News ki Pathshala : इसमें कोई संदेह नहीं कि किसान आंदोलन के नाम पर सियासी टारगेट फिक्स किए गए। अब जब ये सियासी टारगेट मिस होते दिख रहे हैं। तो फिर से किसान आंदोलन शुरू करने की धमकियां दी जा रही हैं। आज पाठशाला में सबसे पहले इन्हीं लोगों की क्लास लगाएंगे। और ये बताएंगे कि जब किसान आंदोलन खत्म हो गया है, कृषि कानून वापस हो गए हैं, सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच डील हो गई है, तो फिर राकेश टिकैत और सत्यपाल मलिक जैसे लोग बेचैन क्यों हो रहे हैं? सबसे पहले मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को सुनिए। वो राज्यपाल के पद पर हैं। लेकिन उनकी किसानों के नाम पर हो रही राजनीति में बहुत दिलचस्पी है। सत्यपाल मलिक ने हरियाणा के चरखी दादरी में रविवार को एक कार्यक्रम में किसानों की बात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया। और कुछ ऐसा कहा जो किसी को हजम नहीं हो रहा है। और ये बात एक राज्यपाल को शोभा भी नहीं देती।
सत्यपाल मलिक ने कहा, मैं जब किसानों के मामले में प्रधानमंत्री जी से मिला तो मेरी पांच मिनट में ही उनसे लड़ाई हो गई। वो बहुत घमंड में थे। जब मैंने उनसे कहा कि हमारे 500 लोग मर गए, तुम तो *&^*^ मरती है तो चिट्ठी भेजते हो, तो उसने कहा मेरे लिए मरे हैं? मैंने कहा आपके लिए ही तो मरे थे, क्योंकि आप राजा जो बने हुए हो, इसको लेकर मेरा उनसे झगड़ा हो गया। उन्होंने कहा तुम अमित शाह से मिलो। मैं अमित शाह से मिला उसने कहा सत्ता ने इसकी अक्ल मार रखी है लोगों ने। बेफिक्र रहो, मिलते रहो। ये किसी ना किसी दिन समझ में आ जाएगा।
सत्यपाल मलिक या तो दूसरों को बहुत मासूम समझ रहे हैं जो लोग उनकी हर बात को मान लेंगे। या फिर खुद को बहुत स्मार्ट समझ रहे हैं, जो प्रधानमंत्री उनको हर बात बताते हैं। सत्यपाल मलिक की इस बात पर आज अलग से क्लास लगेगी। लेकिन इसके साथ ही सत्यपाल मलिक ने जो बात कही कि किसान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है सिर्फ स्थगित है। मांगे नहीं मानी गई तो फिर से आंदोलन शुरू हो जाएगा।
सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसानों पर मुकदमें हैं उन पर सरकार को ईमानदारी बरतनी पड़ेगी। किसानों पर मुकदमें खत्म करने पड़ेंगे। इसी तरह MSP को कानूनीजामा पहनना पड़ेगा। ये सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन सरकार अगर ये समझती हो कि आंदोलन खत्म हो गया तो आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। आंदोलन सिर्फ स्थगित हुआ है। अगर किसानों के साथ ज्यादती हुई तो ये फिर खड़ा हो जाएगा। उनके साथ में हर हाल में रहूंगा।
उधर, राकेश टिकैत भी बेचैन हो रहे हैं भिवानी की महापंचायत में रविवार को राकेश टिकैत ने कहा कि आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। सरकार की नीयत ठीक नहीं है, इसलिए 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च निकाला जाएगा। अभी तो 13 महीने की ट्रेनिंग हुई है। सरकार का ध्यान किसानों की जमीन पर है। इससे सचेत रहने की जरुरत है। सरकार का अगला वार भूमिहीन उन किसानों पर है, जो पशु पालकर दूध बेचकर गुजर बसर करते हैं। न तो पूरी तरह मुकदमे वापस हुए हैं और न ही एमएसपी पर कोई कमेटी बनी है। 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी, जिसमें महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे। आंदोलन की बदौलत ही जमीन और गांव को बचाया जा सकता है। सरकार हर विभाग का निजीकरण कर बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा हर मुद्दे को लेकर गंभीर है और अब पीछे हटने वाले नहीं हैं।
लेकिन राकेश टिकैत के बयान पर भारतीय किसान यूनियन ने सफाई दी। कुछ न्यूज चैनल गलत जानकारी के कारण खबर चला रहे है कि चौधरी राकेश टिकैत जी ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया है। राकेश टिकैत जी ने कहा है कि गणतंत्र दिवस पर पिछले वर्ष 26 जनवरी की तर्ज पर इस बार भी किसान चाहता है कि वह अपने गांव की सड़कों पर ट्रैक्टर मार्च करें।
-किसान आंदोलन फिर शुरू करने की बेचैनी क्यों?
