बहादुरी की गाथाओं से भरा है गोरखा सैनिकों का इतिहास, नेपाल से तनावपूर्ण रिश्‍ते नहीं बनेंगे बाधक

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Updated Jan 15, 2021 | 23:28 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

नक्‍शा विवाद के बाद भारत-नेपाल के संबंधों में तनाव के बीच भारतीय सेना में नेपाली मूल के गोरखा सैनिकों की नियुक्ति को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन इस पर विवाद अब थमता नजर आ रहा है।

बहादुरी की गाथाओं से भरा है गोरखा सैनिकों का इतिहास, नेपाल से तनावपूर्ण रिश्‍ते नहीं बनेंगे बाधक
बहादुरी की गाथाओं से भरा है गोरखा सैनिकों का इतिहास, नेपाल से तनावपूर्ण रिश्‍ते नहीं बनेंगे बाधक  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • नेपाल ने बीते साल एक नया नक्‍शा जारी किया था, जिसे लेकर भारत के साथ उसके रिश्‍तों में तनाव पैदा हो गया था
  • आपसी तनाव के बीच भारतीय सेना में नेपाली मूल के गोरखा सैनिकों की नियुक्ति को लेकर संशय बना हुआ था
  • गोरख रेजीमेंट वर्षों से भारतीय सेना का एक अहम हिस्सा है, जिसमें नेपाली मूल के गोरखा सैनिक नियुक्‍त होते हैं

नई दिल्‍ली : सीमा मुद्दे पर तनाव के बीच नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली भारत दौरे पर पहुंचे, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर से कई मसलों पर उनकी विस्‍तृत द्विपक्षीय बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्‍न आयामों पर चर्चा की, जिस दौरान भारतीय सेना में गोरखा रेजीमेंट को लेकर भी उन्‍होंने अपनी बात रखी। भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट का इतिहास बहादुरी की गाथाओं से भरा पड़ा है और इस पर फिलहाल विराम लगने के कोई आसार नहीं हैं। नेपाल के विदेश मंत्री ने स्‍पष्‍ट किया कि गोरखा रेजीमेंट में नेपालियों का जुड़ना जारी रहेगा और इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा।

तनावपूर्ण संबंधों के बीच जताया जा रहा था संशय

इससे पहले दोनों देशों के रिश्‍तों में आई खटास को देखते हुए गोरखा रेजीमेंट में नेपालियों की नियुक्ति को लेकर संशय जताया जा रहा था। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक गुट ने भी बीते साल बयान जारी कर कहा था कि नेपाली युवाओं को भारतीय सेना में शामिल नहीं होना चाहिए, जबकि ऐसी मुहिम भी चलाई गई कि कोरोना काल में जो हजारों गोरखा सैनिक अपने घर नेपाल लौटे हैं, वे वापस ड्यूटी ज्‍वाइन न करें, जबकि भारतीय सेना ने उन्‍हें तत्‍काल ड्यूटी ज्‍वाइन करने का आदेश दिया था। इस समय भारतीय सेना में करीब 80 हजार नेपाली गोरखा सैनिक शामिल हैं, जबकि हर साल 1200-1300 नए गोरखा सैनिक सेना में शामिल किए जाते हैं।

नेपाल में उठने वाली इन मांगों की वजह चीन से उसकी नजदीकी और भारत से चीन के तनावपूर्ण संबंधों को माना गया। नेपाल में पिछले दिनों ऐसी भावना उफान पर रही कि भारत इन गोरखा सैनिकों को चीन के खिलाफ तैनात करता है और यह नेपाल के चीन से द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए उचित नहीं है। कहा गया कि नेपाल के रिश्‍ते भारत के साथ-साथ चीन से भी अच्‍छे हैं और इसलिए भारत को नेपाली गोरखा सैनिकों का इस्‍तेमाल चीन के खिलाफ नहीं करना चाहिए। हालांकि नेपाल के विदेश मंत्री के ताजा बयान के बाद नेपाल में गोरखा सैनिकों से संबंधित इस मुहिम के ठंडा पड़ने की उम्‍मीद जताई जा रही है।

वर्षों से भरतीय सेना का हिस्‍सा हैं गोरखा सैनिक

यहां उल्‍लेखनीय है कि गोरख रेजीमेंट भारतीय सेना का एक अहम हिस्सा है, जिसमें नेपाली मूल के गोरखा सैनिक नियुक्‍त होते हैं। यह व्‍यवस्‍था 1815 से ही चली आ रही है, जब भारत ब्रिटिश साम्राज्‍य का एक उपनिवेश था। ब्रिटिश सेना ने भारतीय सेना के एक हिस्से के तौर पर इसका गठन किया था। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसे लेकर भारत-ब्रिटेन और नेपाल के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ, जिसके बाद गोरखा रेजीमेंट भारतीय सेना का हिस्‍सा बन गया। बीते साल जुलाई में जब भारत और नेपाल के बीच नक्‍शे को लेकर विवाद गहराया तो खुद नेपाल के विदेश मंत्री ने भी इस समझौते के कई प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए थे।

अब भारत दौरे पर पहुंचे नेपाल के विदेश मंत्री ने हालांकि एक बार फिर इस समझौते को 'अनावश्‍यक' करार दिया, पर स्‍पष्‍ट किया कि भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नेपाली मूल के सैनिकों की नियुक्ति होती रहेगी। उनके इस बयान को बीते साल नक्‍शा विवाद के बाद भारत और नेपाल के रिश्‍तों में आई खटास को कम करने और आपसी संबंधों को सामान्‍य बनाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। यहां उल्‍लेखनीय है कि नेपाल की केपी ओली सरकार ने बीते साल एक नया नक्‍शा जारी किया था, जिसमें लिम्‍प्‍युधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल का हिस्‍सा दर्शाया था, जबकि वर्षों से भारत इस पर अपने दावे करता रहा है।

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