News Ki Pathshala: टांग तोड़ ड्यूटी के बारे में आप कितना जानते हैं

आप किसी शॉपिंग मॉल में जाते होंगे को कैश काउंटर या फ्लोर पर कर्मचारियों को खड़े हुए पाते होंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि टांग तोड़ ड्यूटी से कितनी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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टांग तोड़ ड्यूटी के बारे में आप कितना जानते हैं 
मुख्य बातें
  • शॉपिंग मॉल्स में कर्मचारी खड़े होकर काम करते हैं
  • खड़े होकर घंटों तक काम करने की वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है
  • तमिलनाडु ने इस संबंध में राइट टू सिट का नियम बनाया था।

आप शॉपिंग मॉल्स में जाइए।किसी शो रूम में जाइए।ज्वेलरी शॉप में जाइए कपड़े की दुकान में जाइएएक चीज हर जगह कॉमन दिखेगी
वहां काम करने वाले हमेशा खड़े दिखेंगेग्राहक आए तो खड़े रहनाग्राहक न हों तो भी खड़े रहनाआपको एक कुर्सी-एक स्टूल इनके लिए नहीं दिखेगी हर समय कर्मचारियों को खड़े ही देखा होगा ।आपको लगेगा कि इसमें क्या बड़ी बात हैये तो उनकी जॉब है।लेकिन जब आपको 12-14 घंटे की शिफ्ट कराई जाएगीइन 12 घंटों में आपको बैठने नहीं दिया जाएगातब आपको समझ में आएगा, ये कितना मुश्किल है

आपको ये पता नहीं होगा कि ड्यूटी के दौरान बैठना भी आपका अधिकार हैइसके लिए कई राज्यों में लंबी लड़ाई हुई हैकई राज्यों में इसके लिए कानून बनाना पड़ा है।तमिलनाडु में ऐसा ही कानून बनाया गया है वहां 1947 के Shops and Establishments Act में संशोधन किया गया है।इस एक्ट में नई धारा जोड़कर कर्मचारियों को शिफ्ट के दौरान बैठने का अधिकार दिया गयाइसमें कहा गया कि
'हर दुकान, हर संस्थान को अपने सभी वर्कर्स के लिए सिटिंग अरेंजमेंट करना होगा। जिससे वो ड्यूटी टाइम पर हर वक्त खड़े रहने की मजबूरी से बच सके। और जब भी उन्हें मौका मिले तो वो अपनी ड्यूटी के दौरान बैठ भी सकें"


तमिलनाडु में ये बिल क्यों लाया गया?

-बड़े बड़े शो-रूम, फैक्ट्रियों में नौकरी करने वालों को शिफ्ट में बैठने नहीं दिया जाता
-यहां नौकरी करने वालों के बैठने के लिए कोई चेयर या स्टूल नहीं रखी जाती है
-ये हर दिन अपनी शिफ्ट के 10 से 12 घंटे या उससे भी ज़्यादा लगातार खड़े रहते हैं
-इन्हें खड़े खड़े ही पूरी शिफ्ट में काम करने के लिए कंपनियां-दुकानदार मजबूर करते हैं

तमिलनाडु में ये बिल इसलिए भी लाया गया कि

-वहां Textile और Clothing units की सबसे बड़ी इंडस्ट्री है
-देश में 65% से ज़्यादा Spinning units तमिलनाडु में ही हैं 
-गोल्ड ज्वेलरी के बिजनेस का एक बड़ा हब भी तमिलनाडु है
-ज्वेलरी, साड़ी, कपड़ों की कंपनियों की बड़ी बड़ी रिटेल चेन हैं
-तमिलनाडु में वुमन लेबर फोर्स नेशनल एवरेज से बहुत ज्यादा है
-देश में 19% वुमन लेबर फोर्स है, तो तमिलनाडु में ये आंकड़ा 30% है
-गारमेंट, ऑटोमोबाइल, फायरवर्क्स जैसे सेक्टर में 70% महिलाएं हैं

फैक्ट्रियों, दुकानों, शो-रूम में नौकरी करने वालों की तकलीफें
फैक्ट्रियों, दुकानों, शो-रूम में नौकरी करने वालों की तकलीफें क्या हैं? खासतौर पर महिला कर्मचारी कैसे काम करती हैं। वो आपको जानना चाहिए। ये कर्मचारी कहते हैं कि"लंबी लंबी शिफ्ट के बीच सिर्फ 20 मिनट का लंच ब्रेक मिलता है। पैर दर्द करने लगते हैं तो कुछ सेकेंड के लिए दुकानों की दीवारों से टेक लगा लेते हैं। फ्लोर पर भी बैठने नहीं दिया जाता।"कई बार सैलरी सिर्फ इसलिए काट दी जाती है क्योंकि लगातार खड़े रहकर थक जाते थे और दीवार के सहारे टेक लेकर खड़े हो गए थे""बस से सफर करके घर से दुकान पहुंचते हैं। वहां भी 12-14 घंटे की शिफ्ट होती है। वहां से फिर बस से सफर करके घर पहुंचते हैं। लगातार खड़े रहना पड़ता है।"   

