नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर केंद्र सरकार और 40 किसान संगठनों के बीच बातचीत जारी है। इस बार की तस्वीर पिछले दफा से अलग थी। चार जनवरी की बातचीत में केंद्र सरकार के आला मंत्रियों ने किसानों के साथ लंगर खाया। लेकिन इस दफा बातचीत के माहौल में नरमी कम दिखाई दे रही है। बातचीत से पहले गृहमंत्री अमित शाह और कृषि मंत्री के बीच बातचीत हुई और अनौपचारिक तौर पर यह संदेशा भेजा गया कि कानून वापसी को छोड़कर सरकार किसानों के बाकी प्रस्तावों पर विचार करने के लिए तैयार है। इसका अर्थ यह है सरकार ने स्पष्ट कर दिया कानूनों को वापस लेने का विचार नहीं है। लेकिन किसान संगठनों के सुर में भी किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है।
विज्ञान भवन में बातचीत
एक तरफ विज्ञान भवन में किसान नेता और केंद्र सरकार एक दूसरे के सामने अपना पक्ष रख रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के सांसदों ने जंतर मंतर पर धरना दिया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का कहना है कि हद यह है कि अब तो किसानों के छज्जों को गिराने की धमकी दी जा रही है। पिछले 44 दिन से किसान सर्द रातों का सामना कर रहे हैं लेकिन संवेदनहीन सरकार को किसानों की समस्या से फर्क नहीं पड़ रहा है। केंद्र सरकार झूठे आंकड़ों के जरिए वाहवाही लुटने में जुटी हुई है।
किसानों के तेवर सख्त
8वें दौर की बातचीत से पहले यानी सात जनवरी को किसानों ने इस्टर्न और वेस्टर्न पेरीफेरल वे पर ट्रैक्टर रैली के जरिए अपने इरादों को जता दिया कि कृषि कानूनों की संपूर्ण वापसी से कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि केंद्र सरकार तो मीठी मीठी बात कर रही है लेकिन इस दफा वो लोग तब तक अपने आंदोलन को जारी रखेंगे जब तक तार्किक नतीजा सामने ना आ जाए।
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