Nirbhaya case: पुतलों को लटकाकर हुआ फांसी देने का हुआ ट्रायल, फांसी से पहले क्यों पहनाया जाता है काला कपड़ा

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Updated Mar 19, 2020 | 19:07 IST

Preparation for hanging culprits in Tihar Jail: आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी देने के सात साल बाद तिहाड़ जेल ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को फांसी देने की गुरुवार को तैयारी की।

   Nirbhaya case: Preparation for hanging culprits in Tihar Jail
निर्भया गैंगरेप के चार गुनहगारों को शुक्रवार सुबह साढ़े पांच बजे फांसी दी जानी है। 
मुख्य बातें
  • निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को फांसी देने की गुरुवार को तैयारी की
  • गैंगरेप मामले में दोषियों को 20 मार्च सुबह 5.30 बजे फांसी दी जानी है
  • 16 दिसम्बर 2012 को राजधानी दिल्ली में हुई थी वारदात

नई दिल्ली:  आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी देने के सात साल बाद तिहाड़ जेल ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को फांसी देने की गुरुवार को तैयारी की। इस दौरान जेल नियमावली के तहत कई पुतलों को लटका कर देखा गया। गौरतलब है कि 16 दिसम्बर 2012 को 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या करने के मामले में दोषी मुकेश कुमार सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा(26) और अक्षय कुमार सिंह (31) को शुक्रवार सुबह साढ़े पांच बजे फांसी दी जानी है।

तिहाड़ जेल में पहली बार एक साथ चार लोगों को फांसी दी जाएगी। दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी  जेल में 16,000 से अधिक कैदी हैं। जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मेरठ से जल्लाद पवन मंगलवार शाम तिहाड़ जिला प्रशासन के पास पहुंच गया था ताकि फांसी की तैयारी की जा सके।
जेल नियमावली के अनुसार जेल अधीक्षक को फांसी से एक दिन पहले रस्सियों का टिकाऊपन और फांसी के तख्त की मजबूती जांचनी होती है। इसके बाद कैदियों के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा भारी पुतलों या रेत के बैग को रस्सी की मजबूती जांचने के लिए 1.830 मीटर और 2.440 मीटर की ऊंचाई से फेंका जाता है।

फांसी के वक्त गुनहगारों का परिवार नहीं होता है

दिल्ली जेल नियम 2018 के तहत फांसी के समय अधीक्षक, उपाधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी, निवासी चिकित्सा अधिकारी और जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट का वहां मौजूद होना आवश्यक है। उसने कहा कि कॉन्स्टेबल 10 से कम नहीं, हेड वार्डर और दो हेड कॉन्स्टेबल, हेड वार्डर या इस संख्या में जेल सशस्त्र गार्ड भी मौजूद होंगे। फांसी होते समय कैदियों के परिवार को वहां मौजूद रहने की अनुमति नहीं होती। फांसी दिए जाने और उनके शवों को वहां से हटाने तक बाकी कैदियों को उनकी कोठरी में कैद रखा जाता है।

फांसी से चार दिन पहले होती है तैयारी

नियमावली के अनुसार चिकित्सा अधिकारी को फांसी दिए जाने से चार दिन पहले रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जिसमें वह इस बात का जिक्र करता है कि कैदी को कितनी ऊंचाई से गिराया जाए। हर कैदी के लिए अलग से दो रस्सियां भी रखी जाती हैं। जांच के बाद रस्सी और अन्य उपकरणों को एक स्टील के बॉक्स में बंद कर दिया जाता है और उसे उपाधीक्षक को सौंप दिया जाता है। अगर कैदी चाहे तो वह जिस धर्म में विश्वास रखता है उसके पुरोहित को बुलाया जा सकता है।

क्यों पहनाया जाता है काला कपड़ा
 
फांसी देने वाले दिन अधीक्षक, जिला मजिस्ट्रेट/अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, चिकित्सा अधिकारी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी सुबह-सुबह कैदी से उसकी कोठरी में मिलने जाते हैं। अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कैदी की वसीयत सहित किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए जा सकते हैं या उसे संलग्न किया जा सकता है। जेल के नियमों के अनुसार फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले कैदी के मुंह पर काला कपड़ा पहना दिया जाता है ताकि वह फंदे को देख ना पाए।

मौत के बाद क्या होता है शव का?

कैदी के धर्म के अनुसार उसके शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। कई बार उसके पोस्ट मार्टम के बाद उसे परिवार को भी सौंप दिया जाता है। उसका अंतिम संस्कार करने के लिए शव को शमशान ले जाने के लिए एम्बुलेंस का इस्तेमाल किया जाता हे। तिहाड़ में आखिरी बार नौ फरवरी 2013 को उत्तर कश्मीर के सोपोर के निवासी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। संसद पर हमले के दोषी को सुबह आठ बजे फांसी दी गई थी और उसे जेल परिसर में ही दफना दिया गया था।
 
 

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