क्या इस देश में अब हर शुक्रवार यही होगा कि पुलिस को पत्थरबाजों से निपटने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी। क्या हर शुक्रवार को यही होगा कि पुलिस का सारा बंदोबस्त पत्थरबाजी और हिंसा को रोकने में लग जाएगा। क्या हर शुक्रवार से पहले लोग ये सवाल करेंगे कि इस शुक्रवार को क्या होगा। क्या हर शुक्रवार को आम जनता सड़कों पर जाने से डरेगी कि कहीं पथराव के बीच वो ना आ जाएं। ये सवाल इसलिए क्योंकि पिछले दो शुक्रवार से इस देश में हिंसा का पैटर्न बन गया है। जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन में पत्थर चलाए जाते हैं। और फिर हिंसा होती है।
3 जून को शुक्रवार के दिन कानपुर में हिंसा हुई थी। वहां जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी हुई थी। इसके बाद दूसरे शुक्रवार यानी 10 जून को ये हिंसा यूपी सहित कई और राज्यों में हुई। प्रयागराज में पथराव और हिंसा हुई। रांची में पथराव और हिंसा हुई। पश्चिम बंगाल में पथराव और हिंसा हुई। अब कल तीसरा शुक्रवार है। जिसकी वजह से पुलिस को एक्सट्रा तैयारी करनी पड़ी है। पुलिस को एक्सट्रा अलर्ट रहना पड़ रहा है।
गोरखपुर में पुलिस ने फ्लैग मार्च और मॉक ड्रिल किया । यूपी पुलिस के अफसर और जवान हाथ में बंदूक लेकर रबर बुलेट से निशाना लगाते दिखे। मॉक ड्रिल के दौरान एक तरफ यूपी पुलिस के जवान खड़े थे तो दूसरी तरफ डेमो प्रदर्शनकारी। पुलिस ने उनकी तरफ रबर बुलेट से फायर किया।
जिस प्रयागराज में पिछले शुक्रवार को बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। वहां का हाल देखिए कि कैसे पुलिस ने तैयारी की है। रैपिड एक्शन फोर्स लगाई गई है। ड्रोन से निगरानी की जा रही है।
-पश्चिमी यूपी के मेरठ, मुजफ्फरनगर, बदायूं, संभल, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर, अलीगढ़ और आगरा पर पैनी नजर है, सहारनपुर में पिछले जुमे की नमाज के बाद उपद्रव हुआ था । वहां इस बार नमाज घरों पर अदा करने की अपील की गई है। ये अपील जामा मस्जिद की ओर से की गई है ।
क्योंकि यूपी पुलिस तो एक्शन के लिए तैयार है। ये मुस्लिम समुदाय को भी सोचना होगा कि इस तरह की स्थिति क्यों आ गई। क्यों जुमे की नमाज से पहले इस तरह की तैयारी करनी पड़ रहा है। और उन लोगों से जवाब मांगना चाहिए जो मुस्लिम समुदाय को भड़काते हैं।
क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी हों, मौलाना तौकीर रजा हों या फिर जमीयत के नेता हों, या दूसरे मुस्लिम धर्मगुरू हों, ये लोग माहौल को शांत करने की बजाय, उन लोगों का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट समर्थन करते हैं, जो सर तन से जुदा के नारे लगाते हैं। जो हिंसा के आरोपियों की अवैध संपत्ति पर चले बुलडोजर का विरोध करते हैं। जो हिंसा के आरोपियों को मासूम और पीड़ित बताने लगते हैं। इससे आरोपियों में भी ये मैसेज जाता है कि मुस्लिम समुदाय उनके साथ है। जबकि ऐसा नहीं है, आम मुस्लिम इस हिंसा का कभी समर्थन नहीं करेगा। वो नहीं चाहेगा कि जुमे की नमाज पुलिस के पहरे में है। वो नहीं चाहेगा कि इस तरह से उसके धर्म की बदनामी हो।
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