Labour Day 2022: संघर्ष की मिसाल थे मजदूर नेता बाबू रामदेव सिंह, मजदूर दिवस पर जानिए उनकी प्रेरणाप्रद कहानी

Happy International Labor Day 2022: आज दुनियाभर में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। पिछले 132 साल से मई माह की पहली तारीख को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है।

Labor Day 2022: Babu Ramdev Singh was an example of struggle
मजदूर दिवस: संघर्ष की मिसाल थे बाबू रामदेव सिंह 
मुख्य बातें
  • मजदूर दिवस पर मजदूर नेता रामदेव सिंह की कहानी
  • रामदेव सिंह ने हिला दी थीं हिंडाल्को मैनेजमेंट की चूलें
  • भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में की थी इस दिवस की शुरूआत

नई दिल्ली: हाल ही में 14 अप्रैल 2022 को एशिया की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम कंपनी हिंडाल्को के प्रथम मजदूर नेता रामदेव सिंह की 87 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी।  मजदूरों का मसीहा कहे जाने वाले रामदेव बाबू की याद में 28 अप्रैल 2022 को एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला। तब से वह फिर चर्चा में हैं और लोग जगे हैं। इस अवसर पर दो महत्वपूर्ण घोषणाएँ भी हुईं। पिपरी नगर पंचायत के चेयरमैन दिग्विजय सिंह ने शहर में बनने वाले पार्क का नाम रामदेव सिंह पार्क रखने की घोषणा की। रामदेव बाबू के पुत्र कवि मनोज भावुक ने घोषणा की कि हर साल बाबूजी की पुण्यतिथि 14 अप्रैल को मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले एक शख्सियत को रामदेव सिंह सम्मान से नवाजा जाएगा। 

नेता रामदेव की कहानी, उनके संघर्ष के साथियों की जुबानी 

बाबू रामदेव के संघर्ष के दिनों के साथी वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार अजय शेखर उस दौर को याद करते हुए कहते हैं, “जब किसी तरह के जुल्म के खिलाफ, शोषण के खिलाफ, अत्याचार के खिलाफ सीना तान कर एक टोली खड़ी हो जाती थी और उस टोली में चाँद की तरह चमकता था एक चेहरा, वह चेहरा बाबू रामदेव सिंह का था। रामदेव जी की तरह अक्खड़, संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति वाले लोग दुर्लभ हैं। भारत में सोने की लंका का कोई महत्व नहीं है, यहाँ महत्व है चौदह साल वनवास रह कर लोक कल्याण करने वाले राम का। यहाँ महत्व है चौदह साल वनवास रहकर हिंडाल्को मैनेजमेंट के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर और लड़कर मजदूरों का कल्याण करने वाले रामदेव का।”

‘राष्ट्रीय श्रमिक संघ’ के संस्थापक हैं रामदेव बाबू 

रामदेव बाबू के साथ अक्सर मजदूरों के हित के लिये किये जाने वाले असंख्य हड़ताल में हिस्सा लेने वाले श्रीनारायण पाण्डेय जब फाकामस्ती में बीते उन 60 और 70 के दशक की बात करते हैं तो उनकी आँखें डबडबा जाती हैं। वह बोलते हैं, रुक कर गला साफ करते हैं और फिर उन जिद और दृढ़ संकल्प की कहानियों को कहते जाते हैं। “रामदेव जी से मेरा परिचय 1962 में 29 जून को हुआ था। वह हिंडाल्को में पॉट रूम में काम करने के दौरान वहाँ मजदूरों की दयनीय हालत को देखकर मैनेजमेंट पर हमेशा करारा प्रहार किया करते थे जिसके कारण उन्हें कई-कई बार टर्मिनेशन का सामना करना पड़ा था। बाबू रामदेव सिंह ने एक ट्रेड यूनियन ‘राष्ट्रीय श्रमिक संघ’ की स्थापना की, जो आज भी सक्रिय है। उस समय रेनूकूट के सड़क के दोनों किनारों पर एक भी झोपड़ी नहीं थी, एक भी दुकानदार नहीं था...सिर्फ बेहया (जंगली झाड़ी) के जंगल थे। रामदेव जी ने झोपड़ियाँ बनवाईं, दुकाने खुलवाईं और व्यापार मण्डल के अध्यक्ष बने। रामदेव जी ने बिड़ला मैनेजमेंट के खिलाफ संघर्ष किया जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 

