Kisan Andolan: ..तो लंबी लड़ाई की तैयारी में किसान, ‘तू डाल-डाल मैं पात-पात' की तर्ज पर चल रहा आंदोलन

देश
रवि वैश्य
Updated Feb 07, 2021 | 08:48 IST

Farmers Protest: किसानों ने साफ कर दिया है कि केन्द्र के तीन नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी दो अक्टूबर तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहेंगे और मांगों पर कोई समझौता नहीं होगा।

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बकौल किसानों के ये उनके लिए जीवन मरण का प्रश्न है 
मुख्य बातें
  • आंदोलन को लेकर सरकार की तरफ से सुलह की कोशिशें हुईं लेकिन वो परवान नहीं चढ़ीं
  • किसान किसी भी कीमत पर नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए डटे हुए हैं
  • किसानों ने साफ किया कि प्रदर्शनकारी दो अक्टूबर तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहेंगे

किसान आंदोलन की तपिश देश में लंबे समय से महसूस की जा रही है, इस बार का ये आंदोलन खासा बड़ा हो चुका है और किसानों को दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन करते हुए लंबा वक्त हो गया है। बीच-बीच में सरकार की तरफ से सुलह की कोशिशें हुईं लेकिन वो परवान नहीं चढ़ पाई, किसानों को लगता है कि सरकार उन्हें मूल मुद्दे से भटका रही है और वो किसी भी कीमत पर नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए डटे हुए हैं यानि ये कहा जाए कि ना तो सरकार इस मुद्दे पर मान रही है और ना ही किसान इस मुद्दे पर पीछे हटते नजर आ रहे हैं।

इस बीच किसानों के इस लंबे आंदोलन के बीच कई घटनाक्रम ऐसे हुए जिससे इस आंदोलन की धार पर असर पड़ा मसलन 26 जनवरी को किसानों ने जो ट्रैक्टर रैली दिल्ली में निकाली उसमें इतनी अराजकता और हिंसा हुई कि सभी ने देखा यहां तक कि लाल किले पर झंडे को लेकर जो घटनाक्रम सामने आया वो भी किसी से छिपा नहीं है।

राकेश टिकैत के "आंसू" मानों संजीवनी बनकर सामने आए

इस घटनाक्रम के बाद तो किसान आंदोलन पर सरकार की सख्ती का असर था कि ये करीब करीब खत्म ही होने वाला था क्योंकि इस दौरान कुछ किसान संगठन  इससे अलग हो गए जो इस आंदोलन के लिए बड़ा झटका था फिर कुछ ऐसा हुआ कि खत्म होते इस आंदोलन में किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू इस आंदोलन कि लिए मानों संजीवनी बनकर सामने आए और फिर क्या था देखते ही देखते मंद होती आंदोलन की आग फिर से भड़क गई और मूवमेंट फिर से जोर पकड़ गया और कहा जा रहा है कि इस बार ये फिर खासी ताकत से सामने आया है...

किसान जो इस आंदोलन से बहुत आस लगाए बैठै हैं बकौल किसानों के ये उनके लिए जीवन मरण का प्रश्न है और उनका मानना है कि नए कृषि कानूनों के बाद उनका पेट पाटना मुहाल हो जाएगा क्योंकि इसपर पूंजीपतियों का वर्चस्व होगा और उनकी भूमिका एकदम नगण्य होने वाली है।अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर इसका समाधान क्या निकलेगा तो ये भविष्य ही बताएगा मगर इस बीच किसानों ने साफ कर दिया है कि इस दफा वो पीछे हटने वाले नहीं हैं।

''हम ही किसान हैं, हम ही जवान'' इस तर्ज पर चलेगा आंदोलन

किसानों ने साफ कर दिया है कि केन्द्र के तीन नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी दो अक्टूबर तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहेंगे और मांगों पर कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य  के लिए कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने वाला कानून बनाने के बाद ही किसान घर लौटेंगे।

उन्होंने कहा, 'हम दो अक्टूबर तक यहां बैठेंगे।' नवम्बर से दिल्ली-मेरठ राजमार्ग के एक हिस्से पर अपने समर्थकों के साथ आंदोलन कर रहे टिकैत ने कहा, 'अगर सरकार यह समझ रही है, तो किसानों से बात करें। एमएसपी पर एक कानून बनाएं, तीन कानूनों को वापस लें, उसके बाद ही किसान अपने घरों को लौटेंगे।'

उन्होंने कहा, ‘‘हम ही किसान हैं, हम ही जवान हैं। यह आंदोलन का हमारा नारा होने जा रहा है।’’ टिकैत ने किसानों से आग्रह किया कि वे अपने खेतों से मिट्टी लाकर दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हों और विरोध स्थलों से इतनी ही मात्रा में क्रांति की ''मिट्टी'' वापस लें।

"यह आंदोलन एक साल तक जारी रहेगा"

राकेश टिकैत ने कहा, 'यह आंदोलन एक साल तक जारी रहेगा। यह सरकार के लिए एक खुला प्रस्ताव है। एमएसपी पर एक कानून बनाना होगा, इसके बिना हम घर वापस नहीं जाएंगे। तीन कानून वापस लिए जाएंगे। इन दोनों मांगों को पूरा करना होगा और उस पर कोई समझौता नहीं होगा। इससे बड़ा आंदोलन नहीं हो सकता। हम विरोध नहीं छोड़ सकते और न ही हम सरकार छोड़ रहे हैं।'

उन्होंने कहा, 'कोई भी खेती की जमीन को नहीं छू सकता है, किसान इसकी रक्षा करेंगे। किसानों और सैनिकों दोनों को इसके लिए आगे आना चाहिए।'

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