महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट कराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 29 जून को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने विधानपरिषद से भी इस्तीफा दे दिया है। सत्ता गंवा चुके उद्धव के सामने अब अपनी पार्टी को बचाने का संकट है। सवाल है कि क्या अब वे अपनी पार्टी बचा सकेंगे क्योंकि बागी एकनाथ शिंदे गुट शिवसेना पर अपना हक जता रहा है। शिवसेना के राजनीतिक भविष्य पर संकट गहरा गया है।
आज हम चर्चा इसी बात पर कर रहे हैं कि उद्धव ठाकरे किस तरह अपनी शिवसेना बचा पाएंगे क्योंकि बागी एकनाथ शिंदे गुट यह दावा कर रहा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं। ऐसे में शिवसेना के टूटने का खतरा पैदा हो गया है।
पार्टी पर कमजोर हो सकती है ठाकरे की पकड़
जिस तरह दोनों गुट बाला साहेब की विरासत पर अपने-अपने दावे जता रहे हैं तो मौजूदा हालात में संभावना इस बात की बन रही है कि शिवसेना अब एक नहीं रह सकती है और पार्टी पर उद्धव ठाकरे की पकड़ भी कमजोर हो सकती है। इस बात को उद्धव ठाकरे भी समझ गए हैं, इसलिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद उद्धव ने कहा कि अब से शिवसेना के दफ्तर में बैठूंगा और दोबारा से पार्टी को मजबूत करूंगा। इससे साफ जाहिर होता है कि उद्धव के सामने शिवसेना को बचाए रखने का संकट है।
उद्धव गुट के कुछ और विधायकों के टूट का खतरा
दूसरी तरफ उद्धव गुट के कुछ और विधायकों के भी टूट का खतरा बना हुआ है। फिलहाल एकनाथ शिंदे के साथ 40 विधायक हैं. बीजेपी यदि एकनाथ शिंदे गुट के बागी विधायकों को बीजेपी बड़ा ऑफर करती है, जैसे मंत्री पद या पावर सेंटर में बड़ा हिस्सा मिलता है या उनके क्षेत्र के लिए अच्छा फंड मिलता है तो उद्धव गुट के कुछ विधायकों में भी आशा बनेगी और सत्ता में जगह बनाने की हलचल मच सकती है। माना जा रहा है कि शिंदे गुट में जाने वाले विधायकों की संख्या बढ़ भी सकती है।
पूरी शिवसेना नहीं ले जा सकते शिंदे
हालांकि एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ जाने का मन बना लिया है। लेकिन वे अपने साथ पूरी शिवसेना नहीं ले कर जाएंगे। क्योंकि आदित्य ठाकरे, सुनील प्रभु या रविंद्र वायकर जैसे विधायक एकनाथ शिंदे के साथ नहीं जाएंगे ऐसे में शिवसेना के टूटने की तस्वीर साफ नजर आ रही है।
पार्टी पर कब्जे के लिए शिंदे के पास विकल्प क्या?
वहीं बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद एकनाथ शिंदे के पास दो विकल्प बचते हैं. या तो वे एक तिहाई विधायकों के साथ बीजेपी में मर्ज कर लें जिससे वे दल बदल निरोधक कानून के तहत अयोग्य होने से बच सकें और दूसरा यदि वे शिवसेना पर अपना हक नियंत्रण चाहते हैं तो उन्हें चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाना होगा। वे चाहें तो शिवसेना के चुनाव चिह्न, झंडे और नाम पर भी दावा कर सकते हैं। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चुनाव आयोग इस पर फैसला ले सकता है। निर्वाचन आयोग समर्थक विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की संख्या के आधार पर बहुमत वाले गुट को पार्टी का चिह्न, चुनाव चिह्न, झंडा, नाम आदि आवंटित कर देगा।
शिंदे गुट हो सकता है ज्यादा मजबूत?
वहीं उद्धव ठाकरे ने विधानपरिषद से भी इस्तीफा दिया है इसका मतलब है कि वे विधायक दल के नेता नहीं रहेंगे। तो ऐसे में विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे हो सकते हैं और एकनाथ शिंदे गुट ज्यादा मजबूत हो सकता है।
शिवसेना के सामने आने वाली है एक और चुनौती
शिवसेना के सामने एक और चुनौती आने वाली है. बीएमसी में शिवसेना 1997 से बनी हुई है। शिवसेना को यहां से खदेड़ना अब बीजेपी की प्राथमिकता होगी। माना जा रहा है कि इसमें राज ठाकरे के नव निर्माण सेना के साथ बीजेपी ने हाथ मिलाने का फैसला कर लिया है। मुंबई पर उद्धव ठाकरे की जो पकड़ है उसे बीजेपी खत्म करना चाहती है और इस काम में राज ठाकरे की मदद ली जा सकती है। हालांकि बीजेपी को राजठाकरे की उतनी जरूरत नहीं पड़ सकती है क्योंकि बीजेपी के पास शिवसेना की ताकत मिल गई है।
तीन मुद्दों पर होना है फैसला
दूसरी तरफ शिवसेना के बागी गुट के 16 विधायकों की अयोग्यता का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिस पर 11 जुलाई को फैसला होना है। इससे जुड़े तीन बड़े सवाल हैं जिन पर विवाद हो सकता है और मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा सकता है।
1-अगली विधानसभा की जो बैठक होगी जिसमें नई सरकार अपना बहुमत साबित करेगी उसमें व्हिप किसका चलेगा यह बड़ा सवाल है।
2-दूसरी बात विधानसभा के सत्र को कौन संचालित करेगा, मौजूदा डिप्टी स्पीकर ही करेंगे या राज्यपाल किसी नए व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी देंगे या सुप्रीम कोर्ट में मामला खत्म हो जाए तो नया स्पीकर बनेगा।
3-असली शिवसेना कौन है? असली धड़ा कौन है? इस पर स्पीकर या चुनाव आयोग को फैसला करना है?
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