What is Moonlighting in Hindi: काम का बोझ कई दफा इतना ज्यादा होता है कि एक नौकरी भी कभी-कभी लोगों के लिए करना मुश्किल हो जाता है। मगर भारत में ही कुछ लोग ऐसे हैं जो एक वक्त पर दो-दो फुल टाइम जॉब्स करते हैं। इतना हीन हीं, सबसे रोचक और हैरत बात यह है कि कुछ लोग तो ऐसे हैं, जो एक समय पर पांच-छह नौकरियां करते हैं। आइए, जानते-समझते हैं कि आखिरकार वे लोग कैसे इतनी सारी नौकरियां कर लेते हैं और क्या हिंदुस्तान में ऐसा करना मान्य है।
दरअसल, यह मूनलाइटिंग (Moonlighting) कान्सेप्ट कहलाता है। इसमें कोई व्यक्ति एक रेग्युलर जॉब के साथ अधिक पैसे कमाने के लिए और काम करता है। मतलब साथ-साथ वह और नौकरियां करता रहता है। पश्चिमी मुल्कों में यह बेहद पॉपुलर प्रैक्टिस है, जबकि कोरोना के बाद दुनिया से इसने भारत का रुख भी किया। वर्क फ्रॉम होम (घर से काम करने) मोड में भारतीयों ने पैसों की किल्लत और अन्य वजहों से तेजी से एक साथ कई सारी नौकरियां (खासकर टेक सेक्टर में) करना चालू कर दिया था। नतीजतन कई स्टार्ट-अप्स इस कॉन्सेप्ट की वजह से जन्मे, पनपे और उभरे।
'मनी कंट्रोल' की रिपोर्ट में साल 2021 के एक सर्वे के हवाले से बताया गया कि अमेरिका में 37 फीसदी रिमोट वर्कर्स (जो लोग मेन ऑफिस के बजाय दूसरे लोकेशंस से काम करते हैं) ने माना कि वह दो फुल टाइम जॉब्स कर रहे थे। लोगों ने अधिक जॉब्स को सिर्फ पैसे कमाने के मकसद से नहीं पकड़ा। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह (50 फीसदी लोग) रही कि वे अपना निवेश का हिस्सा बढ़ाना चाहते हैं। फिर दूसरा बड़ा मसला (47 फीसदी) है कि वह अपना कर्ज चुकाना चाहते हैं। तीसरा प्वॉइंट (44 फीसदी)- वह अधिक नॉलेज और एक्सपीरियंस हासिल करना चाहते हैं। चौथा (41 फीसदी)- जो लोगों का पैशन है, वे उसे ही अपना करियर बनाना चाहते हैं, जबकि पांचवां कारण (36 फीसदी लोग) बोरियत और खाली समय से भी निजात पाने के लिए भी है।
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हाल ही में फूड डिलीवरी ऐप स्विगी (Swiggy) ने मूनलाइट पॉलिसी का ऐलान किया, जिसमें लोग फुल टाइम काम करने वालों को भी काम करने की मंजूरी दी गई थी। हालांकि, कंपनी ने कहा था कि मूनलाइटिंग ऑफिस के काम के घंटों के बाद की जाए। हमारी प्रोडक्टिविटी पर असर नहीं पड़ना चाहिए। साथ ही जॉब स्विगी के बिजनेस के साथ जॉब किसी भी सूरत में मैच या क्लैश न हो। इंटरनल अप्रूवल भी इसके लिए जरूरी है। वैसे, बड़े स्तर पर इस मुद्दे को देखें तो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट सरीखी कंपनियां मूनलाइटिंग को मंजूरी देती हैं, पर वे अप्रूवल के बाद।
मूनलाइटिंग को किस वजह से सही नहीं मानती हैं कंपनियां?
- हितों का टकराव (कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट)
- प्राइमरी नौकरी पर दुष्प्रभाव
- काम और प्रोडक्टिविटी पर असर
- कंपनी के संसाधनों का गलत इस्तेमाल
- अधिक छुट्टियां लेना आदि
क्या होते हैं इस कॉन्सेप्ट के नुकसान
- अधिक समय तक काम करना पड़ता है। यह 16 से 18 घंटे तक जा सकता है।
- काम का बोझ और तनाव ज्यादा होता है।
- नींद पूरी करने में लोगों को दिक्कत आती है।
-सोशल लाइफ पर भी असर पड़ता है।
- लंबे समय के लिहाज से देखें तो यह जोखिमभरा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
मूनलाइटिंग से पहले क्या करना चाहिए?
- अपना एंप्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट जरूर चेक करें।
- मैनेजर से भी बात कर लें।
- अगर हर जगह से हरी झंडी मिल जाती है, तब फिर आप अत्यधिक काम के बीच अपनी सेहत को जरूर ट्रैक करते रहें।
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