लड़ाई केवल भारत की नहीं है और लड़ाई हमारे देश के लिए भी है। यह लड़ाई हमारे पहचान के लिए भी है जो हमसे छीन ली गई। न्यिमा एसएफएफ में 30 साल बीता चुके थे। गत जुलाई में उनकी तैनाती भारत-चीन सीमा पर हुई और इस बात की खुशी से वह किसी से छिपा नहीं पाए थे।
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