पुणे स्थित ओशो का आश्रम एक बार फिर से चर्चाओं में है। कभी अपनी भव्यता को लेकर चर्चा में रहा यह आश्रम अब विवादों का घर बनता जा रहा है। दरअसल कोरोना के समय में खर्चे को लेकर ट्रस्ट का कहना है कि वो घाटे में है, इसके लिए वो आश्रम की कुछ जमीन को बेचना चाहते हैं, वहीं ओशो के शिष्यों का आरोप है कि चंद करोड़ के घाटे के लिए 100 करोड़ की संपत्ति बेची जा रही है, जोकि सही नहीं हैं।
बैन के 11 साल
वहीं आश्रम प्रबंधन ने जिन शिष्यों पर रिसोर्ट गतिविधियों का आरोप लगाते हुए उनके प्रवेश पर बैन लगा दिया था, उन्हें बांबे हाईकोर्ट से बड़ी जीत मिली है। हाईकोर्ट ने इनपर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। अब ये शिष्य अपने गुरु की समाधि का दर्शन कर सकते हैं। पिछले 11 साल से बैन लगे होने के कारण ये दर्शन करने में असमर्थ थे।
क्यों लगा था बैन
दरअसल ओशो के शिष्यों ने आरोप लगाया है कि ट्र्स्ट ओशो आश्रम की जमीन में खेल कर रहा है। तब कुछ शिष्यों ने 56000 स्क्वायर फीट जमीन के ट्रांसफर के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने तब ट्रांसफर पर रोक लगा दी थी। इसी समय आश्रम प्रबंधक ने इन शिष्यों पर आश्रम में घुसने पर बैन लगा दिया गया।
फिर उठा विवाद
ये मामला अभी चल ही रहा था कि कोरोना आ गया। ओशो आश्रम जिसे ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट या रजनीश आश्रम के नाम से जाना जाता है, लोगों के लिए बंद हो गया। अब आश्रम का कहना है कि जब रिजॉर्ट बंद था, तब रख रखाव पर खर्चे होते रहे, जिसके कारण आश्रम घाटे में चला गया।
यह आश्रम 28 एकड़ में फैला है। यहां एक प्लॉट लगभग डेढ़ एकड़ का है। घाटे के नाम पर इसी में दो प्लॉट बेचने की तैयारी आश्रम कर रहा है, जिसकी कीमत 107 करोड़ है, वहीं घाटा सिर्फ 3 करोड़ 65 लाख है। ऐसे में यह सौदा सवालों के घेरे में आ गया और ओशो के अनुयायी ट्रस्ट पर कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं। वहीं ट्रस्ट का कहना है कि इस बिक्री से घाटा भी पूरा हो जाएगा और भविष्य के लिए पैसा भी आ जाएगा, जिससे आश्रम आर्थिक तौर पर मजबूत हो जाएगा।
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