राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का कहना है कि लड़ाई का मैदान बदल रहा है, लड़ाई की सीमाएं बदल रही है। अब सिविल सोसाइटी के माध्यम से लड़ाइयां लड़ी जाएंगी। उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया कि पारंपरिक युद्धों के नतीजे अनिश्चित होते हैं और दूसरी जो कि सबसे अहम है कि अब देश खर्चीले युद्ध को सहन नहीं कर सकते। ऐसे में लड़ाई के स्वरूप में बदलाव होगा, लिहाजा बदली हुई परिस्थितियों में पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी।
सिविल सोसाइटी अब फोर्थ जनरेशन ऑफ वॉरफेयर
ट्रेनी आईपीएस अधिकारियों के 73वें बैच के दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा कि पारंपरिक युद्ध जिस राजनीतिक या सैन्य मकसद को हासिल करने के लिए लड़े जाते थे उसके हासिल होने की संभावना कम हो चली है। ऐसे में सिविल सोसाइटी ही लड़ाई का मैदान या लड़ाई के लिए हथियार बनेंगे जिसे आप फोर्थ जनरेशन ऑफ वॉरफेयर कह सकते हैं। डोभाल का कहना है कि सिविल सोसाइटी को आसानी से भड़काया जा सकता है, उनमें फूट डाली जा सकती है। अपने हिसाब से उन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में आप लोगों की जिम्मेदारी कहीं और अधिक बढ़ जाती है। एक पुलिस अधिकारी की भूमिका अब सिर्फ कानून की रक्षा, हिफाजत या अमल तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्र निर्माण में भी है।
सही नीयत से कानून का पालन जरूरी
उन्होंने नए पुलिस अधिकारियों को सलाह देते हुए कहा कि आप को ना सिर्फ पिछली गलतियों या खामियों से सीखकर आगे बढ़ना है कि बल्कि यह भी देखना है कि आप अपने कार्य करने की परंपरा में कितना बेहतर बदलाव ला सकते हैं। लोकतंत्र, सिर्फ बैलट बॉक्स में नहीं है, दरअसल यह उन कानूनों में है जिसे जनप्रतिनिधि बनाते हैं। आप वो लोग हैं जो कानून को लागू करते हैं, कोई भी कानून तब तक अच्छा है जब उसे सही नीयत के साथ प्रभावी तौर पर लागू किया जाए। कोई भी नागरिक तब तक सुरक्षित नहीं महसूस कर सकता जबतक कि कानून को प्रभावी तौर पर लागू ना किया जाए और इसके लिए कमजोरी, भ्रष्टाचार और दलगत जुड़ाव से निकलना होगा। कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता जहां कानून दम तोड़ चुका हो।
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