अपनी ही पार्टी के भीतर विद्रोह का सामना करने वाले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे 22 जून को शाम 5 बजे इस्तीफा देने के लिए तैयार थे, क्योंकि यह स्पष्ट था कि महाराष्ट्र सरकार के सामने राजनीतिक संकट से निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन महा विकास अघाडी (MVA) के सहयोगियों ने उन्हें इस्तीफा नहीं देने के लिए मना लिया। सूत्रों ने इसकी जानकारी दी है। इसके अलावा सूत्रों ने कहा कि उद्धव ठाकरे एमवीए सरकार के सामने खड़े राजनीतिक संकट से बाहर निकलने के लिए भाजपा नेताओं के संपर्क में थे।
ठाकरे को इस्तीफा देना था और फिर 22 जून की शाम को शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पर जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां तक कि ठाकरे का शाम पांच बजे का संबोधन भी योजनाओं में बदलाव के कारण शाम साढ़े पांच बजे से आगे भी विलंबित हो गया।
22 जून को फेसबुक पर दिए गए अपने संबोधन में ठाकरे ने कहा कि बागी विधायक मुंबई आए और उनकी इच्छा है तो वो मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे, इसके अलावा वो शिवसेना प्रमुख का पद भी छोड़ने को तैयार थे। इसके कुछ देर बाद ठाकरे अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने आधिकारिक आवास 'वर्षा' से पारिवारिक आवास मातोश्री के लिए रवाना हो गए थे।
महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई दिलचस्प होती जा रही है। आज सुप्रीम कोर्ट में शिंदे गुट की याचिका पर सुनवाई हुई, ये वही याचिका थी, जिसमें बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने और डिप्टी स्पीकर नरहरि जरवाल की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। लेकिन कोर्ट ने अपनी सुनवाई में कहा है कि बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के मामले में डिप्टी स्पीकर कोई फैसला नहीं लेंगे। सिर्फ विधायकों को अयोग्य घोषित नहीं करने तक ही बात सीमित नहीं है, अब कोर्ट ने महाराष्ट्र की सरकार को कहा है कि 39 बागी विधायकों के परिवारों की सुरक्षा की जाए ताकि उनके परिवार को कोई जानमाल का नुकसान ना हो। और ये पूरी जिम्मेदारी महाराष्ट्र की सरकार पर होगी। कोर्ट चाहती है कि अब इस मामले में केंद्र भी जवाब दे इसीलिए केंद्र को भी नोटिस भेजे गए हैं।
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