-आपको पश्चिमी यूपी पर हमारा सर्वे देखना होगा
-टाइम्स नाउ नवभारत और वीटो के सर्वे ने बताया
पश्चिमी यूपी की 97 सीटों में बीजेपी को 57 से 60 और समाजवादी पार्टी को 35 से 38 सीटे मिल सकती है। बीएसपी को शून्य से एक और कांग्रेस को 1 से दो सीटें मिलती दिख रही है। वोट शेयर के मामले में पश्चिमी यूपी में बीजेपी को 40.5%, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 36.7%, बीएसपी को 16%, कांग्रेस को 2.5% वोट मिलने का अनुमान है।
यानी पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन से बीजेपी को जिस बड़े नुकसान की बातें की जा रही थी, वो सर्वे के मुताबिक गलत है। सर्वे में सवाल किसान आंदोलन पर भी था। क्या किसान आंदोलन का चुनाव पर असर पड़ेगा। 39% लोगों ने माना कि असर पड़ सकता था। लेकिन 52% लोगों ने कहा कि इसका चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा।
इसकी बड़ी शायद यही है कि एक वर्ग योगी सरकार को किसान हितैषी मान रहा है। इस सर्वे में लोगों से जब पूछा गया कि क्या योगी सरकार किसान हितैषी है तो... 48% लोगों का जवाब हां था। 37% लोगों का जवाब ना था। 15% लोगों की इस सवाल पर कोई राय नहीं थी।
बड़ी बात यही है कि किसानों के मुद्दे का बीजेपी की चुनावी संभावनाओं को कोई बड़ा असर पड़ता नहीं दिख रहा है। एक सवाल ये भी था कि यूपी के ग्रामीण इलाकों की पसंदीदा पार्टी कौन है।
40% लोगों की पसंद बीजेपी है। 34% लोगों की पसंद समाजवादी पार्टी है। 16% लोगों की पसंद बीएसपी है। 5% लोगों की पसंद कांग्रेस है।
टाइम्स नाऊ नवभारत के सर्वे में अनुमान है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिर से यूपी में सरकार बना लेंगे। और अखिलेश यादव को अभी 5 साल और इंतज़ार करना होगा। सर्वे के मुताबिक यूपी की 403 विधानसभा सीटों में बीजेपी और उसके सहयोगियों को 230 से 249 सीटें मिल सकती है। समाजवादी पार्टी और उनके सहयोगियों को 137 से 152 सीटें मिल सकती है। बीएसपी 9 से 14 सीटों और कांग्रेस सिर्फ 4 से 7 सीटों में ही सिमट सकती है। अन्य के खाते में शून्य से चार सीटें जा सकती हैं।
यानी बीजेपी की सीटें जरूर कम होते दिख रही हैं, लेकिन योगी की सत्ता में वापसी में कोई रुकावट नहीं है। और बीजेपी बहुमत के लिए जरूरी 202 का आंकड़ा पार लेगी।
सत्यपाल मलिक ने पीएम के बारे में जो कहा, उस पर भी बात करना ज़रूरी है।
-पहली बात तो सत्यपाल मलिक की बातों पर भरोसा क्यों किया जाए?
