कोरोना वायरस महामारी के बीच ब्रज में श्री कृष्ण जन्मष्टमी का त्यौहार धूम धाम के साथ मनाया गया । मंदिरों को बेहतरीन तरीके से सजाया गया था लेकिन श्रद्धालुओं के नहीं आने के कारण यह फीका ही रहा । इस बीच वृन्दावन के तीन मंदिरों में बुधवार की सुबह ठाकुरजी का अभिषेक कर खुशियां मनाई गईं।
इस बार कोरोना जैसी महामारी से बचाव के लिए जिला प्रशासन एवं मंदिरों की प्रबंध कमेटियों, संचालकों एवं प्रबंधकों ने आपस में मिल-बैठकर तय किया था कि मंदिरों में 10 अगस्त से 13 अगस्त की सायंकाल तक किसी को भी दर्शन के लिये प्रवेश नहीं दिया जाए। इस मौके पर मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया गया था लेकिन मंदिरों की जगमगाती रौशनियां उनके दर्शनार्थियों के अभाव में कुछ फीकी-फीकी सी ही नजर आयी ।
मथुरा की सांसद हेमामालिनी, ऊर्जामंत्री श्रीकांत शर्मा, जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र व सभी आला अधिकारी कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर लोगों को शुभकामनायें दी । कोरोना से बचाव के लिए इनलोगों ने जनता से जन्माष्टमी के कार्यक्रम आनलाइन व सोशल मीडिया तथा टीवी चैनलों के माध्यम से कराए जा रहे सीधे प्रसारण को देखकर तथा घर में ही रहकर त्यौहार मनाने की अपील की ।
मंगलवार को जहां स्मार्त संप्रदाय के मतावलंबियों ने जन्माष्टमी का पर्व मनाया, वहीं बुधवार को पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के मंदिर में जन्माष्टमी का आयोजन हुआ और ब्रज के घर-घर में श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर ठाकुर जी 5248वां जन्मदिवस मनाया। वल्लभकुल द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के ठा. द्वारिकाधीश मंदिर में में अजन्मे का जन्म बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
मंदिर के विधि एवं मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि प्रातः काल सवा छह बजे ठाकुर जी के मंगलाचरण के पश्चात साढ़े छह बजे ठा. द्वारिकाधीश के श्रीविग्रह का भव्य पंचामृत अभिषेक हुआ। तत्पश्चात ठाकुरजी का श्रृंगार हुआ और फिर राजभोग के दर्शन खुले। उन्होंने बताया कि यह दर्शन उनके भक्त आभासी रूप में ही कर सके, जिनके लिए दूरदर्शन एवं विभिन्न टीवी चैनलों ने कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया ।
स्थानीय लोगों ने बताया कि बुधवार को वृन्दावन के तीन मंदिर ऐसे भी थे जहां मध्य रात्रि के स्थान पर दिन में ही ‘लाला’ का अभिषेक सम्पन्न करा दिया गया। उनका कहना है कि इन मंदिरों की मान्यता है कि यदि रात्रिकाल में ठाकुर जी को जगाया जाएगा तो यह माता यशोदा को अच्छा नहीं लगेगा। क्योंकि, वे इसे उनकी नींद में व्यवधान डालने वाला कार्य मानती हैं।
इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए वृन्दावन के श्री राधादामोदर, श्री राधारमण और टेड़े खम्भों वाले शाहजी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व परम्परागत रूप से दिन में मना लिया गया। उसी समय उनका प्राचीन विधि-विधान से अभिषेक किया गया और फिर आरती कर भोग लगाया गया।
श्री राधादामोदर मंदिर के सचिव पूर्णचंद्र गोस्वामी ने इस परम्परा के पीछे एक और कारण बताया कि भक्तिकाल में जब भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु ने जब वृन्दावन की पुनर्स्थापना कर यहां सप्त देवालय स्थापित कराए तब उनके निर्देशानुसार उनके शिष्य जीव गोस्वामी सभी मंदिरों में सेवा-पूजा किया करते थे।
उन्होंने बताया कि वे इन सभी मंदिरों में आठों प्रहर सेवा-पूजा करने में बहुत अधिक थक जाया करते थे तो उन्होंने कुछ मंदिरों में जन्माष्टमी के दिन में और कुछ मंदिरों में रात में पूजा करने का नियम बना लिया। उन्होंने कहा कि सकता है कि इन मंदिरों में जीव गोस्वामी की इसी परम्परा का पालन करते हुए यह प्रथा बन गई।
जबकि, श्री राधारमण मंदिर के सेवायत सुमित गोस्वामी कहते हैं कि उदयात तिथि के अनुसार चूंकि इस वर्ष अष्टमी तिथि पूर्वाह्न साढे़ ग्यारह बजे तक ही रहेगी। इसलिए हमने उससे पूर्व ही अभिषेक आदि परम्पराओं का निर्वहन कर लिया। इसी प्रकार शाहजी का मंदिर के प्रबंधक शाह प्रशांत कुमार ने बताया, ‘मंदिर की प्राचीन परम्परानुसार हमने भी दिन में ही ठा. राधारमण के विग्रह का विधिपूर्वक तमाम शास्त्रोक्त के साथ पंचामृत से अभिषेक किया। लेकिन इस मौके पर हर वर्ष यहां आने वाले श्रद्धालुओं की कमी बहुत अधिक खली।’
आखिरी समाचार मिलने तक कृष्ण जन्माष्टमी के मुख्य आकर्षण माने जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भागवत भवन, ठा. केशवदेव मंदिर, गर्भगृह व योगमाया मंदिर आदि में जन्माभिषेक की तैयारियां अंतिम दौर में थीं और पूरे मंदिर परिसर में झांझ, मजीरे, ढोल, नगाड़ों की ध्वनि कान्हा के जन्म के उल्लास का आभास दे रही थी।
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