जब द्रौपदी मुर्मू को देश की 15वीं राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया तो विपक्ष की तरफ से कई सवाल खड़े किए गए। कुछ विपक्षी दलों का कहना था कि उनके राष्ट्रपति बनने से शोषित वंचित आदिवासी वनवासी समुदाय का भला हो पाएगा क्या? विपक्षी दलों का कहना था कि राष्ट्रपति पद पर सुशोभित हो जाने से उस वर्ग का कोई कल्याण नहीं होता जिससे व्यक्ति ताल्लुक़ रखता है। उनका यह मानना था कि यह चयन मात्र प्रतीकात्मक होगा।
वंचित समाज को सर्वोच्च सम्मान
किसी व्यक्ति, पद पर टिप्पणी करने से पहले उस पद की गरिमा एवं उसके अधिकार क्षेत्र के बारे में जानना तब अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब मामला राष्ट्र एवं राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ा हुआ हो।वह वर्ग जो सदियों से अपने अधिकारों से वंचित रहा हो उस वर्ग के व्यक्ति को जब मान सम्मान मिलता है तो समूचा वर्ग प्रफुल्लित होता है एवं राष्ट्रपति के रूप में जब देश का प्रथम नागरिक बनने का अवसर उस वंचित वर्ग के किसी सदस्य को मिलता है जो उस वर्ग के साथ-साथ अन्य भी सामाजिक तबकों का मनोबल बढ़ता है। आदिवासी समुदाय अपनी अलग पहचान के साथ-साथ अपने अलग रहन सहन के लिए भी जाना जाता है। अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को लेकर बहुत सजग रहने वाला यह समुदाय जब अपनी पूरी कार्यक्षमता के साथ देश के मुख्यधारा के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने लगेगा तब जाकर ही "एक भारत श्रेष्ठ भारत" की सोच धरातल पर सफल होती दिखेगी।
मात्र इसलिए हुआ विरोध
"द्रौपदी मुर्मू ने जब देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए नामांकन किया तो उनका विरोध मात्र इसलिए किया गया कि वह सत्ता पक्ष की प्रत्याशी हैं, जबकि यह कहीं से भी उचित नहीं था। विपक्ष सहित सभी लोगों को पता था कि उनकी उम्मीवारी कितनी मजबूत है और वह समाज के किस वर्ग से ताल्लुक़ रखती हैं। आज जब वह देश की महामहिम राष्ट्रपति के पद को सुशोभित कर रही हैं तो यह महत्वपूर्ण यह नहीं कि वह किस दल की प्रत्याशी थीं बल्कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि उनकी वजह से आदिवासी समाज का जो आत्मबल मजबूत हुआ है वह वाकई आने वाले भविष्य में देश की मजबूती के लिए संजीवनी साबित होगी।"
आजादी का जब 75 वां अमृत वर्ष मनाया जा रहा है उस वक्त देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री पद पर ऐसी शख्सियतें विराजमान हैं जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ है।द्रौपदी मुर्मू भारत गणराज्य की दूसरी महिला एवं 15 वीं राष्ट्रपति बनी हैं। वह पहली आदिवासी समुदाय से आने वाली महिला राष्ट्रपति हैं। इनको कूल 540 मत मिले जिसकी वैल्यू 3,78000 थी एवं विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को कूल 208 मत मिले जिसकी वैल्यू 1,45,600 थी।
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से फ़र्क
अब द्रौपदी मुर्मू भारत की प्रथम नागरिक हैं ऐसे में उनसे सबको उम्मीद है कि वह राष्ट्रहित में वैसा ही कार्य करेंगी जिसके लिए उनको जाना जाता है। उनके त्याग एवं तपस्या की मिसाल यूं ही नहीं दी जाती बल्कि उन्होंने समय आने पर इसे साबित भी किया है। उनके व्यक्तिगत संघर्ष के बारे में तो सबने पढ़ा,सुना एवं जाना है लेकिन झारखण्ड का राज्यपाल होते हुए उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जो उनकी जनहितवादी सोच को परिलक्षित करने के लिए पर्याप्त हैं। राज्यपाल रहते हुए वह बीजेपी की तत्कालीन रघुबर दास सरकार का एक विधेयक वापस लौटा चुकी हैं जो आदिवासियों की जमीन को लेकर था। वहीं वह वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार का भी एक विधेयक लौटा चुकी हैं। जिससे साफ होता है कि उन्होंने राज्यपाल रहते हुए भी रबर स्टाम्प की तरह काम नहीं किया।
"राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी कहा था कि रोटी के बाद मनुष्य की सबसे बड़ी कीमती चीज उसकी संस्कृति होती है।"
ये कार्य द्रौपदी मुर्मू के जल,जंगल और जमीन से जुड़ाव के साक्षात उदाहरण है। ऐसे में जब वह भारत गणराज्य की प्रथम नागरिक बन गईं हैं तो उनसे उम्मीदें भी आमजन की बढ़ी हुई हैं। देश का वह समुदाय जो अबतक मुख्यधारा से दूर था उसकी सहभागिता अब साक्षात रूप से दिखेगी एवं कार्बन उत्सर्जन कम कर पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ देश के विकास का समन्वय भी स्थापित होगा।
(दिव्येन्दु राय,स्वतन्त्र टिप्पणीकार- राजनीतिक विश्लेषक, प्रस्तुत लेख में लेखक के विचार निजी हैं)
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