आज से ठीक 50 साल पहले भारत को महाविजय मिली थी। पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए थे। एक नया देश बांग्लादेश बना और 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने सरेंडर किया, ये दो देशों के युद्ध में किसी भी सेना का सबसे बड़ा सरेंडर था। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर जीत भारत के लिए सबसे बड़े गर्व का दिन था, क्योंकि दुनिया भारत की ताकत पर हैरान थी। पहली बार दुनिया को भारत की ताकत का एहसास हुआ। भारत ने उस वक्त पाकिस्तान के दोस्त अमेरिका की परवाह नहीं की, उस चीन की परवाह नहीं की, जो हर वक्त खतरा बना हुआ था। भारत ने पूरी रणनीति के साथ पूरा चक्रव्यूह बनाकर दमदार राजनीति, दमदार कूटनीति के साथ उस पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिसके हौसले उस वक्त अमेरिकी हथियारों और अमेरिकी मदद से बढ़े थे और बांग्लादेश में जिसके अत्याचारों पर दुनिया में कोई बोल नहीं रहा था। लेकिन 7 करोड़ बांग्लादेशियों को बचाने के लिए भारत सबसे भिड़ गया था।
1971 का युद्ध 13 दिन तक चला था। 13 दिन के युद्ध में पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया था। भारतीय सेना की कैद में 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक आ चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ये सैनिकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सरेंडर है। दो देशों के बीच युद्ध में ये दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर था। सरेंडर की तस्वीरें सबके सामने हैं। पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर मोहम्मद हयात अपनी 107 ब्रिगेड के साथ सरेंडर कर रहे हैं। भारतीय सेना के मेजर जनरल दलबीर सिंह जो उस समय 9 इंफैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिस कमांडर थे, उनके सामने ब्रिगेडियर मोहम्मद हयात अपने कंधों के स्टार, बेल्ट, कैप और हथियार निकाल कर मेजर जनरल दलबीर सिंह के सामने रख रहे हैं। इसके अलावा पाकिस्तानी सेना के जवान लाइन में खड़े होकर अपनी बंदूकें सरेंडर कर रहे हैं।
1971 का युद्ध उस साल दिसंबर के 13 दिन चला था। लेकिन युद्ध की भूमिका मार्च-अप्रैल 1971 में ही बन गई थी, जब पाकिस्तानी सेना ने विद्रोह को कुचलने के लिए नरसंहार शुरू कर दिया था। पाकिस्तानी सेना के भयानक अत्याचारों से त्रस्त होकर करीब 90 लाख बांग्लादेशी पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए थे। इसे रोकने के लिए भारत के सामने एकमात्र विकल्प सैन्य अभियान ही बचा था। क्योंकि पूरी दुनिया पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों की अनदेखी कर रही थी। लेकिन भारत ने तुरंत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य दखल नहीं दिया। भारत ने रणनीति बनाकर सर्दियों और बर्फबारी का इंतजार किया। जिससे चीन पाकिस्तान की मदद ना कर पाए। सात महीने के इंतजार और पूरी तैयारी के बाद भारत ने नवंबर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के इलाके को हर तरफ से घेरना शुरू कर दिया। इससे घबराए पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 की शाम 5 बजकर 40 मिनट से भारत के पश्चिमी इलाके में भारतीय वायुसेना के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तान के 50 से ज्यादा लड़ाकू विमानों ने आगरा, अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर सहित 11 एयरबेस पर हमला किया। आगरा एयरबेस पर छह बार हमले किए और 16 बम गिराए थे। हवाई हमलों के 45 मिनट के बाद ही पाकिस्तानी सेना ने बॉर्डर क्रॉस करके कश्मीर में घुस आई। इन हमलों के बाद पाकिस्तान ये भी उम्मीद कर रहा था कि आगे चीन और अमेरिका भी उसकी मदद करेगा।
इंदिरा गांधी उस वक्त कोलकाता में थी। वहां उनकी एक बड़ी रैली थी। जैसे ही उन्हें हमलों की खबर मिली। दो घंटे के अंदर वो दिल्ली पहुंची और सीधे संसद भवन में अपने दफ्तर गईं। 3 दिसंबर 1971 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के नाम संबोधन दिया और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। 3 दिसंबर की रात से ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के हमलों का जवाब देना शुरू किया और शुरुआती 48 घंटे में ही पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के 7 एयरबेस ध्वस्त कर दिए। पाकिस्तान के करीब 60 से 70 लड़ाकू विमान मार गिराए। 8 दिसंबर आते आते भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को पस्त कर दिया। उधर भारतीय नौ सेना ने 8 दिसंबर को कराची पर धावा बोल दिया और पाकिस्तान के कई युद्धपोतों, तेल और हथियार के भंडार को नष्ट कर दिया। भारतीय सेना ने पश्चिमी के जमीनी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को घुसने नहीं दिया। उधर, पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तानी सेना को हर तरफ से घेर लिया। पाकिस्तानी सेना के पैर उखड़ चुके थे। 13-14 दिसंबर तक भारतीय सेना ढाका तक पहुंच गई थी। भारतीय नेवी ने समंदर से घेर लिया था। भारतीय वायुसेना ने ढाका में बम गिराने शुरू कर दिए थे। पाकिस्तानी सेना के सामने अब सरेंडर के अलावा कोई चारा नहीं था। 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने हथियार डाल दिए। और 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया।
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