दुकानों में सीसीटीवी लगे होते हैं। दुकानदार कहते हैं कि कस्टमर चोरी ना करे, इसलिए सीसीटीवी लगे हैं। लेकिन असल में सीसीटीवी वहां नौकरी करने वालों की निगरानी के लिए लगाते हैं"ये कितना मुश्किल है। इसे आप समझिए।ड्यूटी पर डेली 3 से 4 घंटे खड़े रहना= साल में 10 मैराथन दौड़ना= एक मैराथन-42 Km12-14 डेली ड्यूटी पर खड़े रहना= साल में 40 मैराथन दौड़ना

तमिलनाडु के टेक्सटाइल और गारमेंट फैक्टी में महिलाओं को नौकरी देने के लिए 1989 से सुमंगली नाम की स्कीम शुरू हुई थी।

-इसमें गरीब परिवार की बच्चियों के माता-पिता से ब्रोकर तीन-तीन साल का कान्ट्रैक्ट साइन करवाते हैं
-इन बच्चियों को शादी के लायक होने तक किसी गारमेंट फैक्ट्री में लगा दिया जाता था
-कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने पर बच्चियों की शादी के लिए परिवारों को 30 हज़ार से 1 लाख रुपये तक की एकमुश्त रकम मिलती थी
-इसमें एक तरह से बच्चियों को बंधुआ मजदूर बनाकर कई सालों तक रखा जाता था
-इसका प्रचलन बाद में कम हो गया, लेकिन अब भी ये पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ 

-तमिलनाडु में यही प्रचलन बड़े बड़े शो-रूम और रिटेल स्टोर्स ने शुरू कर दिया
-इनके एजेंट गांव-गांव जाकर बच्चियों और महिलाओं को हायर करते हैं
-इनसे छह महीने से लेकर 2 साल तक का कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया जाता है
-और किश्तों में 25,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक की रकम दी जाती है
देर तक खड़े रहने से कितनी हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। 
देर तक खड़े रहने से कितनी समस्याएं ?पैरों में ऑक्सीजन सप्लाई कम हो जाती है जिसके कारण लगातार दर्द होता है इसे क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम कहते हैंइस में जल्दी थकान लगने लगती है 

वैरिकोज़ वेन्स बीमारी हो सकती है ।महिलाओं में ये बीमारी ज्यादा होती है।इस में पैरों की नसें चौड़ी हो जाती हैं।ब्लड सप्लाई वाले वॉल्व खराब हो जाते हैं।इस से अल्सर का खतरा बढ़ जाता है ।डीप वेन्स थ्रॉम्बोसिस भी हो सकता है इस में नसों में खून के थक्के बन जाते हैं
जिससे ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है 

देर तक खड़े रहने से कमर में दर्द होता है ।कमर की मांसपेशियों में खिंचाव हो जाता है ।कमर की मांसपेशियां कड़ी हो जाती है ।गर्भवती महिलाओं को अबॉर्शन कराना पड़ सकता है ।प्रीमेच्योर बर्थ का खतरा बढ़ जाता है ।गले और कंधे में भी दर्द होता है 

ज़रुरत से ज्यादा देर तक खड़े रहने से दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। अमेरिकन Journal ऑफ एपीडेमियोलॉजी में एक रिपोर्ट पब्लिश हुई थी। इसमें बताया गया कि ज़्यादा देर तक खड़े खड़े ड्यूटी करने वालों में दिल की बीमारी का खतरा, सिगरेट पीने वालों से भी ज़्यादा होता है। 

भारत का रिटेल मार्केट
कुल कारोबार- 6 लाख करोड़ से ज़्यादा
देश की जीडीपी में हिस्सा- 10%
देश की वर्कफोर्स में हिस्सा- 8%
कुल छोटे-बड़े शो-रूम- 5 लाख 
कुल कर्मचारी- 3.5 करोड़ से भी ज़्यादा

नौकरी जाने के खतरे से साध ली जाती है चुप्पी
ये लोग बोलने से डरते हैंनौकरी जाने का डर रहता हैहमने ऐसे कई कर्मचारियों से बात करने की कोशिश कीभारत का संविधान में भी इस बारे में लिखा है। काम के दौरान बेहतर माहौल मिले, और बिना किसी झिझक के काम कर सकें। अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार में गरिमापूर्ण ढंग से जीवन जीने का अधिकार मिला है। अनुच्छेद 42 काम की उचित मानवीय स्थितियां सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारें प्रावधान करेंगी। गर्भवती महिलाओं की मदद के लिए इंतजाम किया जाएगा ।

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