Nitish Kumar Special Status For States: जद (यू) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न्यूट्रल (तटस्थ) विपक्षी दलों को अपने साथ लाने के लिए बड़ा दांव चल दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर केंद्र में विपक्षी दलों की सरकार बनती है तो सभी पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा। नीतीश कुमार का यह ऐलान निश्चित तौर पर एक सोचा समझा राजनीतिक दांव है। जिसमें वह अभी तक तटस्थ रहे उन विपक्षी दलों को अपने साथ ला सकते हैं, जो जरूरत पड़ने पर मोदी सरकार के साथ राष्ट्रपति चुनाव से लेकर राज्य सभा में वोटिंग के दौरान खड़े रहते हैं। नीतीश कुमार इस दांव के जरिए ओडीशा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और तेलगुदेशम पार्टी के नेता चंद्र बाबू नायडू जैसे नेताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
क्या है स्पेशल दर्जे का दांव
असल में छोटे और पिछड़े राज्य हमेशा से केंद्र सरकार से यह मांग करते रहे हैं, कि उन्हें विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। नीतीश कुमार इस बात को लेकर हमेशा से मुखर रहे हैं। और वह चाहे एनडीए के साथ रहे हो या फिर उससे अलग, वह हमेशा से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं। हालांकि उनकी यह मांग अभी तक पूरी नहीं हो पाई है।
अभी हाल ही में ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने बीते अगस्त में नई दिल्ली में नीति आयोग बैठक में ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। इसी तरह आंध प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी भी विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं। बीते जुलाई में इसी तरह की मांग वह प्रधानमंत्री मोदी से कर चुके हैं।
ऐसी ही मांग आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू भी मुख्यतंत्री रहते हुए 2019 के लोक सभा चुनाव के पहले कई बार कर चुके हैं। और उन्होंने इस बात पर 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले एनडीए से नाता भी तोड़ लिया था।
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क्या फायदा मिलता है
किसी राज्यों को पिछड़ेपन के आधार पर विशेष राज्य का दर्जा मिलता है। इसमें उसे केंद्रीय बजट द्वारा आवंटित का का 30 फीसदी विशेष दर्जा वाले राज्यों के विकास पर खर्च होता है। इसी तरह विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से जो फंड मिलता है उसमें से 90 फीसदी राशि अनुदान होती है और सिर्फ 10 फीसदी कर्ज होता है, उस पर भी ब्याज नहीं लगता है। ऐसे में विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्यों के लिए विकास करना आसान हो जाता है। हालांकि केंद्र सरकार को घाटा उठाना पड़ता है।
46 लोक सभा सीटों पर सीधा असर
अगर नीतीश कुमार का यह दांव चल जाता है तो विपक्ष को सीधे तौर 46 सीटों का फायदा मिल सकता है। उड़ीसा में कुल 21 लोकसभा सीटें हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में 25 सीटें हैं। इसमें से 2019 में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के पास 25 में से 23 सीटें हैं। जबकि नवीन पटनायक के पास ओडीसा में 21 में से 12 सीटें हैं। और वह 5 बार से लगातार मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में अगर ये दोनों राज्य के प्रमुख नीतीश कुमार के विपक्षी गुट में शामिल होते हैं तो यह बड़ा बूस्ट होगा और मोदी सरकार के लिए 2024 के पहले बड़ा झटका साबित होगा।
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