देश के इतिहास में इतनी संगठित और बड़े पैमाने पर छापेमारी शायद पहले कभी हुई होगी। गुरुवार यानी 22 सितंबर को तड़के 3.30 बजे पूरे दिन एनआईए ने 15 राज्यों में पीएफआई के ठिकानों पर छापेमारी की थी। उस रेड में 106 लोगों की गिरफ्तारी हुई जिसमें पीएफआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिल्ली का अध्यक्ष भी शामिल था। कई राज्यों में पीएफआई के दफ्तरों को सील भी कर दिया गया। छापेमारी की इस कार्रवाई को इतना गोपनीय रखा गया कि छापे में शामिल लोगों को भी ऐन वक्त पर पता चला। उसके पीछे वजह यह थी कि दक्षिण के राज्यों में पीएफआई समर्थक बड़े पैमाने पर हंगामा कर सकते थे। केरल और कर्नाटक में पीएएफ समर्थकों ने बवाल किया कर्नाटक रोडवेज ट्रांसपोर्ट की बस को निशाना बनाया। हालांकि उसे नियंत्रित कर लिया गया।
300 एनआईए अफसरों ने की छापेमारी
बताया जा रहा है कि एनआईए की रेड का समय गुरुवार सुबह चार बजे रखा गया था। लेकिन छापे की कार्रवाई आधे घंटे पहले शुरू हो गई। पीएफआई के नेताओं को समझने या संदेशा देने का मौका नहीं मिला। इस पूरी कार्यवाही को बड़े स्तर के आईपीएस संचालित कर रहे थे जिनकी अगुवाई में करीब 300 एनआईए अफसर रेड को अंजाम दे रहे थे। पीएफआई पर छापेमारी से पहले महीनों की तैयारी की गई थी। अलग अलग तरीके से डेटा को इकट्ठा किया गया, खुफिया जानकारियों को साझा किया गया और उसके बाद रेड की योजना बनाई गई।
'कहने के लिए सामाजिक- धार्मिक संगठन'
एजेंसियों का कहना है कि पीएफआई अपने आपको भले ही सामाजिक धार्मिक संस्था बताए। लेकिन जिस तरह से जानकारियां और उस संगठन की हरकतें सामने आई है उससे साफ है कि वो देश में अशांति का माहौल बनाना चाहते थे। कर्नाटक के शिवमोग्गा में जिस तरह से विस्फोट की साजिशों को नाकाम कर दिया गया वो इस बात की गवाही देते हैं इस संगठन की कथनी और करनी में कितना अंतर है। सिमी के बैन होने के बाद उसके सदस्य पीएफआई का हिस्सा बने। केरल से लेकर देश के दूसरे हिस्सों में तेजी से फैले। इस संगठन को मुस्लिम ब्रदरहूड की बात करने वाले देश जैसे कतर कुवैत, तुर्की से आर्थिक मदद मिलती है।
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