नई दिल्ली। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में भावनाओं का ज्वर उफान पर था। कारसेवक अयोध्या के चप्पे चप्पे पर नजर आ रहे थे। विवादित ढांचे से कुछ सौ मीटर दूर बीजेपी और हिंदू संगठनों के नेता राम मंदिर से आंदोलन से जुड़ी बातों का जिक्र कर रहे थे। लेकिन शायद ही किसी को पता रहा हो कि कुछ वैसा होने वाला है जिसे सोच पाना भी मुश्किल रहा होगा क्योंकि विवादित ढांचा अदालती कार्रवाई का सामना कर रहा था। लेकिन जो कुछ हुआ उसके बाद भारतीय राजनीति की तस्वीर बदल गई। भारतीय राजनीति में एक तरह से वर्टिकल डिविजन हो चुका था।
6 दिसंबर को गिरा था विवादित ढांचा
विवादित ढांचे को गिराये जाने में बीजेपी के यहां विश्व हिंदू परिषद के नेताओं की कितनी भूमिका रही है इसे लेकर तरह तरह के विचार हैं, हालांकि बीजेपी नेताओं समेत 32 लोगों को बाबरी ढांचा विध्वंस में आरोपी बनाया गया जिसमें मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती का नाम शामिल है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि तत्कालीन बीजेपी सरकार ने दिए गए हलफनामे की अवहेलना की और यूपी सरकार की लापरवाही की वजह से ढांचा गिरा दिया गया। यहां यह भी जानना जरूरी है कि ढांचा गिराए जाने के बाद बीजेपी शासित राज्यों को बर्खास्त भी कर दिया गया।
1992 से अब तक क्या हुआ
जानकारों की राय अलग अलग
सवाल यह है कि 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया तो उस वक्त बीजेपी के नेताओं की भूमिका क्या था। इस पर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी और हिंदुवादी संगठनों के नेताओं के जोशीले भाषण से माहौल गरमा चुका था और विवादित ढांचा गिरने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं था। लेकिन दूसरे लोगों का मानना है कि ऐसा कहना उचित नहीं होगा। बीजेपी के नेता राम मंदिर के संबंध में अपनी बात कह रहे थे लेकिन इसका अर्थ यह नहीं था कि वो कारसेवकों को उकसा रहे थे।
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