नई दिल्ली : लॉकडाउन में ट्रेनों की आवाजाही शुरू हो जाने के बाद अलग-अलग जगहों पर फंसे हुए लोग अपने शहर तो पहुंचने लगे हैं लेकिन प्रवासी मजदूरों की समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं। श्रमिक ट्रेने चलने के बावजूद वे अपने गृह राज्यों के लिए पैदल निकल पड़े हैं और हादसों का शिकार हो रहे हैं। महाराष्ट्र के औरंगाबाद से हादसे का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आगे भी जारी है। मुजफ्फरनगर के समीप दिल्ली-सहारनपुर राजमार्ग पर गुरुवार रात तेज गति से आ रही एक बस से कुचलकर छह प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई है। सड़कों पर कड़ी धूप में बिना किसी इंतजाम के ये प्रवासी एक उम्मीद लिए अपने गांवों की तरफ बढ़े जा रहे हैं। इनकी शिकायत है कि सरकार ने ट्रेनें चला दी हैं लेकिन उनके पास टिकट का पैसा नहीं है और न ही स्टेशन तक पहुंचने का कोई इंतजाम है।
सरकार ने मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलाई
दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिए सरकार ने श्रमिक ट्रेनें चलाई हैं। इन ट्रेनों से बड़ी संख्या में मजदूर अपने राज्य पहुंच भी रहे हैं लेकिन बहुत सारे प्रवासी मजदूर ऐसे भी हैं जिनके पास टिकट खरीदने का पैसा नहीं है। काम-धाम छूट जाने की वजह से ऐसे मजदूर अपने परिवार के साथ पैदल घर जाने के लिए निकल गए हैं। इस समय जरूरत है कि पैदल अपने गांव-शहर जाने वाले प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए सरकार आगे आए और उन्हें अपने घर पहुंचाने की व्यवस्था करे। इस लॉकडाउन से सबसे ज्यादा कोई प्रभावित हुआ है तो वह प्रवासी मजदूर वर्ग है।
हाल के दिनों में पंजाब, यूपी, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने गृह राज्य जाने के लिए बाध्य हुए हैं। ये मजदूर सैकड़ों हजारों किलोमीटर की दूरी पदैल तय करने पर अमादा हैं। इन मजदूरों का कहना है कि नौकरी जाने के बाद इनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि ये आगे अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर पाए। बच्चों को भूखा रहना पड़ रहा है। ऐसे में इनके पास अपने घर जाने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं बचा है। मजदूरों का कहना है कि एक बार घर पहुंच जाने पर जिंदगी जैसी भी हो वो जी लेंगे।
कोरोना से कई क्षेत्रों में रोजगार हुआ चौपट
कोरोना के असर से देश का कोई क्षेत्र बचा नहीं है। सेवा, उत्पादन, निर्माण, शिक्षा, पर्यटन, यात्रा सब पर इसका प्रभाव पड़ा है। इन क्षेत्रों में गतिविधियां सुचारु रूप से चलने में समय लगेगा। इस विपत्ति का शिकार देश के प्रवासी मजदूर ज्यादा हुए हैं। नौकरी एवं रोजगार के अभाव में अब ये लोग अपने गृह राज्य लौट रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में इस वर्ग का बहुत बड़ा हाथ होता है। इसलिए सरकार का प्रयास इन्हें राहत देकर वापस विकास के मुख्य धारा में शामिल करने का होनी चाहिए। संकट की इस घड़ी में भारत ने दुनिया की मदद की है। ऐसे में उम्मीद है कि वह अपने नागरिकों को बदहवास हालत में नहीं छोड़ेगा।
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