भारत के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तो बंगाल की पीढ़ियों ने खुद को खपा दिया था: पीएम मोदी

देश
किशोर जोशी
Updated Dec 24, 2020 | 11:54 IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित किया।

PM Narendra Modi attends centenary celebrations of Visva-Bharati University in Shantiniketan, West Bengal
भारत की आत्मा व आत्मसम्मान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं- पीएम 
मुख्य बातें
  • भारत की आत्मा, भारत की आत्मनिर्भरता और भारत का आत्मसम्मान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं- पीएम मोदी
  • हमारे  संतों, महंतों एवं आचार्यों ने देश की चेतना जागृत रखने का लगातार प्रयास किया- मोदी

शांति निकेतन (पश्चिम बंगाल)  : विश्व भारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्वविभारती के 100 वर्ष होना प्रत्येक भारतीय के गौरव की बात है। मेरी लिए भी ये सौभाग्य की बात है कि आज के दिन इस तपोभूमि का पुण्य स्मरण करने का अवसर मिल रहा है।  प्रधानमंत्री ने कहा कि यह गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के चिंतन एवं दर्शन का साकार अवतार है। पीएम ने कहा कि यहां से कलाकार, साहित्यकार, वैज्ञानिक सहित नई प्रतिभाएं निकली हैं। इस संस्था को ऊंचाई पर पहुंचाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का वह आभार जताते हैं। उन्होंने कहा कि शांतिनिकेतन गुरुदेव की ओर से तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। 

गुरुदेव के चिंतन का साकार अवतार है विश्वभारती

अपने वर्चुअल संदेश में पीएम मोदी ने कहा, 'विश्वभारती, माँ भारती के लिए गुरुदेव के चिंतन, दर्शन और परिश्रम का एक साकार अवतार है। भारत के लिए गुरुदेव ने जो स्वप्न देखा था, उस स्वप्न को मूर्त रूप देने के लिए देश को निरंतर ऊर्जा देने वाला ये एक तरह से आराध्य स्थल है। विश्व भारती के ग्रामोदय का काम तो हमेशा से प्रशंसनीय रहे हैं। आपने 2015 में जिस योग डिपार्टमेंट शुरू किया था उसकी भी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। प्रकृति के साथ मिलकर अध्ययन और जीवन दोनों का साक्षात उदाहरण आपका विश्वविद्यालय परिसर है।'

संतों ने किया लगातार प्रयास

पीएम ने कहा, 'प्रकृति को जीवन को साथ लेकर चलने के उद्देश्य की दिशा में यह विवि काम करता है। विवि की स्थापना के पीछे सैकड़ों वर्षों का अनुभव और आंदोलनों की पृष्ठभूमि थी। भारत का स्वतंत्रता आंदोलन विश्व भारती के लक्ष्यों से जुड़ा है। इन आंदोलनों की नीव बहुत पहले रखी गई थी। भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक एकता को भक्ति आंदोलन ने मजबूत करने का काम किया। हमारे  संतों, महंतों एवं आचार्यों ने देश की चेतना जागृत रखने का लगातार प्रयास किया।'

बड़ी भूमिका निभा रहा है विश्व भारती

विश्व भारती के योगदान को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'भारत इंटरनेशनल सोलर एलायंज के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। भारत पूरे विश्व में इकलौता बड़ा देश है जो पेरिस अकॉर्ड के पर्यावरण के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सही मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। जब हम स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं तो हमारे मन में सीधे 19-20वीं सदी का विचार आता है। लेकिन ये भी एक तथ्य है कि इन आंदोलनों की नींव बहुत पहले रखी गई थी। भारत की आजादी के आंदोलन को सदियों पहले से चले आ रहे अनेक आंदोलनों से ऊर्जा मिली थी।' 

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की आत्मा, भारत की आत्मनिर्भरता और भारत का आत्मसम्मान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। बंगाल के योगदान को याद करते हुए पीएम ने कहा कि भारत के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तो बंगाल की पीढ़ियों ने खुद को खपा दिया था।

किया वोकल फॉर लोकल का आग्रह
वोकल फॉर लोकल की बात करते हुए पीएम मोदी ने छात्रों से आग्रह किया, 'पौष मेले के साथ वोकल फॉर लोकल का मंत्र हमेशा से जुड़ा रहा है। जब हम आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं तो विश्वभारती के छात्र-छात्राएं पौष मेले में आने वाले कलाकारों की कलाकृतियां ऑनलाइन बेचने की व्यवस्था करें। गुरुदेव जी कहते थे कि हम एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करें जो हमारे मन में कोई डर न हो, हमारा सर ऊंचा हो और हमारा ज्ञान बंधनों से मुक्त हो। आज देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से इस उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।'

देश की चेतना की जागृत

प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को भक्ति आंदोलन ने मजबूत करने का काम किया था। हिंदुस्तान के हर क्षेत्र, पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, हर दिशा में हमारे संतों ने, महंतों ने, आचार्यों ने देश की चेतना को जागृत रखने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन से हम एकजुट हुए, ज्ञान आंदोलन बौद्धिक मजबूती दी और कर्म आंदोलन ने हमें अपनी लड़ाई का हौसला और साहस दिया। सैकड़ों वर्षों के कालखंड में चले ये आंदोलन त्याग, तपस्या और तर्पण की अनूठी मिसाल बन गए थें। वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर थी और ये धारा अंतर्मुखी नहीं थी। वो भारत को विश्व के अन्य देशों से अलग रखने वाली नहीं थी।' 

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