Maharashtra Floor Test: सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी 30 जून को महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट कराने की अनुमति दे दी है। शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु ने एक याचिका दायर की थी, जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 30 जून को सदन में बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुना, जिसके बाद ये निर्णय दिया गया।
याचिका के पक्ष में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एनसीपी के दो विधायक कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, कांग्रेस के दो विधायक विदेश में हैं और उन्हें एक दिन में शक्ति परीक्षण में हिस्सा लेने को कहा गया है। शक्ति परीक्षण इतने कम समय में कराने का राज्यपाल का आदेश चीजों को गलत तरीके या गलत क्रम से कराने जैसा है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को उस वक्त तक शक्ति परीक्षण कराने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, जब तक कि डिप्टी स्पीकर बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं करते हैं। जिन विधायकों ने पाला बदल लिया है वे जनता की इच्छा को प्रदर्शित नहीं करते हैं और कल शक्ति परीक्षण नहीं हुआ तो कोई आपदा नहीं आ जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह समझते हैं कि सदन में शक्ति परीक्षण ही लोकतंत्र के इन मुद्दों का हल करने का एकमात्र तरीका है। एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एन. के. कौल ने कहा कि स्पीकर के समक्ष अयोग्यता कार्यवाही लंबित रहना शक्ति परीक्षण में विलंब करने का कोई आधार नहीं है। लोकतंत्र की प्रक्रिया सदन के पटल पर होती है और यही करने की कोशिश की जा रही है। सदन तो रहने दीजिए, वे (उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना) पार्टी के अंदर ही अल्पमत में हैं। विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने का सर्वश्रेष्ठ तरीका शक्ति परीक्षण है, किसी भी तरह का विलंब लोकतांत्रिक राजनीति को अधिक नुकसान पहुंचाएगा। उभरती स्थिति शक्ति परीक्षण की आवश्यकता बताती है और राज्यपाल ने अपने विवेकाधिकार से इसे कराने का फैसला किया है। आज हम शिवसेना नहीं छोड़ रहे हैं। हम शिवसेना हैं। हमारे पास शिवसेना के 55 में से 39 विधायक हैं।
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सॉलिसीटर जनरल ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष अपनी मतदाता सूची तय नहीं कर सकते क्योंकि वह अपने निर्वाचक मंडल का फैसला नहीं कर सकते। सदन में बहुमत साबित करने में देरी नहीं की जा सकती और कुल मिलाकर राज्यपाल संतुष्ट हैं। संबंधित सामग्री के आधार पर शक्ति परीक्षण कराना होगा। शिवसेना की ओर से सिंघवी ने रिजॉइंडर दलील में न्यायालय में कहा कि उनके मुताबिक विधानसभा अध्यक्ष ही हमेशा संदिग्ध और राजनीतिक हैं, राज्यपाल तो बहुत सीधे-सच्चे हैं। राज्यपाल कोई देवदूत नहीं हैं, वे इंसान हैं और इसलिए पहले भी एसआर बोम्मई और रामेश्वर प्रसाद आदि मामलों में न्यायालय के फैसले आए हैं।
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