कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है जहाँ हिन्दू धर्म के अनुयायी कृष्ण भगवान का जन्म स्थान मानते हैं। यह विवादों में भी घिरा हुआ है क्योंकि इससे लगी हुई जामा मस्जिद मुसलमानों के लिये धार्मिक स्थल है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का न केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षक मन्दिर के रूप में स्थापित है। पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ प्रतिदिन आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
प्रथम बार कृष्ण जन्मभूमि पर कोई निर्माण अर्जुनायन शासक अरलिक वसु ने तोरण द्वार के रूप में करवाया था लेकिन यहां प्रथम मंदिर का निर्माण यदुवंशी राजा ब्रजनाम (भरतपुर नरेश के पूर्वज) ने 80 वर्ष ईसा पूर्व में कराया था। कालक्रम (हूण, कुषाण हमलों) में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई० में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव तोमर के शासन काल में हिन्दू जाट शासक जाजन सिंह ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मथुरा क्षेत्र में मगोर्रा के सामंत शासक थे इनका राज्य नील के व्यापार के लिए जाना जाता था।शासक जाजन सिंह तोमर (कुंतल) ने 1150 ईस्वी में करवाया। इस जाजन सिंह को जण्ण और जज्ज नाम से भी सम्बोधित किया गया है। इनके वंशज आज जाजन पट्टी, नगला झींगा, नगला कटैलिया में निवास करते है।
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है। शिलालेख के अनुसार मंदिर के व्यय के लिए दो मकान, छः दुकान और एक वाटिका भी दान दी गई दिल्ली के राजा के परामर्श से 14 व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जिसके प्रधान जाजन सिंह थे। यह मंदिर भी 16 वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। 1618 ई० में ओरछा के बुन्देला राजा वीरसिंह जूदेव ने विशाल मन्दिर का निर्माण जन्म भूमि कराया यह मंदिर इतना विशाल था कि आगरा से दिखाई देता था। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। इस मंदिर को वीर गौकुला जाट ने नहीं गिराने दिया व उनके बलिदान के बाद ही इसे गिराया जा सका फिर जाटों ने मुगलो की राजधानी आगरा पर आक्रमण कर दिया था।
फिर पुनः इसका निर्माण यहां के जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया जिसका विस्तार महाराजा जवाहर सिंह ने किया। बिड़ला द्वारा 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना करने के साथ ही यह मंदिर ट्रस्ट के अधीन चला गया जबकि इससे पहले इसकी जिम्मेदारी भरतपुर नरेशों के पास थी। क़ानूनी मुकद्दमों में जीतने के बाद यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मामला कोर्ट पहुंच गया है। संपूर्ण कृष्ण जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए मथुरा के सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया है। अदालत में सिविल मुकदमा दायर कर श्री कृष्ण विराजमान ने अपनी जन्मभूमि मुक्त कराने की गुहार लगाई है। इस याचिका के जरिए 13.37 एकड़ की कृष्ण जन्मभूमि का स्वामित्व मांगा है। इस पर मुगल काल में कब्जा कर शाही ईदगाह बना दी गई थी। शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। वकील हरि शंकर जैन और विष्णु जैन ने वादी भगवान श्री कृष्ण विराजमान की ओर से स्थानीय मथुरा अदालत में 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि भूमि पर दावा ठोकने और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग करने के लिए मुकदमा दायर किया है।
मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी है।मुकदमे में दावा किया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागर में हुआ था और पूरे क्षेत्र को 'कटरा केशव देव' के नाम से जाना जाता है। जन्म स्थान मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन समिति द्वारा खड़े किए गए वर्तमान ढांचे के नीचे स्थित है। इसने मथुरा में कृष्ण मंदिर को गिराने के लिए मुगल शासक औरंगजेब को दोषी ठहराया है। यह तथ्य और इतिहास की बात है कि औरंगजेब ने 1658-1707 तक देश पर शासन किया और उसने इस्लाम के कट्टर अनुयायी होने के कारण जन्म स्थान पर खड़े मंदिर सहित बड़ी संख्या में हिंदू धार्मिक स्थलों और मंदिरों को ध्वस्त करने के आदेश जारी किए थे।
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