-क्योंकि सीधी बात है कि जिस प्रधानमंत्री की राजनैतिक सोच विरोधियों से दस कदम आगे की है
-वो किसानों को लेकर ऐसी बात कैसे कह सकता है, और वो भी उन सत्यपाल मलिक से क्यों कहेगा
-जो सत्यपाल मलिक लगातार प्रधानमंत्री को बुरा भला कह रहे हैं, और पीएम के खिलाफ बातें कर रहे हैं
-दूसरी बात- सत्यपाल मलिक संवैधानिक पद पर बैठे हैं, वो कैसे प्रधानमंत्री को इस तरह से बोल रहे हैं
-अगर सत्यपाल मलिक को राजनीति करनी है, तो राज्यपाल के पद पर क्यों बने हैं
-हैरानी इस बात की है, कि सत्यपाल मलिक को सरकार हटाती क्यों नहीं?
-इससे भी बड़ी हैरानी कि सत्यपाल मलिक खुद इस्तीफा क्यों नहीं दे देते?
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक पीएम मोदी पर पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं। तब पाठशाला में हमने उनकी क्लास लगाई थी । तब इंटरव्यू में MSP पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि पीएम से मेरी क्या बात हुई है वो आपको क्यों बताऊं ।
न्यूज़ की पाठशाला में जब मैंने उनसे पूछा कि अगर उनको लगता है कि किसानों के साथ ज्यादती हुई है तो क्यों नहीं वो पद छोड़कर किसानों का साथ देने उनके बीच पहुंच जाते तब उन्होंने कहा था कि इस पर उन्हें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने बिठाया है । जब वो कहेंगे तब हटूंगा ।
-सत्यपाल मलिक नाखून कटाकर शहीद बनना चाहते हैं और शायद इसीलिए सरकार उन्हें ये मौका नहीं दे रही है। सत्यपाल मलिक का इतिहास एक बार हम आपको बता चुके हैं। इसे फिर से याद दिलाना जरूरी है।
- सत्यपाल मलिक बागपत के रहने वाले हैं, और पश्चिमी यूपी के पुराने नेता हैं।
-वो किसानों के सबसे बड़े नेता रहे चौधरी चरण सिंह के शिष्य रहे हैं।
-लेकिन वो चौधरी चरण सिंह से लेकर वीपी सिंह, मुलायम सिंह और बीजेपी, वो कई सियासी खेमों में रह चुके हैं। वो वक्त वक्त पर पार्टियां बदलते रहे हैं
-1974 में वो चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल से बागपत सीट से विधायक बने
-इमरजेंसी में वो 1977 में जेल गए थे
-1980 से 1985 तक वो लोकदल से राज्यसभा सांसद रहे
-1985 से 1989 तक वो कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहे
-बोफोर्स के मुद्दे पर वो कांग्रेस से अलग होकर वीपी सिंह के साथ चले गए
-1989 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर वीपी सिंह सरकार में मंत्री बने
-बाद में वीपी सिंह का साथ छोड़कर बाद में वो मुलायम सिंह के साथ हो गए
-1996 में वो समाजवादी पार्टी के टिकट पर अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए
-बाद में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आ गए
-2004 में वो बीजेपी के टिकट पर बागपत से लोकसभा चुनाव लड़े और चौधरी अजीत सिंह से हार गए
-2012 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया
-मोदी सरकार आने के बाद उन्हें 2017 में बिहार का राज्यपाल बनाया गया
-फिर अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू कश्मीर के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई
-नवंबर 2019 में उन्हें जम्मू कश्मीर से हटाकर गोवा का राज्यपाल बनाया गया
-अगस्त 2020 में उन्हें गोवा से हटाकर मेघालय का राज्यपाल बनाया गया।
सत्यपाल मलिक लगातार प्रधानमंत्री के खिलाफ बोल रहे हैं। -उनके इरादे क्या हैं, क्या यूपी चुनाव से इसका कनेक्शन है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सितंबर 2017 को सत्यपाल मलिक को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। सितंबर, 2022 तक उनका कार्यकाल है। यानी 9 महीने ही उनके रिटायरमेंट के बचे हैं। तो वो अपने रिटायरमेंट प्लान के बारे में जरूर सोच रहे होंगे।
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