कौन हैं रामदेव सिंह 

बिहार के सिवान जिले के कौंसड़ गाँव में 8 अक्टूबर 1935 को जन्मे रामदेव सिंह एक सामान्य किसान के बेटे थे। 1961-62 के बीच उनकी नौकरी हिंडाल्को कारखाने के पॉट रूम में लगी, जहां आग उगलती भट्ठियाँ और उबलते बॉयलर्स होते थे। मजदूरों को वहाँ खतरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। ऊपर से तनख्वाह और सुविधाएं नाम मात्र की थीं, तथा अधिकारियों की डाँट फटकार से वहाँ के मजदूर त्रस्त थे। आवास के नाम पर एक टीन शेड के नीचे 30-30 मजदूर भेड़ बकरियों के जैसे रहा करते थे। यह सब देख उबलते बॉयलर्स की तरह युवा रामदेव के अंदर का क्रांतिकारी उबल पड़ा। वह सीधे फोरमैन से जाकर मजदूरों की समस्या के लिये भिड़ गए। उन लोगों ने जॉब से निकालने की धमकी दी तो वह और तन गए। उनके खिलाफ वार्निंग लेटर आया, जिसे उन्होंने अधिकारियों के सामने सुलगते सिगरेट से जला दिया। 

हिंडाल्को में पहला श्रमिक आंदोलन 

रामदेव जी ने जीवन का पहला आंदोलन साल 1963 में एक रात 11 बजे शुरू किया जब उन्होंने हिंडाल्को में तीन दिन की हड़ताल करा दी। फिर दूसरी हड़ताल 12 अगस्त 1966 में हुई। बाबू रामदेव सिंह की एक आवाज पर हिंडाल्को की चिमनी का धुआँ बंद हो गया था। पूरे प्लांट को बंद करना पड़ा था। इतना बड़ा जन समर्थन था, बाबू रामदेव सिंह के साथ।” उसका असर ये हुआ कि रामदेव बाबू समेत 318 लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। वह पक्के सोशलिस्ट थे, जिद्दी और धुन के पक्के थे।”

राम की तरह रामदेव को भी चौदह साल का वनवास 

वह 14 साल तक बेरोजगार रहे और उन्हें इसकी सुध नहीं थी। क्योंकि वह हिंडाल्को के मजदूरों के हक के लिये लड़ रहे थे। उन्हें बहुत प्रलोभन दिया गया लेकिन उनके जमीर का कोई मोल नहीं लगा सका। साल 1977 में उनके साथी और प्रसिद्ध राजनेता रहे राजनारायण जी ने रामदेव जी को पुनः हिंडाल्को जॉइन कराया। 

1963 से 77 तक का संघर्ष 

पर 1963 से 77 तक हड़ताल पर हड़ताल होते गए, नेता रामदेव सिंह का नाम पहले राज्य के राजनीति में फिर केंद्र की राजनीतिक गलियारों तक पहुँच गया। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से रामदेव सिंह ने कई बार मीटिंग की। केन्द्रीय मंत्री रहे राजनारायण और प्रभुनारायण तो उनके संघर्ष के साथी रहे। उनका भरपूर समर्थन हमेशा मिलता रहा। रेनुकूट से सटे पिपरी पुलिस स्टेशन के पास रामदेव सिंह का निवास स्थान था, जहां अक्सर भारतीय राजनीति के महान राजनेता राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, राजनारायण,  चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडीज़, विश्वनाथ प्रताप सिंह चंद्रशेखर, लालू प्रसाद यादव और वर्तमान केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह आदि का आना-जाना हुआ करता था। यहीं दावत होती और राजनीतिक विश्लेषण होते। सच्चे समाजवादी के रूप में मशहूर रामदेव सिंह की बहादुरी और बेबाकीपन के सब कायल थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे रामनरेश यादव रामदेव बाबू को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। उनका लगाव रामदेव सिंह से आजीवन रहा। मजदूर आंदोलन के अलावा जे. पी. आन्दोलन में भी सक्रिय रहे रामदेव बाबू।  आज भले रामदेव बाबू का नश्वर शरीर इस दुनिया में नहीं है लेकिन श्रमिक आंदोलन के इतिहास में और मजदूरों के दिल में वह सदैव जिंदा रहेगें।

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