नई दिल्ली। लॉकडाउन 4 की गाइडलाइंस अब सबके सामने है। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में एक बार फिर इसे 31 मई तक बढ़ाने का आधिकारिक फैसला ले लिया गया। लॉकडाउन 4 में रेड, ऑरेंज, ग्रीन जोन के अलावा बफर और कंटेनमेंट जोने के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई। लेकिन प्रवासी मजदूरों की दिक्कतभरी तस्वीरों से हम सब दोचार हो रहे हैं। देश नके अलग अलग हिस्सों में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के चलाए जाने के बाद सड़कों पर मजदूरों के रेले को देखा जा सकता है।
सड़कों पर श्रमिक
प्रवासी श्रमिकों की अपनी दिक्कते हैं तो सरकार के दावे कुछ और हैं। इस क्रम में दिल्ली से यूपी के सीतापुर जा रही एक महिला श्रमिक राजकुमारी कहती है कि जब लॉकडाउन खत्म नहीं हो रहा है और सरकार की तरफ से सुविधा नहीं मिल रही है तो पैदल चलने के अलावा दूसरा विकल्प ही क्या बचा है। अगर हम यहां मर भी जाते हैं तो हमारा शव भी हमारे घरों तक नहीं पहुंच सकेगा। इस तरह की व्यथा सिर्फ राजकुमारी की नहीं है, बल्कि हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिकों की यही पीड़ा है।
दावों की इसलिए खुल रही है पोल
सवाल यह उठता है कि जब सरकार की तरफ से इतने बड़े बड़े वादे और दावे किए जा रहे हैं तो इस तरह की तस्वीरें क्यों सामने आ रही है। इस विषय में जानकारों का कहना है कि दरअसल राज्यों में आपसी समन्वय की कमी है। कई राज्य सरकारें सिर्फ इस कोशिश में हैं कि किसी तरह प्रवासी श्रमिक उनके राज्यों की सीमा से बाहर चलें जाएं। जहां तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के चलाए जाने का सवाल है तो यह बात सच है कि ट्रेनें और बसें चलाई जा रही हैं। लेकिन मजदूरों की संख्या के हिसाब से यह कम है।
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