मुंबई: कहा जाता है कि परेशानी के वक्त पड़ोसी ही पड़ोसी की मदद करता है। लेकिन कोरोना संकट के दौर में मुंबई में कुछ पड़ोसियों ने अपनी हरकतों से सभी को हैरत में डाल दिया। इन पड़ोसियों ने अपने पास में रहने वाले एक 34 वर्षीय युवक के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर फ्रिक करना तो दूर उसके पिता को ही धमकाना शुरू कर दिया। दशकों से साथ रह रहे पड़ोसियों ने युवक के 64 वर्षीय पिता को जेल भेजने और हाउसिंग सोसायटी से बाहर निकालने की धमकी दी। पिछले महीने कोरोना पॉजिटिव पाया गया युवक अब पूरी तरह ठीक हो गया है और फिलहाल सेल्फ-आइसोलेशलन में है।
'वे अपनी हदों से आगे बढ़ गए'
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण मुंबई निवासी युवक ने कहा, 'मैंने उनसे (पड़ोसियों से) उम्मीद की थी कि वे मेरे पिता को सपोर्ट करेंगा। अगर वे कुछ न कहते या करते, तो यह ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती। लेकिन हकीकत कुछ और है। वे (पड़ोसी) अपनी हदों से आगे बढ़ गए और मेरे पिता को सलाखों के पीछे डालने की धमकी दी।' युवक कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद 27 मार्च से 3 अप्रैल के बीच अस्पताल में रहा। इसके बाद जब उसकी दो बार नेगेटिव टेस्ट रिपोर्ट के बाद तोअस्पताल से छुट्टी दे दी गई। युवक ने कहा कि वह 17 अप्रैल तक होम आइसोलेशन में रहेगा।
ब्रिटेन से लौटने पर तबीयत हुई नासाज
युवक पिछले महीने काम के सिलिसिले में ब्रिटेन गया था और वापसी पर उसकी तबीयत नासाज हो गई। युवक ने कहा कि शुरू में फ्लू की तरह लगा मगर फिर गंभीर लक्षण दिखने लगे जिसके बाद खुद को होम क्वारंटीन कर लिया। युवक ने कहा, 'जब मुझे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई तो मैंने अस्पताल में कॉल किया। सांस की ऐसी तकलीफ मुझे पहली कभी नहीं हुई थी। मुझे कस्तूरबा अस्पताल से फोन आया और मैंने लगभग एक घंटे तक उनके सभी सवालों के जवाब दिए। वे मेरे जवाबों से संतुष्ट थे और मुझे अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी। मैं 27 मार्च से 3 अप्रैल तक अस्पताल में था। मुझे दो निगेटिव टेस्ट के बाद छुट्टी दे दी गई थी।'
'धमकी देने वाला व्यक्ति मुझ से तीन साल बड़ा'
युवक का परिवार दक्षिण मुंबई के जिस घर में रहा है, वहां उसके दादा पहली बार 1960 के दशक में रहने आए थे। उसके पड़ोसी उन्हें कम से कम दो दशक से जानते हैं। युवक ने कहा, 'मेरे पिता को धमकी देने वाला व्यक्ति मुझ से केवल तीन साल बड़ा है। उसकेऔर मेरे पिता दोस्त हैं। कम से कम इतना ही पूछ लिया होता कि मैं कैसा हूं। यही काफी होती है। इसके बजाए उन्होंने मेरे पिता पूछना शुरू कर दिया कि आपका बेटा कहां गया था, वह कब लौटा, क्या उसकी रिपोर्ट आई, क्या हमें इमारत को कीटाणुरहित करना चाहिए। लेकिन किसी ने यह पता लगाने की परवाह नहीं की कि क्या मैं ठीक था। अगर आपके मन में कोई एजेंडा है तब भी कुछ तो मानवता दिखाई ही जा सकती है।'
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